लोग ! इतने अहम् हो उठते हैं कि हम भूल जाते है जीना ... और लोग , उनको तो बस मौका चाहिए !
कहते हैं न ' पर उपदेश कुशल बहुतेरे' ... गलती उनकी नहीं होती , हमारी ही होती है कि हम उनको
दखल देने की छूट देते हैं , जब सारी ज़िन्दगी उलट-पलट हो जाती है, तब जाकर पता चलता है कि -
बहार आकर लौट गई ...
रश्मि प्रभा
हम कहानियों का सहारा क्यूँ लें ?
इसलिए कि लोग पूछते हैं ?
क्यूँ?
कहानी - बीती कहानी बन गए थे हम
सिर्फ लोगों की वजह से
इन्होने हमारा सुकून कभी चाहा ही नहीं
सबको डर था -
इस सुकून में हम उन्हें न भूल जाएँ
खुद सा आकलन किया हमारा
सुना नहीं, जाना नहीं , समझा नहीं
हमारी बातों में उनका एक वजूद था
पर हमारी ईंटें खिसकाकर
उन्होंने हमें खंडहर में तब्दील कर दिया
और निश्चिन्त हो गए -
'ये अब हमारे सिवा कुछ नहीं सोच पाएंगे'
पर क्या हुआ ?
यह खंडहर
अपनी ध्वनि-प्रतिध्वनि में अजीब होने लगा
सब खुश हुए -
'अब ये रोबोट हमारा'
..............
प्रभु का कमाल
दो बिछड़े रोबोट मिल गए
अपनी परछाइयों के संग
एक दूसरे की धड़कन बन गए
और नई इमारत दिखने लगे
लोग उनकी चमक से विस्मित हुए
अपनी व्यस्तता से समय निकाल
पूछने लगे -
'क्या यह चमक ज़रूरी है ?'
सवाल-जवाब में उलझने की ज़रूरत क्या है ?
क्या फिर इसलिए कि लोग पूछते हैं ?
क्या फिर हम उन्हें इजाज़त दे दें
कि हमें रोबोट बना दिया जाये ?
रश्मि प्रभा
अच्छी रचना है ........
ReplyDeleteइसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
(आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html
ओह ...रोबोट बनते हम लोंग ...गहरी सोच ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइस अभिव्यक्ति में कुत्सित धारणाओं के प्रति चिंता और निर्माण के प्रति चितन है अच्छी रचना है यह........सुन्दर अभिव्यक्ति !
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ReplyDeleteकहानी - बीती कहानी बन गए थे हम
ReplyDeleteसिर्फ लोगों की वजह से
इन्होने हमारा सुकून कभी चाहा ही नहीं
सबको डर था -
इस सुकून में हम उन्हें न भूल जाएँ
खुद सा आकलन किया हमारा
सुना नहीं, जाना नहीं , समझा नहीं
हमारी बातों में उनका एक वजूद था --
Behad samvedansheelta se apni chjntaon ko ukerati rachna haiaapki.thodi klisht hai.
रोबोट में तब्दील होते हम लोंग ...
ReplyDeleteलोंग समय निकल कर पूछ लेते हैं ..." क्या ये चमक जरुरी है "
गज़ब , गज़ब और गज़ब ...!
bahut sarthak rachna
ReplyDeleteaajka manav bakai robot ban gaya he
bahdai kabule
kirpya apna ashirwad yahan bhi de
http:\\mere-ehsaas.blogspot.com
anuthi rachna, gahri abhivyakti, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर................
ReplyDeleteRobot ko chabhi dene wala kaun??:)
ReplyDeletedi ke kalam se nikli ek aur sundar abhivyakti.......:)
गहरी सोच को दर्शाती रचना।
ReplyDeleteआज के चर्चामंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
आपकी यह बात पढ़कर दुष्यंत का मशहूर शेर याद आ गया-
ReplyDeleteकौन कहता है आसमान में छेद हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
रंगोली में बनता आपका चित्र और साथ रखा कैलेंडर देखकर आपके एक और रूप से परिचय हुआ। बधाई और शुभकामनाएं।
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ बेहतरीन रचना!
ReplyDeleteगहन चिंतन से उपजी अभिव्यक्ति.....सामाजिक चिंतन प्रस्तुत करती है, विवश करती सोचने के लिए ....प्रभावी व प्रशंसनीय रचना ....
ReplyDeleteशुभकामनाओं के साथ प्रणाम......