खट खट खट खट.........
मोह दरवाज़े पर
दस्तक देता रहता है !
कान बंद कर लूँ
फिर भी ये दस्तकें
सुनाई देती हैं -
और आंखों में
कागज़ की नाव बनकर तैरती हैं !
मोह दरवाज़े पर
दस्तक देता रहता है !
कान बंद कर लूँ
फिर भी ये दस्तकें
सुनाई देती हैं -
और आंखों में
कागज़ की नाव बनकर तैरती हैं !
रश्मि प्रभा
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रिमोट कंट्रोल
जब जगह थी ज्यादा
लोग कम थे
आपस में बतियाते
सुख दुःख साझे
घर की छत से छत लगी थी
आँगन चबूतरा रोशनदान अहाता
मिलने की हज़ार जगह बनी थी
कोई किसी भी चारपाई सो जाता
तब भी भरी पूरी नींद होती
जब आसपास कितना कुछ हो जाता
पाँव लम्बा फैलाता
पसरा सन्नाटा .
दूर बजती बांसुरी की सुन पड़ती तान
आती हवाओं पर सवार लहरियाँ
भजनों में राधा के सावरियां
कंठों में वृन्दावन गान .
अल्लसुबह उठ जाता
भिनसारे सूरज से बतियाता
कार्तिक माघ नहाता
मुंह अंधियारे जाता
सरसों में नहाया बदन
बूंदों में झिलमिलाता .
कच्चे आम की केरी
गन्ने की आँक से दातों की रणभेरी
बाल्टी भर भींगे आमों की ढेरी
चूसते चूसाते दोपहरी
कुरवा भर झागवाला मक्खन मलाई
गुलाबी रेवड़ी गरम नान -खटाई.
समय अंतराल हुआ
शहर विकराल हुआ
कबूतरबाज कबूतर खानों में रहते हैं
पड़ोसी की नामपट्टिका पढ़ते हैं
गौधूलीबेला क्रॉसिंग पै लाल बत्ती चेहरा है
भीड़ है अकेला है
गौरेया नर्सरी किताबों में फुदकती है
जिन्दगी यूँ ही रूप बदलती है .
पैकेट से निकलती है बनी बनाई रसोई
भुने हुए भुट्टों की कॉर्न सी साफगोई.
देर से उठता हूँ
कोयल की कूक नहीं
शहर अब मूक नहीं
अलार्म बजाता है
सपना डर जाता है .
सूरज की धूप नहीं
एयरकंडीशंड कमरों में
एलईडी रोशनी है
दुनिया बयालीस ईंच की एलसीडी में सिमटी है
जीवन एक चलती फिरती धारावाहिक में तब्दील
झुण्ड के झुण्ड आकाश अबाबील
संपर्कों की क्षीण डोर
सब कुछ रिमोट कंट्रोल .
- अतुल प्रकाश त्रिवेदी
- मेरे विचारों , कृतियों , और सरोकारों का ब्लॉग है - शब्द और अर्थ . आशा है , पसंद आएगा
- http://shabdaurarth.blogspot.com/
बेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeleteभावों की गहन गहराई में गोता लगवाया।
ReplyDeleteखो गये खजाने का खूब दर्शन बखूबी!!
अतुल जी को प्रणाम करता हूँ।
समय अंतराल हुआ
शहर विकराल हुआ
कबूतरबाज कबूतर खानों में रहते हैं
पड़ोसी की नामपट्टिका पढ़ते हैं
गौधूलीबेला क्रॉसिंग पै लाल बत्ती चेहरा है
भीड़ है अकेला है
गौरेया नर्सरी किताबों में फुदकती है
जिन्दगी यूँ ही रूप बदलती है .
इस प्रस्तुति के लिए आभार रश्मि जी।
adbhut........
ReplyDeleteबेहतरीन और अद्भुत रचना !
ReplyDeleteआज का सच बयाँ कर दिया।
ReplyDeleteअलार्म बजाता है
ReplyDeleteसपना डर जाता है .
do samay chakro ko bakhubi baya karti rachna..
pasand aayi...
अद्भुत सुन्दर रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteजितनी ज्यादा भीड़ है , उतना ही अकेलापन ...
ReplyDeleteबेहतरीन !
बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अतुल जी काव्य की एक बेमिसाल यात्रा , आपका समर्थक बनना चाहूँगा जिससे इन बूंदों में भीगता रहूँ आभार
ReplyDeleteआधुनिकता के दंश बयान करती सार्थक कविता।
ReplyDeleteएयरकंडीशंड कमरों में
ReplyDeleteएलईडी रोशनी है
दुनिया बयालीस ईंच की एलसीडी में सिमटी है
जीवन एक चलती फिरती धारावाहिक में तब्दील
झुण्ड के झुण्ड आकाश अबाबील
संपर्कों की क्षीण डोर
सब कुछ रिमोट कंट्रोल .
बहुत अच्छी रचना....
din badle raaten badli
ReplyDeletebadal gaya bachpan
bahut achi prastuti
"दुनिया बयालीस ईंच की एलसीडी में सिमटी है
ReplyDeleteजीवन एक चलती फिरती धारावाहिक में तब्दील"
अतुल सर,लाजवाब. तब हम खुले आसमान को ओढ़े रात-रात भर हजारों लोगों के साथ रामलीलाएं देखा करते थे.नाटक देखा करते थे.देखने का आनंद चौगुना हो जाता था क्योंकि आस-पड़ोस के लोगों का हुजूम साथ होता था.अब तो हम दो, हमारे दो और सामने टी.वी . का स्क्रीन.इस अलगाव का असर भी अब जनमानस पर साफ-साफ दिखाने लगा है.उम्मीद है आप सब गुणीजनों के सहयोग से यह चेतना लौटेगी.बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
वटवृक्ष पर कविता के लिए बधाई .
ReplyDeletepadhi hui- badhia kavita hai !!
आज शाम कोयल की कूक सुनाई दी...पर प्रतिउत्तर में एक भी बच्चा नहीं कूका...और अब ये रचना पढ़ के लगा कि वाकई दुनिया बादल गयी है...टी वी वन वे ट्रेफिक है...जब मन नहीं लगता तो आदमी सर्फिंग करने लगता है...एक 'हम लोग' का ज़माना भी था...कितना भी बोर एपिसोड हो...सब झेल जाते थे...
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव ......अच्छी प्रस्तुति
ReplyDelete......आज अपनी छत पर सुबह सुबह मोर नहीं आया करते ....चिड़िया चहचहाती नहीं है .....कबूतर की गुटर गूं सुनाई नहीं देती
सब कुछ एक छोटे से कमरे और रिमोट में कैद हो कर रह गया है