प्यार कहाँ नहीं अपने हस्ताक्षर करता है...
ग्लास में , चाय से उठते धुंए में
हथेली में ......
हस्ताक्षर तो अपने भीतर का प्यार है
बस एक बहाना चाहिए ......

रश्मि प्रभा
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पुरानी कमीज


कल रात
किवाड़ के पीछे लगी खूंटी पर टंगी
तेरी उस कमीज पर नजर पड़ी
जिसे तूने ना जाने कब
यह कह कर टांग दिया था
कि अब यह पुरानी हो गई है.
और तब से
कई सारी आ गईं थीं नई कमीजें
सुन्दर,कीमती, समयानुकूल
परन्तु अब भी जब हवा के झोंके
उस पुरानी कमीज से टकराकर
मेरी नासिका में समाते हैं
एक अनूठी खुशबु का एहसास होता है
शायद ये तेरे पुराने प्रेम की सुगंध है
जो किसी भी नई कमीज़ से नहीं आती
इसीलिए मैं जब तब
उसी की आस्तीनों को
अपनी ग्रीवा पर लपेट लेती हूँ
क्योंकि
कमीजें कितनी भी बदलो
प्रेम नहीं बदला जाता


20 comments:

  1. प्रेम की अनुभूति को शिद्दत से व्यक्त किया है ..बहुत सुन्दर रचना ...

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  2. no doubt, the ultimate luv,

    congrate Mrs.Shikha Ji

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  3. वाह ...बहुत खूब ।

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  4. इसकी घनी छाया अविस्मर्निये है और एक से एक रचनाकार

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  5. आप सभी का आभार.
    वटवृक्ष पर मेरी रचना को स्थान देना का शुक्रिया रश्मि जी!

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  6. क्योंकि
    कमीजें कितनी भी बदलो
    प्रेम नहीं बदला जाता


    bahut sunder abhivyakti....

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  7. पुरानी कमीज के माध्यम से प्रेम का शाश्वत होना मुखर हुआ है . सुन्दत रचना .

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  8. कमीजें कितनी भी बदलो
    प्रेम नहीं बदला जाता

    क्या बात है, वाह शिखा जी बहुत उम्दा.

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  9. हस्ताक्षर तो अपने भीतर का प्यार है
    बस एक बहाना चाहिए ......
    bas.....wakayee ek bahana chahiye.

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  10. बहुत सुंदर रचना।

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  13. वाह ! शिखा जी. पुरानी कमीज के भीतर भी प्रेम को ढूंढ़ निकाला.बहुत आत्मीय लगी आपकी ये रचना.शायद यादों को संजोकर रखनेवालों की संवेदना यही बसती है.बेहतरीन.

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  14. शीखा जी को बधाई इतनी सुन्दर रचना के लिए ...
    कुछ यादें कभी भी मिटती नहीं ...

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  15. शायद ये तेरे पुराने प्रेम की सुगंध है
    जो किसी भी नई कमीज़ से नहीं आती
    अहसास जिससे जुड़ जाता है उससे जुदा होने से मन डरता है.

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