मैं प्रकृति, ...
मैं अनुत्तरित नहीं
पेड़ पौधे चाँद तारे सूरज वायु....
मेरी ही भुजाएं हैं
मुझमें ब्रह्मा विष्णु महेश
मैं ब्रह्मांड का लघु रूप
अपनी जीत के नशे में
तुमने मेरे साथ खिलवाड़ किया है
सूक्ष्म क्षणभंगुर होकर भी
तुमने मेरी भुजाओं को घायल किया है
तुमने मुझसे जन्मे मेरे शिशुओं को मार दिया
और पूछते हो परिचय ?
तुम कहो ..... जिस प्रकृति का निर्माण तुमने नहीं किया
उसको तहस नहस करने का अधिकार किसने दिया ?
बोलो... मत रहो अनुत्तरित ,
जवाब तो मुझे चाहिए ..........................
रश्मि प्रभा
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प्रकृति से एक प्रश्न...
हे प्रकृति!
कौन हो तुम?
क्या कभी दिया किसी को
अपना परिचय?
क्या तुम्हारा कोई भौतिक अस्तित्व है,
चाँद, तारों, वनस्पति, आकाश में कहीं?
या मात्र एक कल्पना हो?
या हो महज़, बिग बेंग थ्योरी का एक विस्फोट?
क्या तुम्हारा प्रारब्ध उससे पहले भी था?
यदि था, तो किस प्रारूप में?
अगर नहीं, तो तुम जनित हो
जनित हो तो अमर नहीं हो सकती.
किसने किया था तुम्हारा सृजन?
ब्रह्मा, विष्णु या महेश?
या तुमने ही रचा था उन्हें?
यह भी अनुत्तरित है.
तुम ही निर्माण करती हो निर्वाण भी
अगर निर्माण तुम्हारा है
तो फिर निर्वाण की आवश्यकता क्यूँ ?
तुम तो अपना आकर बढ़ा सकती हो न!
बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी, ग्रहण
यह सब तो तुम्हारे लिय खेल होंगे
अगर नहीं तो फिर
ये विनाश लीला क्यूँ?
या अमूर्त में जानू तो
क्या तुम ह्रदय में बसने वाली प्रीत हो?
या हो आत्मा का परमात्मा से मिलन?
यदि हाँ, तो जन्म मृत्यु क्यूँ?
हे प्रकृति!
मैं बहुत ही सूक्ष्म और क्षण भंगुर जीव हूँ
तुम्हारे बारे में नहीं लगा सकता
कोई भी अनुमान
प्रयास भी करूँगा तो रहूँगा नाकाम.
तेरी ही रचना होकर
तुझ ही से प्रश्न करता हूँ
कृपा करके दे दो मुझे
अपना परिचय
और निश्चय ही
मेरा भी!!!
आप ही की तरह जीवन के साथ परीक्षण करता हुआ...लेकिन वैज्ञानिक नहीं, बल्कि आप सबके लिए खुद एक प्रयोग. साहित्य नहीं, बल्कि कल्पनाओं की किसी किताब में धूल से छुपी कोई अनदेखी पंक्ति. किसी के लिए तोहफा, किसी के लिए भार. अपने अस्तित्व की खोज के लिए यहाँ आपके बीच हूँ. जीवन के अनुभवों से उपजी सोच को अगर अभिव्यक्त करूँ तो शायद आपको पसंद आये....सौभाग्य मेरा की शिक्षा में कम्पनी सेक्रेटरी, कॉस्ट अकाउंटन्सी और एम्. कॉम करने के बाद (दुर्भाग्य से एल एल बी अधूरा छूट गया) भारत सरकार के स्वामित्वाधीन महारत्न कंपनी 'कोल इंडिया लिमिटेड' में वरीय वित्त अधिकारी के रूप में राष्ट्र को सेवायें अर्पित कर रहा हूँ. जन्म के बाद की साँसे लेने का सौभाग्य बूंदी, राजस्थान, भारत में मिला. हाँ, मेरे व्यक्तिगत विचार में हसमुख और जिंदादिल इंसान हूँ लेकिन माफ़ करियेगा मेरी अभिव्यक्तियाँ कभी रोयेंगी, कभी सिसकेंगी. "मेरी हंसी के बदले आपके आसुओं का क्रय, बस यही मेरा उद्देश्य यही मेरा परिचय"....
..प्रकति को लेकर ऐसी सोच
ReplyDeleteबहुत खूब .... बहुत सुन्दर प्रभावशाली अभिव्यक्ति ... !!
प्रकृति को लेकर ऐसा सोचना ....एक कवि ह्रदय ही कर सकता है ...
ReplyDeleteगहरी सोच का परिचय दिया है यहाँ आपने
बहुत सार्थक प्रश्न प्रकृति से ... अच्छी रचना
ReplyDeleteबोलो... मत रहो अनुत्तरित ,
ReplyDeleteजवाब तो मुझे चाहिए ...
.............
तेरी ही रचना होकर
तुझ ही से प्रश्न करता हूँ
कृपा करके दे दो मुझे
अपना परिचय
बेहतरीन प्रस्तुति ... ।
bahut hi saarthak aur vichaarneey prashn hain
ReplyDeletebahu badhiya !!!!!
मानव मन की अनुभूतियो को शब्द दे दिये।
ReplyDeleteआपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/
प्रकृति पर नई सोच को पोषित करती कविता अच्छी लगी...
ReplyDeleteसार्थक सवाल मगर अनुत्तरित ही रहेगा हमरे स्वार्थ के चलते। शुभकामनायें।
ReplyDeleteaadarniye prabha madam ne prakriti ka laajawab pratinidhitwa kiya hai....prakiti ki aur se diya gaya prashn ka uttar ek sajeev samwaad sa laga.....
ReplyDeletekavita ke chayan ke liye bahut bahut aabhar!!!
बहुत अच्छा लिखा है सर!
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आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...
नयी-पुरानी हलचल
धन्यवाद!
देवेन्द्र भाई, आपका अंदाजे बयां काबिले तारीफ है।
ReplyDelete---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
प्रश्न शास्वत है।
ReplyDeleteऔर उत्तर अशास्वत!!
देवेन्द्र जी प्रकृति तो गाहे बगाहे अपना परिचय जरूर देती है हाँ apke anjaan banane ka andaaz achchaa है
ReplyDeleteअनुतरित प्रश्न जो सबके ह्रदय में होते हैं.सरल सहज अभिव्यक्ति.
ReplyDeletebhut hi sarthak prashn...aur rachna hai....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना, बधाई
ReplyDelete- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
चिर प्रतीक्षित अनुत्तरित प्रश्नों के इर्द गिर्द बुनी गई सुंदर कविता| रचनाकार को बधाई|
ReplyDeleteप्रकृति से भी प्रश्न पूछे तो जा ही सकते हैं , अनुत्तरित ही सही ...
ReplyDeleteप्रकृति पर बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
प्रकृति पर नई सोच बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी...
ReplyDeleteअसमंजस में है प्रकृति की मैं क्या हूँ ... तू या मैं ... मैं या तू ...
ReplyDeleteप्रकृति को लेकर बहुत ही सटीक प्रश्न और सुन्दर रचना !
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2011/06/blog-post_13.html
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