क्या सच है क्या झूठ
कहते हैं सब
क्षितिज भ्रम है
मुझे लगता है
एक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !
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सच क्षितिज का........
द्वंद्व में घिरा मन
कब महसूस कर पाता है
किसी के एहसासों को ?
और वो एहसास
जो भीगे - भीगे से हों
मन सराबोर हो
मुहब्बत के पैमाने से
लब पर मुस्कराहट के साथ
लगता है कि -
प्यार के अफ़साने
लरज रहे हों।
नही समझ पाता ये मन -
कुछ नही समझ पाता ,
ख़ुद के एहसास भी
खो से जाते हैं
सारे के सारे अल्फाज़
जैसे रूठ से जाते हैं
कैसे लिखूं
अपने दिल की बात ?
न मेरे पास
आज नज़्म है , न शब्द
और न ही लफ्ज़
खाली - खाली आंखों से
दूर तक देखते हुए
बस क्षितिज दिखता है ।
जिसका सच केवल ये है कि
उसका कोई आस्तित्व नही होता ।
संगीता स्वरुप ( गीत )
कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं.
मुझे लगता है
ReplyDeleteएक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !
mujhe bhi lagta hai.....
खाली - खाली आंखों से
ReplyDeleteदूर तक देखते हुए
बस क्षितिज दिखता है ।
जिसका सच केवल ये है कि
उसका कोई आस्तित्व नही होता
ekdam sahajta se kitni badi baat kah din......ham kayal ho gaye.
आज तो बिलकुल जुदा अंदाज़ है आपकी रचना का कुछ भीगा भीगा सा, कुछ अन्मनस्क सा, कुछ शिथिल सा ! मन को बहुत भा गयी यह रचना ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteआज तो बहुत ही गहरी बात कह दी……………कभी कभी हम सभी ऐसी स्थितियों से गुजरते हैं।
ReplyDeleteकितना सच ही सब भ्रम है
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
शायद क्षितिज का न होना ही वह सच हो.
ReplyDeleteअंतर्द्वन्दीय अंतर्कथा .. बेमिसाल
.....एक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !
ReplyDeleteमेरी सोच से शायद क्षितिज के पार जाकर, मुड कर देखने से ’सच’समझ आता है!
और ये कि:-
’अंधेरा इस कदर काला नहीं था,
उफ़्फ़क पे झूँठ सूरज कहीं उग आया होगा!’
बहुत ही गहरे भाव के साथ उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ! क्षितिज का यही तो विडंवना है ... होके भी नहीं है ...
ReplyDeleteवटवृक्ष के नीचे से जब क्षितिज देखा तो लगा ..
ReplyDeleteदुनिया में कुछ नहीं इन आंखों में दोष था
हर झूठ मुझको सच ही लगता रहा यहां।
ये बिल्कुल सत्य है की द्वन्द का सच में कोई आस्तिव नहीं होता |
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना |
लगा सारा आकाश सिमट आया हो ,क्षितिज की परिभासा इतनी आसान है क्या ? महसूस जरूर कर सकते है, जब चाहें . अलग मूड की बेहतर रचना बधाई
ReplyDeleteसंगीता जी ....बहुत ही अच्छा लिखा है ,आपने.पढ़कर अच्छा लगा .वाकई क्षितिज की यही सच्चाई है कि वास्तव में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है .....बधाई स्वीकार करें.....इस रचना हेतु
ReplyDeleteक्या बात है ..आज तो अंदाज जुदा जुदा सा है.\
ReplyDeleteभीगे भीगे शब्दों में गहराई भी और सौंदर्य भी.बहुत ही अच्छी लगी ये कविता.
ला-जवाब है, संगीता दीदी की यह कृति
ReplyDeleteऔर यह यथार्थ……
बस क्षितिज दिखता है ।
जिसका सच केवल ये है कि
उसका कोई आस्तित्व नही होता ।
इस प्रस्तुति के लिए आभार रश्मि जी।
आदरणीया संगीता जी को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeletegahraaee hai dono ke hi lafjon me ....rashmi ji ...sangita ji ..badhai
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteखाली - खाली आंखों से
ReplyDeleteदूर तक देखते हुए
बस क्षितिज दिखता है ।
जिसका सच केवल ये है कि
उसका कोई आस्तित्व नही होता
...bahut badiya bhavpurn rachna prastuti ke liye aabhar
सभी पाठकों का आभार .... रचना पसंद करने का शुक्रिया ...
ReplyDeleteरश्मि जी को शुक्रिया कहना कम लगता है पर यह भी न कहूँ तो गुस्ताखी होगी .. आभार
sundar..
ReplyDeleteइसी मरीचिका के साथ जिए जाना अपने आप में बड़ी बात है...जब कि सच का पाता है...क्षितिज पर आस की किरण तो है...पर क्षितिज का सच कुछ और है...अतिसुन्दर...
ReplyDeleteखाली खाली आँखों से देखते क्षितिज दीखता है , जिसका सच ये है की उसका कोई अस्तित्व नहीं है ...
ReplyDeleteभ्रम ही सही मगर एक सच क्षितिज के पास सुरक्षित भी तो लगता है ...
आदरणीया संगीता जी बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति प्रेम अहसास और क्षितिज का सच में जैसे कोई अस्तित्व नहीं बताती हुयी
ReplyDeleteमन सराबोर हो
मुहब्बत के पैमाने से
लब पर मुस्कराहट के साथ
लगता है कि -
प्यार के अफ़साने
लरज रहे हों।
कहते हैं सब
ReplyDeleteक्षितिज भ्रम है
मुझे लगता है
एक सच क्षितिज के पास रखा हुआ है !
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खाली - खाली आंखों से
दूर तक देखते हुए
बस क्षितिज दिखता है ।
जिसका सच केवल ये है कि
उसका कोई आस्तित्व नही होता ।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ....।
खाली - खाली आंखों से
ReplyDeleteदूर तक देखते हुए
बस क्षितिज दिखता है ।
जिसका सच केवल ये है कि
उसका कोई आस्तित्व नही होता ।bhram ke sath bhram ki sthiti me jeena hi kai bar sukun deta hai...
बहुत सुन्दर रचना, क्षितिज का अस्तित्व कौन जाने क्या है पर विशालता में कभी कभी हमारे शब्द खो जाते हैं और बस मौनता...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई संगीता जी.