रिश्तों की उम्र बड़ी छोटी है
कोई एक पल के लिए
कोई दो पल के लिए
वक़्त खो जाये उससे पहले
आओ एक अपना घर बना लें हम भी !
.....
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आओ
"चलो मिलके इन टुकड़ों में,
सांझी बुनियाद ढूंढे,
खुले आकाश के नीचे पुराने रिश्तों की
वो हर एक याद ढूंढे
गलतियां-कमीयां आम हो गयीं
आओ, कुछ ख़ास ढूंढे
सूखे पत्तों की तरह
क्यूँ बिखर जाएं?
शाख़ से तोड़ दें नाता
तो किधर जाएं?
जो टूटने लगी है
वो आस ढूंढे
एक-एक घर उठा के,
स्नेह की सिलाई पे,
बुन लेते हैं एक नया पहनावा
माफ़ी और भलाई से
नयी शुरुआत के लिये
एक नया लिबास ढूंढे
फर्क ही नहीं होता हममें गर
तो लज्ज़त कहाँ से आती?
सरगम कैसे सजती,
ये रंगत कहाँ से आती?
चलो, इन्ही फ़र्कों में कहीं,
एक से एहसास ढूंढे
एक दुसरे की ज़रूरतों को
समझने की ज़रुरत है
जो लाते है वापस, उन रास्तों पे
चलने की ज़रुरत है
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
अपने आस-पास ढूंढे"
अंजना दयाल
सार्थक प्रेरक संदेश्…
ReplyDeleteचलो, इन्ही फ़र्कों में कहीं,
एक से एहसास ढूंढे
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
ReplyDeleteअपने आस-पास ढूंढे"
वाह , बहुत सुन्दर भाव ..
फर्क ही नहीं होता हममें गर
ReplyDeleteतो लज्ज़त कहाँ से आती?
सरगम कैसे सजती,
ये रंगत कहाँ से आती?
चलो, इन्ही फ़र्कों में कहीं,
एक से एहसास ढूंढे
वाह क्या बात है ... बहुत ही सुन्दर और महत्वपूर्ण बात कही है अंजना जी ने ...
वाह बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteकितने सालों दिन महीनों से
ReplyDeleteहरी पगडंडियों के पाँव भी मचलते हैं
सितारे आसमां से लटके हैं
हवाएँ खिलखिलाके चलती हैं
जाने कब आखिरी मौसम आए
आओ एक अपना घर बना लें हम भी
bahut sunder bhav liye shaandaar rachanaa.badhaai sweekaren.
चलो, इन्ही फ़र्कों में कहीं,
ReplyDeleteएक से एहसास ढूंढे
bahut khoob..
सकारात्मक सोच को दर्शाती उम्दा रचना।
ReplyDeleteआपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/
रिश्तों की उम्र बड़ी छोटी है
ReplyDeleteकोई एक पल के लिए
कोई दो पल के लिए
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सूखे पत्तों की तरह
क्यूँ बिखर जाएं?
शाख़ से तोड़ दें नाता
तो किधर जाएं?
वाह .. बहुत ही खूब कहा है ..बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
चलो, इन्ही फ़र्कों में कहीं,
ReplyDeleteएक से एहसास ढूंढे
सार्थक सोच लिये बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना...
दोनों ही प्रस्तुतियाँ बेहतरीन.
बहुत सुन्दर भाव लिये दोनों ही प्रस्तुतियाँ महत्वपूर्ण है आभार
ReplyDeleteजो लाते है वापस, उन रास्तों पे
ReplyDeleteचलने की ज़रुरत है
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
अपने आस-पास ढूंढे"
bahut khoob.....
yahi jeene ki kalaa hai.....
जो लाते है वापस, उन रास्तों पे
ReplyDeleteचलने की ज़रुरत है
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
अपने आस-पास ढूंढे"
bahut khoob.....
yahi jeene ki kalaa hai.....
जो लाते है वापस, उन रास्तों पे
ReplyDeleteचलने की ज़रुरत है
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
अपने आस-पास ढूंढे"
bahut khoob.....
yahi jeene ki kalaa hai.....
सार्थक प्रेरक संदेश्| धन्यवाद|
ReplyDeleteकितने सालों दिन महीनों से
ReplyDeleteहरी पगडंडियों के पाँव भी मचलते हैं
सितारे आसमां से लटके हैं
हवाएँ खिलखिलाके चलती हैं
जाने कब आखिरी मौसम आए
आओ एक अपना घर बना लें हम भी
Rashmi ji, bahut hi sunder!!!
waah! khubsurat ehsaas,aur khubsurat rachna....
ReplyDeleteआओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
ReplyDeleteअपने आस-पास ढूंढे...बेहद सुन्दर बात...
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
ReplyDeleteअपने आस-पास ढूंढे...
बहुत ही बढ़िया रचना है,
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
''जाने कब आखिरी मौसम आए''
ReplyDelete''सूखे पत्तों की तरह
क्यूँ बिखर जाएं?
शाख़ से तोड़ दें नाता
तो किधर जाएं?
जो टूटने लगी है
वो आस ढूंढे''
वाकई में क्या भरोसा जीवन का...
रश्मि जी और अंजना जी अप दोनों की रचनायें सुंदर लगीं.
प्रेरक संदेश्|
ReplyDeleteएक दुसरे की ज़रूरतों को
ReplyDeleteसमझने की ज़रुरत है
जो लाते है वापस, उन रास्तों पे
चलने की ज़रुरत है
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
अपने आस-पास ढूंढे"
क्या साधु भावना है....सुन्दर रचना
bahut hi khubsurat lafjon me sazi ek khubsurat rachna :)
ReplyDeleteआओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
ReplyDeleteअपने आस-पास ढूंढे" सकारात्मक सोच से ओत-प्रोत रचना हेतु साधुवाद
आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ
ReplyDeleteअपने आस-पास ढूंढे"
बहुत सकारात्मक दृष्टिकोण
अति सुन्दर
एक-एक घर उठा के,
ReplyDeleteस्नेह की सिलाई पे,
बुन लेते हैं एक नया पहनावा
माफ़ी और भलाई से
नयी शुरुआत के लिये
एक नया लिबास ढूंढे
bahut sundar aahvaan !!!