जंगल में मिलते हैं कुछ अनसुलझे रहस्य
हवाएँ भी कुछ राज खोलती हैं
दूर दूर तक फैले घने साए में
परियों सा मन
आंखमिचौली खेलता है
या बन्द कर आँखें
प्रश्नों के भंवर से बच निकलता है...........
रश्मि प्रभा
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रश्मि प्रभा
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बाबा तथा जंगल
परीकथाओं सा होता है जंगल
नारियल की तरह ठोस
लेकिन अन्दर से मुलायम
तभी तो तपस्वी मौन व्रत लिए
उसकी आगोश में निरंतर
चिंतन मुद्रा में लीन रहते हैं
बाबा ऐसा कहा करते थे.....!
इधर पता नहीं
आकाश की किस गहराई को छूते रहते
और पैरों के नीचे दबे -
किस अज्ञात को देख कर वे मंद-मंद मुस्काते रहते थे
उन्हीं पैरों के पास पडीं सूखी लकड़ियों को
अपने हाथों में लेकर सहलाते रहते थे.
मानो उनके करीब थकी हुई आत्माएं
उनकी आँखों में झांकती हुई कुछ
जंगली रहस्यों को सहलाती हुई निकल रही हैं.
फिर भी वे टटोलते रहते थे जीवन के रहस्य
उन्ही रहस्यों के बीच जहां उनके संघर्ष
समय के कंधे पर बैठ
निहारते थे कुछ अज्ञात.
उनके करीब पहाड़ खामोश जंगल के मध्य
अनंत घूरता रहता था.
यह भी सच है कि जंगली कथाओं की परिकल्पनाओं से बेखबर
मंचित हो सकने वाले उनके जीवन के अध्याय
अपनी खामोशी तोड़ते रहते,
ताकि उनका बचपन-
उनके अन्दर उछल कूद करता
जंगल को उद्वेलित कर सके
ताकि वे अपने संघर्ष को नये रूप में परिवर्तित होते देख सकें --सिवाय अंत के .
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ताकि वे अपने संघर्ष को नये रूप में परिवर्तित होते देख सकें --सिवाय अंत के
ReplyDeleteवाह .. बहुत खूब कहा है आपने हर पंक्ति में ..बेहद सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति ..इस रचना प्रस्तुति के लिये रश्मि जी को बहुत-बहुत बधाई ।
सम्वेदंयुक्त सटीक जंगल की परिभाषा , कविता पढ़कर सुकून मिलता है
ReplyDeleteऔर पैरों के नीचे दबे -
ReplyDeleteकिस अज्ञात को देख कर वे मंद-मंद मुस्काते रहते थे
उन्हीं पैरों के पास पडीं सूखी लकड़ियों को
अपने हाथों में लेकर सहलाते रहते थे.
मानो उनके करीब थकी हुई आत्माएं
उनकी आँखों में झांकती हुई कुछ
जंगली रहस्यों को सहलाती हुई निकल रही हैं
सार्थक!!!!
अशोक जी की गहन गम्भीर रचना!!
इस प्रस्तुति के लिए आभार रश्मि जी।
उनकी आँखों में झांकती हुई कुछ
ReplyDeleteजंगली रहस्यों को सहलाती हुई निकल रही हैं.
फिर भी वे टटोलते रहते थे जीवन के रहस्य
उन्ही रहस्यों के बीच जहां उनके संघर्ष
रहस्यों के बीच कि ये जिन्दगी ......कुछ अनकहे पहलू ...बिन बोले
आपने बहुत कुछ बता दिया ....बहुत खूब
बहुत गहरी बात कह दी जंगल के माध्यम से।
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut hi bhavmai prastuti,sarthak rachanaa.badhaai sweekaren.
ReplyDeletekaha aur kitne bache h aise jangal wale baba...
ReplyDeletezahar de dekar mara ja raha h jangal aur nadi wale babaon ko...
kaash ifrat men hote aise baba..
sunder rachna...badhai..
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! जंगल की परिभाषा को बखूबी व्यक्त किया है आपने!
ReplyDeleteजीवन का रहस्य बाबा और जंगल के माध्यम से भी अनसुलझा मगर कुछ पहचाना हुआ !
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti
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