'' तीन छोटी कवितायेँ ''
{ १}
एक शब्द नहीं बोली
रख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !
{ २ }
नन्ही बूंदें
अब भी अपना अस्तित्व
दर्शा रही है
टीलों के मुहानों पर
मानों, मुख चूम रही हो
तब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे !
{३}
ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !
सुनील गज्जाणी
अध्यक्ष: बुनियाद साहित्य एवं कला संस्थान, बीकानेर
पता : सुथारों की बारी गुवाड
बीकानेर (राज.)
मोबाइल न0: 09950215557
http://aakharkalash.blogspot.com/
तीनो कविताए दिल को छू गयीं।
ReplyDeleteShayad aisi hi rachnaaon ke liya bana hai yah muhabira -"gaagar me saagar'.Bhaaw vibhor kr dene wali rachna.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचनायें ।
ReplyDeleteतीनो कविताए सुन्दर ....
ReplyDeleteअच्छी लगीं कवितायेँ..खासकर तीसरी वाली.
ReplyDeleteprabhvshali Nano
ReplyDeleteइन तीनों शब्द रचनाओं में शब्द का सटीक प्रयोग हुआ है , पढ़कर मन प्रसन्न हो गया !
ReplyDeleteतीनों क्षणिकाएं सुन्दर ...
ReplyDeleteमलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा
यह बहुत प्रभावशाली हैं ..
तीनों क्षणिकायें प्रभाव छोड्ती है.. शब्दो का नया प्रयोग भी है... जैसे... "शब्द
ReplyDeleteआँखों से खीर खीर" बहुत बढिया...
एक शब्द नहीं बोली
ReplyDeleteरख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !
...anupam abhivyakti
प्रभावशाली
ReplyDeleteDear Sunil ji..
ReplyDeletethanks if you have share your very creative poetry with me. i like it and i wish for you you will create more sense full poetry for us.
keep it up.
bhawsagar bhi tapte hai is chilati dhup se..
par ye talab ke mandhak kya jane bhawsagar par hai kya biti..!
sorry for this poetry you were wrote to me just for comment but i can't stop of my inner poet.
warm regards
yogendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INIDA
http://yogendra-art.blogspot.com
Sundar.
ReplyDeleteमानों, मुख चूम रही हो
ReplyDeleteतब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे !
Ye paNktiyaN khas-taur par achchhi lagiN.
Suneel ko chhoti kavitaaon men dheere-dheere maharat haasil ho gayee hai. ve naavak ke teer kee tarah vedh jaatee hain.
ReplyDeleteSuneel jee , aapkee chhotee - chhotee kavitaayen bahut badee
ReplyDeletebaat kah gayee hain . badhaaee.
बेहतरीन
ReplyDeleteबड़ी बात और गहरी अनुभूति को बड़े सहज ढंग से कहते हैं सुनील जी .बधाई
ReplyDeleteManoj Bhawuk
www.manojbhawuk.com
बहुत ही सुन्दर ! तीनो क्षणिकाएं हृदयग्राही हैं ! मन को छू गयीं ! बधाई एवं आभार !
ReplyDeleteसुनील गज्जानी की कवितायें अच्छी तो है ही, मगर तीसरी में....
ReplyDeleteमलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !
ईन पंकियों में समसंवेदनात्मकता की गहराई छू गयी | तालाब के प्रति यह संवेदना का जैसे पूर्ण तादात्म्य हो गया हो.... !
एक शब्द नहीं बोली
ReplyDeleteरख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !
तीनों कविताएं बहुत अच्छी...पहली तो लाजवाब
संक्षिप्त किन्तु भावों से ओत -प्रोत सुन्दर रचनाएं
ReplyDeleteआपके भीतर के कवि को नमन...अच्छी रचनाएं हैं।
ReplyDeletevaah....dekhan mey chhote lage, ghav karat gambheer...? badhai..is naye kalevar kee bhee....
