घुटन भी एक चेतना है जो बन्द कमरों में अहर्निश जलती है धुँआ गहराता जाए तो चीखना ज़रूरी है अपने गुम हुए अस्तित्व के एहसास के लिए ....
प्रताप नारायण सिंह
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