अत्याचार का विरोध करते करते
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क़ानूनी सुविधाएँ लेते लेते
तुम इतनी वाचाल
इतनी हठी
इतनी उग्र हो गई
कि अब पुरुष हताश है , उसे अपने पौरुषत्व की तलाश है
हे नारी
झूठे आंसुओं की बाढ़ में
तुमने उसके पूरे वजूद को बहा दिया
रश्मि प्रभा
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हे नारी, तुम सच कहना
हे नारी
तुम सच कहना
क्या समझी है तुमने
एक पुरुष की व्यथा
एक निर्धारित
मानसिकता से परे
उसका कोमल मन,
सच कहना
क्या देखा है तुमने
पसीने से लथपथ
थककर चूर
हँसते मुस्कुराते हुए
रिश्तों की भारी पोटली
पीठ पर लादे पुरुष,
सच कहना
क्या देखा है तुमने
तपते रेगिस्तान में
नंगे पैर चलता पुरुष
या अभिमन्यु की तरह
चक्रव्यूह में फंसा पुरुष ,
सच कहना
क्या महसूस किया है तुमने
कि पुरुष
सिर्फ बिस्तर पर ही नहीं
अपने अंतर की गहराइयों से भी
प्रेम करता है तुम्हे ,
सच कहना
क्या कभी देखा है तुमने
इस पत्थर दिल पुरुष को
पिघल कर बहते हुए
या ओस की बूंदें बन
पत्तों पर लुढ़कते हुए,
सच कहना
क्या तुम्हारे रूठने पर
नहीं मनाता पुरुष
या तुम्हारी उलझी हुई लटों को
नहीं सुलझाता पुरुष,
या तुम अब भी कहती हो
कि अत्याचारी है पुरुष!
एक पक्ष ये भी है ...
ReplyDeleteनिष्पक्ष होकर तराजू के दोनों पलड़ों पर नजर डालनी होगी ...
अच्छी पुछ-ताछ!! निलेश जी आभार!!
ReplyDeleteप्रश्न अभी और भी है, किन्तु सोचता हूँ कहीं तुम इस पुछ-ताछ को भी वर्चस्ववाद में न ले लो। :)
रश्मि प्रभा जी, सार्थक प्रस्तुति
यही है दूसरा पक्ष।
ReplyDeleteआपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/
सुन्दर भाव ... यह पक्ष भी जानना ज़रूरी है
ReplyDeletelike this one.....hamesha females ka hi aspect rakha jata hai ( Most of the time negative towards men)... definitely maa, betiya, patniya,bahuein bina male member ke cooperation ke grow nahi kar sakti .....aur wo cooperte karte hain
ReplyDeletemain to kah raha hun kishor ji..maar khate khate chamdi moti ho gayi...har jagah se lagne laga tha ki....galti hui jo aadmi ban kar aa gaye aaj ki duniya me.....
ReplyDeletebhai ji aapne kuchh to shara diya hai...dil se dhanyavaad !
acchi rachna hai
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएं बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से पुरुष की भावनाओं को रखा है आपने
ReplyDeleteपढ़ कर अच्छा लगा
एक नए फलक पर, एक पुरुष की गहन अनुभूति का सुकोमल चित्रण. अन्यथा देखा है काफी बार कि पुरुष की पारंपरिक और रुढ़िवादी सोच में लिपटी मनोवृत्ति ही रेखांकित हुई है. यहाँ नीलेश जी की ये रचना एक पुरुष के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और अंतर्वेदना का बड़ा ही संवेदनशील और कोमल स्वरुप रेखांकित रही है, जो कि लाज़वाब है. इस बेहतर और मुकम्मल रचना के लिए नीलेश जी बेशक कोटि-कोटि बधाईयों के पात्र हैं..साधुवाद !
ReplyDeletedamdaar rachna......
ReplyDeletehakikat bayaan karati hui rachanaa.sahi kaha aapne auraten aajkal kanoon ka sahara leker purushon ko bewajah bhi paresaan kar rahi hain,aajkal naari sabalaa aur purush bechaara ban raha hai,ye pakch ujjager karke aapne achcha kiya.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog and leave a comment also.thanks.
kya baat kahi hai aapne apni iss kavita me aapne to sadio se chali aa rahi iss sankid soch ko bakhubi vykat kia bahut bahut dhanyabad
ReplyDeleteक्या गज़ब लिखा है..
ReplyDeleteआजतक सिर्फ नारी के दुखों और समर्पण के इर्द-गिर्द लेख/कविताएँ पढ़ी थीं मैंने..
पर आज आपने जो यह बेहतरीन सच्चाई को हमारे साथ बांटा है, उसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी..
बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteye bhi ek pahlu hai jise sayad ham dekh kar bhi nhi dekhte hai... bhut hi acchi prastuti...
ReplyDeleteye bhi ek pahlu hai jise sayad ham dekh kar bhi nhi dekhte hai... bhut hi acchi prastuti...
ReplyDeleteपुरुष में नारी ,अति भारी ,अच्छा बिम्ब उकेरा है पुरुष के कोमल मान का ,अंतर -भावोंका .देह भाषा का .आभार .
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति् सुन्दर भाव…..….धन्यवाद
ReplyDeleteपुरुष व्यथा को पुरुष ही समझ सकता है...भैया इतना खुश करने की कोशिश की होती तो ब्रम्हा से एक-आध वरदान ले लिया होता...
ReplyDeleteपहले दर्द यही था कि सीमाएँ टूट रही थी और साथ ही नारी का वजूद बिखर रहा था अब वो दूसरी तरफ खड़ी हो कर यही करने लगी है समाज के प्रति अपनी निष्ठां अपने दायित्व को भूलकर
ReplyDeleteक्या समझी है तुमने
ReplyDeleteएक पुरुष की व्यथा
क्या देखा है तुमने
पसीने से लथपथ
क्या देखा है तुमने
तपते रेगिस्तान में
नंगे पैर चलता पुरुष
क्या कभी देखा है तुमने...
बिलकुल अतुलनीय रचना, आपकी इस रचना से आपके सम्पूर्ण व्यक्तित्व की झलक दिखाई पड़ती है, आपकी पारदर्शिता दिखती है.. लाजवाब रचना धन्यवाद..
bahut achcha laga neelesh ji ka apna paksh rakhna.agar sabhi purushon ka yahi paksh hota to koi samasya hi nahi thi.bahut achchi abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteअन्धकार में रौशनी डालने के लिए निलेश जी का आभार ... शायद यह पहलु बहुत कम नारी को दिखाई देता है ...
ReplyDeleteमिठास के साथ अच्छे ढंग से बात कह गए हैं आप - बधाई
ReplyDeleteदूसरे पहलू में भी बहुत दम है ...हे नारी, तुम सच समझना ...
ReplyDeleteबेहत सुन्दर रचना
रश्मि दीदी और आप सभी को बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteनिलेश जी ........पुरुष मन की व्यथा को दर्द के शब्दों से उकेरा है आपने .......आज कल सच में ही ऐसा हो रहा है हमारे इर्द गिर्द ....पर हम बेबस कुछ नहीं कर पा रहे ...किसको रोके..किस को समझाए ...कौन है जो सुनेगा ...
ReplyDeletesamvedanao aur sahanubhootiyon ka kendra badal kar inme samanjasy rakhane ka samay aa gaya hai...sunder rachna..
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