कौन जीता है किसी और की खातिर | सबको अपनी ही बात पर रोना आया | बूढी आँखों में न जाने किसका इंतजार हैं खुद को सँभालने की एक नाकाम कोशिश गालों तक लुढकते हुए आंसूं दिल में दर्द को झुपाने की लाख कोशिश आवाज़ को बनाये रखने का झूठा प्रयास पर उम्र तो सब कुछ ब्यान कर देता है विश्वाश ही है जो अभी भी जिन्दा है दर्द एसा की एक टीस की तरह ... कब सैलाब बनकर सुनामी का रूप ले ले | कौन झुकना चाहता है ? सब अपने मद मैं चूर सबका अपना - अपना अहम् कौन किसके साथ है ? सबका अपना -अपना कारवां अपनी अपनी मंजिले ... पर ये जर्र - जर्र शरीर कहाँ ये सब जानता है ? बूढ़े कन्धों को तो सहारे की चाह किसी की हमदर्दी की आस अब भी है , की काश वो लौट आये वो छुहन , वो स्पर्श...
मीनाक्षी पन्त
http://duniyarangili.blogspot.com/
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चलो न एक आँगन धूप में
नीम का पेड़ लगायें
वहीँ से निर्भीक रिश्तों की
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रिश्तों के नाम
बहुत अरसा तो नहीं हुआ उस बात को
जब घर आने पर ताई चाची का
भाई होता था हम सभी का मामा
और बहिन होती थी
पूरे खानदान की ही नही
पूरे मोहल्ले और गाँव की मौसी,
कहाँ सिमट कर रह गए सारे रिश्ते?
तुम्हारी नज़र में मैं रह गई सिर्फ एक नारी देह
दुनिया बदल गयी, पर मुझे
आज भी प्रतीक्षा है उस दिन की
जब लौट आएगी रिश्तों की वो ही खूबसूरती
गंवार हूँ ?
पर मुझे आज भी छू जाते
है वो पल जब 'वो' ला कर माथे पर
ओढा देते थे माँ के, ओढ़नी
'गाँव की बहिन बेटी' के रिश्ते से
भीतर तक भीग जाती थी माँ
चाहती हूँ मैं भी जीना वो ही पल ...
पर अब, डरा देता है मुझे भीतर तक
अखबार के कोने में छपा एक छोटा - सा समाचार
'नन्ही बच्ची से बलात्कार'
और छिपा लेना चाहती हूँ
उसे ही नहीं
दुनिया की सारी बेटियों को
अपने में ,
पूछती हूँ खुद से
बदलाव के नाम पर क्या
यही माँगा था हमने?
डरी सहमी बेटियाँ भी पूछती है हमसे
कैसे खेल लेती थी माँ
तुम या नानी
रात देर तक कभी अकेले
कभी अपनी सब सखियों सहेलियों बच्चों के साथ
नीम के तले ?
इंदु पुरी गोस्वामी
http://moon-uddhv.blogspot.com/झूठ से घिन है .किसी का अहित हो रहा हो किसी सच से,तो चुप रहती हूँ..जरूरत पड़े तो धडल्ले से झूठ भी बोल लेती हूँ.सत्यवादी हरिश्चन्द्र भी नही हूँ,पर झूठ तभी जब सच खतरनाक बन जाए किसी के लिए. शोर्ट टेम्पर,तेज तर्रार,बोल्ड हूँ. हूँ तो हूँ,ऐसी ही हूँ. जेंट्स बिना परमिशन के सामने बैठते हुए घबराते हैं,खूब मजा लेती हूँ मन ही मन. यूँ ...कैसी हूँ क्यों बताऊँ ? जो मुझे जानते हैं उन्हें कुछ बताने की जरूरत नही पड़ती जो मुझे नही जानते उन्हें बताना जरुरी भी नही .... बस ...खुद ही नही जान पाई अब तक अपने आपको तो दूसरों को क्या बताऊं? किसी की भी मौत पर एक बूँद आंसू नही आता वहीं गीत,गजल सुनकर ही कभी,या कभी कोई प्यार से माथे पर हाथ फैर दे ये आंसू रोके नही रुकते ....... हाँ! सबसे खूब प्यार करती हूँ बस यही आता है.
बेहद संवेदनशील रचना दर्द को उजागर कर गयी।
ReplyDeletebadalte samay ke sath maa ki jimmedariyan bhi bahut badh gayee hai...vo befikri ke din hawa hue...bahut sunder..
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteवर्तमान दौर में पाश्चात्य का रंग चढ़े रिश्तों में वो मिठास वाकई कहीं खो सी गई है. वो अपनापन, वो प्यार, वो भाव और वो दायरा, सब कुछ बदलने लगे हैं. दिलों की संकीर्णता ने इंसान के विचार भी संकुचित कर दिए हैं तो फिर रिश्तों में वो गहराई कहाँ पायेंगे हम. पर जीवन के उत्तरार्ध में हमें इन खोए रिश्तों की अहमियत अवश्य महसूस होगी और वही से पुनः पुराने हो चुके रिश्तों की पुनर्संरचना होगी ऐसी आशा जरूर है.
ReplyDeleteबेहद सार्थक और सुन्दर रचना. बधाई !!
बहुत संवेदनशील रचना ...कहाँ रहा वो वक्त ...इंसान से हैवान बनते जा रहे हैं लोग ..
ReplyDeleteबच्चों को वक़्त- बेवक्त टोकते कई बार आत्मग्लानि होती है मगर किया क्या जाए ...अखबार की हेडलाईन्स हर माँ को भीतर तक दहला देती है ...
ReplyDeleteयह प्रश्न किसी एक बच्ची का अपनी माँ से नहीं , पूरे समाज से है हर स्त्री का !
bahut khub....dil ko chu gayi aapki lekhni
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसचमुच:)
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeletebhut hi sanvedansheel rachna...
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना.
ReplyDeleteमातृदिवस की शुभकामनाएँ.
थेंक्स रश्मि जी! अच्छा लगा अपनी कविता को वटवृक्ष पर देख कर.प्यार
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ReplyDeletebahut achchi lagi.....
ReplyDeleteइन्दुजी और रश्मि जी आप दोनों को बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteइन्दुजी और रश्मि जी आप दोनों को बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeletemarmik rachana saumyata liye .
ReplyDeleteaabhar .
माँ को प्रणाम!
ReplyDeleteमातृदिवस पर बहुत भावभीनी रचना!
कवयित्री और ब्लॉगप्रबन्धिका को शुभकामनाएँ!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
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http://nicenice-nice.blogspot.com/2011/05/blog-post_08.html
और छिपा लेना चाहती हूँ
ReplyDeleteउसे ही नहीं
दुनिया की सारी बेटियों को
अपने में ,
मन को छुं लेने वाली रचना ... !
र्मस्पर्शी .. दिल को छू गयी ...
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteप्रस्तुति हेतु आभार
बहुत सुंदर रचना है आभार सहित धन्यवाद
ReplyDeleteइस बेहतरीन रचना प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDelete'नन्ही बच्ची से बलात्कार'
ReplyDeleteऔर छिपा लेना चाहती हूँ
उसे ही नहीं
दुनिया की सारी बेटियों को
अपने में ,
ha sach kaha aisa hi aata hai khayaal..ki sari betiyo ko chupa lu ki kisi ki najar na pade us pe...
apni indu di asich hai...:)
ReplyDeletebehad marmik rachna...