क्या सच है क्या झूठ
कहते हैं सब
क्षितिज भ्रम है
मुझे लगता है
एक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !

रश्मि प्रभा

 
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सच क्षितिज का........ 


द्वंद्व में घिरा मन
कब महसूस कर पाता है
किसी के एहसासों को ?
और वो एहसास
जो भीगे - भीगे से हों
मन सराबोर हो
मुहब्बत के पैमाने से
लब पर मुस्कराहट के साथ
लगता है कि -
प्यार के अफ़साने
लरज रहे हों।
नही समझ पाता ये मन -
कुछ नही समझ पाता ,
ख़ुद के एहसास भी
खो से जाते हैं
सारे के सारे अल्फाज़
जैसे रूठ से जाते हैं
कैसे लिखूं
अपने दिल की बात ?
न मेरे पास
आज नज़्म है , न शब्द
और न ही लफ्ज़
खाली - खाली आंखों से
दूर तक देखते हुए
बस क्षितिज दिखता है ।
जिसका सच केवल ये है कि
उसका कोई आस्तित्व नही होता ।
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संगीता स्वरुप ( गीत )
कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं.

28 comments:

  1. मुझे लगता है
    एक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !
    mujhe bhi lagta hai.....

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  2. खाली - खाली आंखों से
    दूर तक देखते हुए
    बस क्षितिज दिखता है ।
    जिसका सच केवल ये है कि
    उसका कोई आस्तित्व नही होता
    ekdam sahajta se kitni badi baat kah din......ham kayal ho gaye.

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  3. आज तो बिलकुल जुदा अंदाज़ है आपकी रचना का कुछ भीगा भीगा सा, कुछ अन्मनस्क सा, कुछ शिथिल सा ! मन को बहुत भा गयी यह रचना ! बधाई स्वीकार करें !

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  4. आज तो बहुत ही गहरी बात कह दी……………कभी कभी हम सभी ऐसी स्थितियों से गुजरते हैं।

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  5. कितना सच ही सब भ्रम है
    बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति

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  6. शायद क्षितिज का न होना ही वह सच हो.
    अंतर्द्वन्दीय अंतर्कथा .. बेमिसाल

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  7. .....एक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !

    मेरी सोच से शायद क्षितिज के पार जाकर, मुड कर देखने से ’सच’समझ आता है!
    और ये कि:-

    ’अंधेरा इस कदर काला नहीं था,
    उफ़्फ़क पे झूँठ सूरज कहीं उग आया होगा!’

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  8. बहुत ही गहरे भाव के साथ उम्दा प्रस्तुती!

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  9. बहुत सुन्दर रचना ! क्षितिज का यही तो विडंवना है ... होके भी नहीं है ...

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  10. वटवृक्ष के नीचे से जब क्षितिज देखा तो लगा ..

    दुनिया में कुछ नहीं इन आंखों में दोष था
    हर झूठ मुझको सच ही लगता रहा यहां।

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  11. ये बिल्कुल सत्य है की द्वन्द का सच में कोई आस्तिव नहीं होता |
    बहुत खुबसूरत रचना |

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  12. लगा सारा आकाश सिमट आया हो ,क्षितिज की परिभासा इतनी आसान है क्या ? महसूस जरूर कर सकते है, जब चाहें . अलग मूड की बेहतर रचना बधाई

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  13. संगीता जी ....बहुत ही अच्छा लिखा है ,आपने.पढ़कर अच्छा लगा .वाकई क्षितिज की यही सच्चाई है कि वास्तव में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है .....बधाई स्वीकार करें.....इस रचना हेतु

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  14. क्या बात है ..आज तो अंदाज जुदा जुदा सा है.\
    भीगे भीगे शब्दों में गहराई भी और सौंदर्य भी.बहुत ही अच्छी लगी ये कविता.

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  15. ला-जवाब है, संगीता दीदी की यह कृति

    और यह यथार्थ……

    बस क्षितिज दिखता है ।
    जिसका सच केवल ये है कि
    उसका कोई आस्तित्व नही होता ।

    इस प्रस्तुति के लिए आभार रश्मि जी।

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  16. आदरणीया संगीता जी को बहुत बहुत बधाई

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  17. gahraaee hai dono ke hi lafjon me ....rashmi ji ...sangita ji ..badhai

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  18. आदरणीया संगीता जी बहुत बहुत बधाई

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  19. आदरणीया संगीता जी बहुत बहुत बधाई

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  20. खाली - खाली आंखों से
    दूर तक देखते हुए
    बस क्षितिज दिखता है ।
    जिसका सच केवल ये है कि
    उसका कोई आस्तित्व नही होता
    ...bahut badiya bhavpurn rachna prastuti ke liye aabhar

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  21. सभी पाठकों का आभार .... रचना पसंद करने का शुक्रिया ...

    रश्मि जी को शुक्रिया कहना कम लगता है पर यह भी न कहूँ तो गुस्ताखी होगी .. आभार

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  22. इसी मरीचिका के साथ जिए जाना अपने आप में बड़ी बात है...जब कि सच का पाता है...क्षितिज पर आस की किरण तो है...पर क्षितिज का सच कुछ और है...अतिसुन्दर...

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  23. खाली खाली आँखों से देखते क्षितिज दीखता है , जिसका सच ये है की उसका कोई अस्तित्व नहीं है ...

    भ्रम ही सही मगर एक सच क्षितिज के पास सुरक्षित भी तो लगता है ...

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  24. आदरणीया संगीता जी बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति प्रेम अहसास और क्षितिज का सच में जैसे कोई अस्तित्व नहीं बताती हुयी

    मन सराबोर हो
    मुहब्बत के पैमाने से
    लब पर मुस्कराहट के साथ
    लगता है कि -
    प्यार के अफ़साने
    लरज रहे हों।

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  25. कहते हैं सब
    क्षितिज भ्रम है
    मुझे लगता है
    एक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !
    ..............................

    खाली - खाली आंखों से
    दूर तक देखते हुए
    बस क्षितिज दिखता है ।
    जिसका सच केवल ये है कि
    उसका कोई आस्तित्व नही होता ।

    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ....।

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  26. खाली - खाली आंखों से
    दूर तक देखते हुए
    बस क्षितिज दिखता है ।
    जिसका सच केवल ये है कि
    उसका कोई आस्तित्व नही होता ।bhram ke sath bhram ki sthiti me jeena hi kai bar sukun deta hai...

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  27. बहुत सुन्दर रचना, क्षितिज का अस्तित्व कौन जाने क्या है पर विशालता में कभी कभी हमारे शब्द खो जाते हैं और बस मौनता...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई संगीता जी.

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