Sunday, August 28, 2011

अशोक आंद्रे

साकार करने के लिए 
[scan0004.jpg]

कविताएँ रास्ता ढूंढती हैं 
पगडंडियों पर चलते हुए 
तब पीछा करती हैं दो आँखें 
उसकी देह पर कुछ निशान टटोलने के लिए. 
एक गंध की पहचान बनाते हुए जाना कि 
गांधारी बनना कितना असंभव होता है 
यह तभी संभव हो पाता है 
जब सौ पुत्रों की बलि देने के लिए 
अपने आँचल को अपने ही पैरों से 
रौंद सकने की ताकत को 
अपनी छाती में दबा सके, 

आँखें तो लगातार पीछा करती रहतीं हैं 
अंधी आस्थाओं के अंबार भी तो पीछा कर रहे हैं 
उसकी काली पट्टी के पीछे 
रास्ता ढूंढती कविताओं को 
उनके क़दमों की आहट भी तो सुनाई नहीं देती 
मात्र वृक्षों के बीच से उठती 
सरसराहट के मध्य आगत की ध्वनियों की टंकार 
सूखे पत्तों के साथ खो जाती हैं अहर्निश 
किसी अभूझ पहेली की तरह 
और गांधारी ठगी-सी हिमालय की चोटी को 
पट्टी के पीछे से निहारने की कोशिश करती है . 

कविताएँ फिर भी रास्ता ढूंढती रहती हैं 
साकार करने के लिए 
उन सपनों को- 
जिसे गांधारी पट्टी के पीछे 
रूंधे गले में दबाए चलती रहती है. 

7 comments:

  1. सशक्त अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  2. कवितायें अपना मार्ग छोड़ दूसरों के मार्ग की प्रदर्शक बन जायें काश..

    ReplyDelete
  3. महाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  4. प्रभावशाली लेखन..

    ReplyDelete
  5. behad sunder abhivyakti sammaniy ashok jee, sadhuwad .
    saadar

    ReplyDelete
  6. सुंदर कविता एक गंभीर भाव लिये.

    ReplyDelete
  7. ----------
    जब सौ पुत्रों की बलि देने के लिए
    अपने आँचल को अपने ही पैरों से
    रौंद सकने की ताकत को
    अपनी छाती में दबा सके,

    पंक्तियों के माध्यम से गांधारी की व्यथा को अनुभव कर हृदय छलनी -छलनी हो गया । काव्यात्मक स्वरूप लिए कविता मर्म को छू -छू जाती है । गांधारी की चारित्रिक गहनता को सँजोये कविता सुधी पाठक को भाव -विभोर कर देती है ।

    ReplyDelete

 
Top