Sunday, August 28, 2011
कविताएँ रास्ता ढूंढती हैं
पगडंडियों पर चलते हुए
तब पीछा करती हैं दो आँखें
उसकी देह पर कुछ निशान टटोलने के लिए.
एक गंध की पहचान बनाते हुए जाना कि
गांधारी बनना कितना असंभव होता है
यह तभी संभव हो पाता है
जब सौ पुत्रों की बलि देने के लिए
अपने आँचल को अपने ही पैरों से
रौंद सकने की ताकत को
अपनी छाती में दबा सके,
आँखें तो लगातार पीछा करती रहतीं हैं
अंधी आस्थाओं के अंबार भी तो पीछा कर रहे हैं
उसकी काली पट्टी के पीछे
रास्ता ढूंढती कविताओं को
उनके क़दमों की आहट भी तो सुनाई नहीं देती
मात्र वृक्षों के बीच से उठती
सरसराहट के मध्य आगत की ध्वनियों की टंकार
सूखे पत्तों के साथ खो जाती हैं अहर्निश
किसी अभूझ पहेली की तरह
और गांधारी ठगी-सी हिमालय की चोटी को
पट्टी के पीछे से निहारने की कोशिश करती है .
कविताएँ फिर भी रास्ता ढूंढती रहती हैं
साकार करने के लिए
उन सपनों को-
जिसे गांधारी पट्टी के पीछे
रूंधे गले में दबाए चलती रहती है.
सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकवितायें अपना मार्ग छोड़ दूसरों के मार्ग की प्रदर्शक बन जायें काश..
ReplyDeleteमहाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखन..
ReplyDeletebehad sunder abhivyakti sammaniy ashok jee, sadhuwad .
ReplyDeletesaadar
सुंदर कविता एक गंभीर भाव लिये.
ReplyDelete----------
ReplyDeleteजब सौ पुत्रों की बलि देने के लिए
अपने आँचल को अपने ही पैरों से
रौंद सकने की ताकत को
अपनी छाती में दबा सके,
पंक्तियों के माध्यम से गांधारी की व्यथा को अनुभव कर हृदय छलनी -छलनी हो गया । काव्यात्मक स्वरूप लिए कविता मर्म को छू -छू जाती है । गांधारी की चारित्रिक गहनता को सँजोये कविता सुधी पाठक को भाव -विभोर कर देती है ।