जब मैंने जीवन को जाना
अपनी सोच की दृष्टि घुमाई
तो एक आवाज़ आई- कुछ लिखो न
.... जहाँ भी लिखा , जब भी लिखा , जो भी लिखा
बस तुम्हारी छवि नज़र आई
रश्मि प्रभा
===============================================================
तुम केवल मेरी कविता के पात्र हो...
*******
मेरी कविता पढ़ते हुए
अचानक रुक गए
उसमें ख़ुद को तलाशने हुए
पूछ बैठे तुम
कौन है इस कविता में?
मैं तुम्हें देखती रही अपलक
ख़ुद को कैसे न देख पाते हो तुम?
जब हवाएं नहीं गुजरती
बिना तुमसे होकर
मेरी कविता कैसे रचेगी
बिना तुमसे मिलकर,
हर बार तुमको बताती हूँ
कि कौन है इस कविता का पात्र
और किस कविता में हो सिर्फ तुम,
फिर भी कहते हो
क्या मैं सिर्फ कविता का एक पात्र हूँ
क्या तुम्हारी ज़िन्दगी का नहीं?
प्रश्न स्वयं से भी करती हूँ
और उत्तर वही आता है
हाँ, तुम केवल मेरी कविता के पात्र हो,
मगर कविता क्या है?
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी!
__ जेन्नी शबनम _
ये मन की अभिव्यक्ति का सफ़र है, जो प्रति-पल मन में उपजता है...
उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह, क्या खूब ... कवि/कवयित्री अपने जीवन के अनुभव और भावनाओं को ही तो कविता में ढालती है ...
ReplyDeleteएकात्मकता, एकरूपता और निर्लिप्तता के भावों से सजी अप्रतिम रचना. जेन्नी जी को बधाई और मेरा प्रणाम ! आदरजोग रश्मि दी का दिल से आभार जो हमें नित्य उम्दा रचनायों से रूबरू होने का सौभाग्य प्रदान करवाती हैं. आपके स्तुत्य कार्य को मैं नमन करता हूँ !
ReplyDeleteसुंदर वर्णन भावनाओं का ...!!
ReplyDeleteसुंदर रचना ...!!
बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ... प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों से सजी सुन्दर कविता, धन्यवाद
ReplyDeletesunder bhaavo se bhari rachna..
ReplyDeletekavyitri ko badhai..
हाँ, तुम केवल मेरी कविता के पात्र हो,
ReplyDeleteमगर कविता क्या है?
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी!
वाह बहुत खूब.... सुन्दर अभिव्यक्ति...
जेन्नी शबनम जी को बधाई.
शानदार और भावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteहमेशा की तरह रश्मि जी के दिए वटवृक्ष लिंक पर आयी, कविता के शीर्षक पर नज़र गयी, मन में सोची की अरे मैं भी इसी शीर्षक से कविता लिखी और यहाँ भी समान शीर्षक, आगे पढ़ी, अरे ये तो मेरी हीं कविता| बहुत अच्छा लगा अपनी रचना को यहाँ देखकर| रश्मि जी का बहुत बहुत धन्यवाद जो मुझे यहाँ शामिल किया| आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया, मेरी रचना को आप सभी ने पसंद किया|
ReplyDeleteतुम केवल मेरी कविता के पात्र हो..bhut khubsrat puri rachna...
ReplyDeleteअक्सर ये ही होता है...जिसके लिए कविता लिखी जाती है...उसे कविता कम समझ आती है...विपरीत ध्रुव वाली बात है...
ReplyDeletebahut sundar rachan :)
ReplyDeleteहाँ, तुम केवल मेरी कविता के पात्र हो,
ReplyDeleteमगर कविता क्या है?
मेरी ज़िन्दगी
मेरी पूरी ज़िन्दगी! khoobsurat bhav ..
पूछ बैठे तुम
ReplyDeleteकौन है इस कविता में?
मैं तुम्हें देखती रही अपलक
ख़ुद को कैसे न देख पाते हो तुम?
कविता में खुद को भले न पहचानो पर मेरी ज़िन्दगी में अपने आपको जरुर पहचान लेना
क्यूंकि मैं शायद अपने मुख से कह न पाऊं
स्नेह और सराहना केलिए आप सभी का बहुत आभार!
ReplyDelete