भेदी,न्यायी,कुटिल ....
ना हों तो सम पर परिणाम कैसे आये

 
रश्मि प्रभा
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विभीषण
एक नाम .....
छद्म का,
धोखे का,
भ्रात्र्द्रोह का,
घर के भेदी का ........
क्यों?

क्यों नहीं वह
भरत समान,
प्रतीक ...........
प्रेम का,
विश्वास का,
त्याग का,
भ्रात्रप्रेम का?

क्यों?
क्या होता वध
शक्तिशाली रावण का?
होते विजयी
श्रीराम?
आती वापस
वैदेही?

नहीं!
विभीषण बिना
दुष्कर था सब,
लंका विजय
बन जाती स्वप्न
ना होता यदि .....
विभीषण।

विभीषण ने तो
दोस्ती निभाई थी
संग श्रीराम के,
कल्याण किया
अखिल
मानव स्रष्टि का ....
फिर?

फिर क्यों
नहीं चाहते हम
विभीषण .....
अपने घर,
समाज,
वतन,
विश्व में?

जो,
सही सलाह दे,
श्रीराम को,
मात्र
स्व नहीं
जन-कल्याण में
रत हो।

आज ...
विद्यमान है रावण
हर समाज में,
देश में,
बल्कि
सम्पूर्ण
विश्व में।

विनाश करता
सभी ..
मूल्यों का,
घोंटता गला
इंसानियत का,
बजाता डंका
पाप का।

रोज ही
लड़ते हैं
उससे;
जाने कितने ही
श्रीराम ......
परन्तु,
नहीं होते सफल।

कारण
मात्र इतना ही .....
कि नहीं है
विभीषण कोई भी,
पास श्रीराम के
जो  दे दे भेद
रावण की नाभि का।

आज
दूर करने को
यह  तांडव
चाहिए
तो बस
हर राम को
एक विभीषण।

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डॉ रागिनी मिश्र .......
http://ragini-astitva.blogspot.in/

3 comments:

  1. आजकल तो लगता है कि विभीषण मिलना कठिन है

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  2. बुराई मिटाने के लिए किसी को तो बुरा बनना पड़ता है , सही कहा !
    मगर कुलघाती कहलाने का साहस कौन कहाँ से लाये !
    सार्थक रचना !

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  3. मेरे विचार से न ही विभीषण कुलघाती था , न ही घर का भेदी | न उसने रावण को धोखा दिया न ही राम का साथ दिया , उसने तो सिर्फ धर्म और न्याय का साथ दिया |

    सादर

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