ReplyDeleteकुछ बात तो है।
ReplyDeleteफूलों के गाँव में रहने वाले सूखे पत्तों की
ReplyDeleteवेदना को एवं जीवन के भेद को भली भांति समझ सकते हैं |
"घायल की गति घायल जाने "
विचार अच्छे लगे |
डॉ. ग़ुलाम मुर्तजा शरीफ
अमेरिका
तीनो कवितायें दिल को छू गयी विशेशतय
ReplyDeleteढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !
बहुत भावपूर्ण रचनायें बधाई।
तीनों ही कवितायेँ ह्रदय को छूने वाली है.....हर शब्द
ReplyDeleteसधा और सुंदर ...... इतनी अच्छी रचनाएँ पढवाने के लिए आभार ....सुनील जी
और रश्मि जी का शुक्रिया इन बेहद प्यारी पंक्तियों के लिए .....
बहुत खूब..
ReplyDeleteतीनों कविताएं बहुत अच्छी है दिल को छू गयीं।
ReplyDeleteप्रभावी रचनाएँ.
ReplyDeleteथोड़े महँ जानिहहिं सयाने।
ReplyDeleteसुनील भाई,
ReplyDeleteइस उम्र में यह अनुभूति और अभिव्यक्ति आपको काव्य में कहॉं तक ले जायेगी इसका अनुमान आप शायद अभी न लगा पायेंगे।
तीन बधाईयॉं एक साथ।
तीनों ही क्षणिकाएं ऐसी हैं कि ..किसे स्वर्ण पदक तालिका पर रखूं किसे रजत और किसे कांस्य कह नहीं सकता ....मगर हर हाल में तीनों ही विजेता तो हैं ही
ReplyDeleteबेहतर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteशानदार विषय, वस्तु ईमानदार प्रस्तुति.....बधाई।
ReplyDeleteसद्भावी--डॉ० डंडा लखनवी
आँखों से खीर- खीर...
ReplyDeleteबिलकुल नयी सी बात ...
तीनों क्षणिकाएं ही बहुत सुन्दर...
काम शब्दों में बड़े एहसास , बड़ी बातें ...!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeletereally all poems are very nice and heart touching......... actually i think its more difficult to say in few lines than a long poem. so , accept my compliments for it.
ReplyDeletesammnit gunijno ko saadar pranam !
ReplyDeleteaap ne meri kavitaon ko saraha , marg darshan pradan kiya , aqabhari hoo ! aisa hi sneh aashish bhavishaya me chahuga ,isi kaman ke saath aap ka punah aabhar !
कविताओं में भावनाओं का आलोड़न और उनकी अभिव्यक्ति सुन्दर बन पड़ी है |नये प्रयोगों के कारण इनका महत्व दुगुन है |
ReplyDeleteसुधा भार्गव
तीनो ही कविताएं गहरी अनुभूति से ओतप्रोत है, बधाई!
ReplyDeleteरश्मि जी,
ReplyDeleteबिल्कुल आपके प्रयास की गरिमा के अनुकूल कविताएं लगीं सुनी्ल जी की...
मुबारकबाद.
तीनो ही रचनाएँ पठ नीय हैं आप को हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteachi lagi rachnaye
ReplyDeleteशब्द
ReplyDeleteआँखों से खीर खीर!
तब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे!
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा!
गहरे भाव - बधाई
सारी कवितायेँ बहुत अच्छी लगी!
ReplyDeletewah...........atisundar..
ReplyDeleteनन्ही बूंदें
ReplyDeleteअब भी अपना अस्तित्व
दर्शा रही है
टीलों के मुहानों पर
मानों, मुख चूम रही हो
तब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे ...
नन्हे सपनों की तरह इन बूँदों का अस्तित्व भी एक ठोकर से ख़त्म हो जाता है ..... समय की बेरहम ठोकर से बचा कर रखना आसान नही .... तीनों लाजवाब क्षणिकाएँ हैं ...
bahot achchi lagi.
ReplyDeleteनिःसन्देह....बहुत हे खूबसूरत अभिवयक्ती......
ReplyDeletebahut sunder. bhaw purn.
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