पैसों की विरासत विरासत नहीं होती
रश्मि प्रभा
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अनुभवों की विरासत ज़िन्दगी के हर गीत सुनाती है
कहाँ होती है फिसलन
कहाँ है विचलन
कहाँ से निकलता है सूरज
....... अनुभव से ही दरवाज़े खुलते हैं .
रश्मि प्रभा
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हमारी विरासत
जिंदगी के दस्तावेज़
रख दो सम्हाल के
कि
आने वाली जिंदगियाँ
आसान हो जाये.
तुम्हारी दुश्वारियां,
मत समझो,
बेकार जायेंगी.
पड़ीं हैं जो
मुश्किलें तुम पर,
समय के हर पड़ावों पर,
किसी के काम आएँगी.
लिख के रख दो
कि
तुमने कहाँ-कहाँ ठोकरें खाईं.
कैसे डूब कर उबरे,
कैसे खींच कर किश्ती
समंदर
से
किनारों तक लायीं.
कैसे डूबते तारों को,
भयावह स्वप्न सा देखा.
कैसे उगते सूरज से तुमने,
प्रेरणा पाई.
बांटो अपने तजुर्बे,
हर किसी से
कि
ये ही एक विरासत है.
जिसे
हम सहेज सकते हैं.
आने वाली नस्लों
के लिए
कोई लीक दे सकते हैं.
बड़े ही कारगर लगते हैं
अब नुस्खे ये.
अनुभवों के थपेड़ों से,
खुद खोजे थे ये रस्ते.
जिंदगी गलतियाँ करने का,
भला कब वक्त देती है.
उतर जाये जो पटरी से,
तो काफी वक्त लेती है.
इतनी सारी गलतियाँ,
इतना छोटा जीवन.
गलतियाँ करना
और
करके सीखने के लिए
बहुत
कम है जिंदगी एक.
इसलिए
सिर्फ इसलिए
गलतियों का अपनी
पुलिंदा बना दीजिये
और बड़ी-बड़ी इबारतों में लिखवा दीजिये
कि
इस रस्ते से जाना मना है
आगे बड़ा खतरा है
शायद
कोई इन पुलिंदों को पलटे
और कुछ गलतियों से बच जाये
लेकिन फर्स्ट हैण्ड तजुर्बे के बिना
जिंदगी कुछ डल
कुछ बोझिल तो न हो जाएगी
खैर हम अपना काम करते हैं
जिंदगी गलतियों के दस्तावेजों को
कलम देते हैं
पढना, न पढना अगली नस्लों के हिस्से है
हमने भी कहाँ टटोले थे
पिछले दस्तावेज़.
नहीं तो जिंदगी
कितनी आसां होती?
वाणभट्ट
http://vaanbhatt.blogspot.com/
मेरी सोच- क्या इतना परिचय काफी नहीं ?
मेरी सोच- क्या इतना परिचय काफी नहीं ?
कहाँ है विचलन
ReplyDeleteकहाँ से निकलता है सूरज
....... अनुभव से ही दरवाज़े खुलते हैं .
अक्षरश: सत्य
....................
हमने भी कहाँ टटोले थे
पिछले दस्तावेज़.
नहीं तो जिंदगी
कितनी आसां होती?
बहुत ही अच्छा लिखा है ... इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteकहाँ से निकलता है सूरज
ReplyDelete....... अनुभव से ही दरवाज़े खुलते हैं ॥
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! अत्यंत सुन्दर रचना!
हमने भी कहाँ टटोले थे
ReplyDeleteपिछले दस्तावेज़.
नहीं तो जिंदगी
कितनी आसां होती?
बेहतरीन रचना ... असली बात अंतिम पंक्तियों में कही गई है ...
अनुभवों की विरासत!!
ReplyDeleteमानवता की कीमती धरोहर!!
जिंदगी गलतियाँ करने का,
भला कब वक्त देती है.
उतर जाये जो पटरी से,
तो काफी वक्त लेती है.
पूर्वजों की त्रृटियां, नवपीढी के लिए बिना ठोकर खाए खजाना।
अनुकरणीय चिंतन, प्रस्तुति के लिये आभार!!
हमने भी कहाँ टटोले थे
ReplyDeleteपिछले दस्तावेज़.
नहीं तो जिंदगी
कितनी आसां होती?
सही है ..ज़िंदगी के इतिहास को कोई नहीं पढता ...अच्छी प्रस्तुति
बहुत सुन्दर सशक्त प्रस्तुति .......सच है कि पिछले दस्तावेज़ खन्गालों तो ज़िंदगी आसान हो सकती है.पर कोई किसी की सुनता है....कई लोग दूसरे का गिरना सुन कर संभल जाते है...कई लोग दूसरे का गिरना देख कर सँभालते हैं.......कुछ खुद ठोकर खा कर जान लेते हैं राह को......कुछ ऐसे भी होते हैं जो ठोकर खा कर गिरते हैं फिर भी नहीं सीखते ..........उनका क्या किया जाए ........
ReplyDeleteहमने भी कहाँ टटोले थे
ReplyDeleteपिछले दस्तावेज़.
नहीं तो जिंदगी
कितनी आसां होती?
सारा सार इन्ही पंक्तियों मे समाहित है।
"जिंदगी के दस्तावेज़
ReplyDeleteरख दो सम्हाल के
कि
आने वाली जिंदगियाँ
आसान हो जाये."
वाकई आनेवाली पीढ़ियों की जिंदगियां आसान हो जाएँगी यदि वे उन दस्तावेजों को समय पर खोलकर देख लें और उनका अनुशरण करें.बहुत ही प्रेरणादायी और मार्गदर्शी रचना.
"बाँटो अपने तजुर्बे
ReplyDeleteहर किसी से
कि
ये ही एक विरासत है
जिसे
हम सहेज सकते हैं
आने वाली नस्लों
के लिए
कोई लीक दे सकते हैं "
...........................अनुभूत सच्चाई की खूबसूरत प्रस्तुति
हमने भी कहाँ टटोले थे
ReplyDeleteपिछले दस्तावेज़.
नहीं तो जिंदगी
कितनी आसां होती?
सच कहा है...बहुत बेहतरीन...
खैर हम अपना काम करते हैं
ReplyDeleteजिंदगी गलतियों के दस्तावेजों को
कलम देते हैं
पढना, न पढना अगली नस्लों के हिस्से है
हमने भी कहाँ टटोले थे
पिछले दस्तावेज़.
नहीं तो जिंदगी
कितनी आसां होती?..................
बहुत खूब........लिखा है आपने
अगर जिन्दगी इतनी ही आसान होती तो किसी को कुछ समझाने की जरुरत ही ना होती
पुरानी पीढ़ी ...और नयी पीढ़ी का अंतर हमेशा से बना है और बना रहेगा
नयी पीढ़ी किसी भी युग की हो वो नयी सोच के साथ ही आगे आएगी
हर शब्द जैसे एक रिश्ता सा बुन रहा है, वर्तमान,भूतकाल और भविष्य के बीच,वाह सार्थक प्रयास!
ReplyDeletebhut hi gahre vicharo se paripur rachna... bhut hi acchi...
ReplyDeleteवटवृक्ष के नीचे पहली बार आया...इसकी छाँव में आकर...बड़ी ठंडक मिली...कृपादृष्टि ऐसे ही बनाये रखियेगा...
ReplyDeleteअच्छा चिंतन ......
ReplyDeleteKisee aur ke dastawej koee koeee hee padhta hai adhiktar log thokar Khakar hee seekhte hain par humara kam hai agah karna. Bahut sunder prastuti.
ReplyDeleteChapne kel iye bahut badhaee,