खेलिए ज़ज़्बात से मत खौफ़ तारी कीजिये
मुस्करा के वेबजह ना मेहरबानी कीजिये
छेडिये इक जंग ग़ुरबत को मिटाने के लिए
घोषणा मत खोखली या मुँह जबानी कीजिये
कौन है जो चांदनी का नूर फैलाता है अब
सोचिये कुछ सोचिये कुछ मगजमारी कीजिये
आइये , भरिये जहां में उल्फतें ही उल्फतें
हर किसी से बात खुल कर प्यारी-प्यारी कीजिये
बैठे - बैठे प्यास का मसअला होगा न हल-
बात तब है , पत्थरों में नहर ज़ारी कीजिये
राम औ रहमान दोनो हैं अलग कहके प्रभात
देश की आवाम को न पानी - पानी कीजिये
खेलिए जज्बात से ना मेहरबानी कीजिए
ReplyDeleteमुस्कुराके इसतरह ना खौफ तारी कीजिए
रवीन्द्र जी आज ऐसा ही ज़माना है मुस्कुरा कर ही पीठ मे खंजर मारे जाते हैं वो भी अपने कहलाने वालों के द्वारा।
समंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए .... ख़ामोशी जब ज़ुबान खोलती है तो यूँ ज़िन्दगी के असली मायने दे जाती है .... बहुत बढ़िया रवीन्द्र जी
सुंदर...
ReplyDeleteगरीबी को मिटाने के लिए छेडिए इक जंग -
ReplyDeleteघोषणाएं खोखली ना मुंहजबानी कीजिए
.
तारीकियों में नूर लुटाता है कौन आजकल -
कुछ फ़िक्र कीजे जिक्र कीजे,मगजमारी कीजिए
गहन भावों के साथ .. सार्थकता लिए हुए सशक्त लेखन ...आभार ।
समंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए
यही जज़्बात क़ामयाबी दिलाता है।
राम औ रहमान दोनों है अलग कहके प्रभात-
ReplyDeleteशर्म से आवाम को मत पानी पानी कीजिए
बहुत बेहतरीन गज़ल कही है प्रभात जी ! आनंद आ गया ! ढेर सारी बधाई कबूल कीजिये !
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी केंद्र सरकार के निकम्मेपन से गरीबी, भूख और मंहगाई का खुला तांडव हो रहा है देश में. अब तक के सबसे बेचारे प्रधानमंत्री ने तो देश की शाख मिटाने में कोई कसार नहीं छोड़ा है ....बहुत जरुरी है हमें उनसे पिंड छुडाना और इसके लिए सचमुच एक जंग की आवश्यकता है . आपका आह्वाहन कॉम के हित में है ...बेहतरीन गज़ल,बधाईयाँ !
ReplyDeleteकिसी के जज्बात से खेलना वाकई बुरी बात है!....बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद रचना!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रवीन्द्र जी, दाद कबूल करें !
ReplyDeleteक्या बात है भाई जी, आप तो आज इंकलाबी तेवर में है वह भी एक सशक्त ग़ज़ल के साथ, बहुत-बहुत बधाईयाँ !
ReplyDeleteबहुत-बहुत-बहुत बेहतरीन गज़ल,बधाईयाँ !
ReplyDeleteराम औ रहमान दोनों है अलग कहके प्रभात-
ReplyDeleteशर्म से आवाम को मत पानी पानी कीजिए
kya sashakt andaz hai.....bahot achcha laga.
बढ़िया ।
ReplyDeleteआभार ।।
बेहतरीन गजल ....
ReplyDeleteराम औ रहमान दोनों है अलग कहके प्रभात-
ReplyDeleteशर्म से आवाम को मत पानी पानी कीजिए
उम्दा अशार....
सादर बधाइयां.
वाह!!!!!बहुत सुंदर
ReplyDeleteसमंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए
बहुत खूब .. सुन्दर
सादगी से बात कह देना इस गजल की सबसे बडी सुन्दरता है। समझने में कोई उलझन नहीं हुई।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteसमंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए
बहुत सुंदर और गहरी बात कही है एक बेहतरीन रचना के लिए शुभकामनाएं . !
nice
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल!!
ReplyDeleteवाह! वह!
ReplyDeleteबेहतरीन गजल
ReplyDeleteसमंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए
..bahut sundar saarthak prerak prastuti...
इस ग़ज़ल के पढ़कर मुझे अदम गौंडवी की यह पंक्तियाँ याद आ गईं-
ReplyDeleteछेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये / अदम गोंडवी
खेलिए जज्बात से ना मेहरबानी कीजिए
ReplyDeleteमुस्कुराके इसतरह ना खौफ तारी कीजिए
bahut badhiya......
ati sunder ...
ReplyDeleteदो-तीन दिनों तक नेट से बाहर रहा! एक मित्र के घर जाकर मेल चेक किये और एक-दो पुरानी रचनाओं को पोस्ट कर दिया। लेकिन मंगलवार को फिर देहरादून जाना है। इसलिए अभी सभी के यहाँ जाकर कमेंट करना सम्भव नहीं होगा। आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteराम औ रहमान दोनों है अलग कहके प्रभात-
ReplyDeleteशर्म से आवाम को मत पानी पानी कीजिए
sahi kaha aap-ne dono alag kahan hain .ishvar to ek hi hai puri gazal me ek ek shabd bahut sunder hai
badhai
rachana
समंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए ....
बहुत खूब..
लाज़वाब ग़ज़ल!
समंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए
वर्तमान परिस्थितियों को आईना दिखाती बढि़या ग़ज़ल।
समंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए...
शानदार ग़ज़ल !
समंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए ....बहुत ही शानदार गजल..बधाई..रविन्द्र जी..
लाज़वाब ग़ज़ल!
ReplyDeleteसमंदर खोदने से प्यास का मसअला होगा न हल -
ReplyDeleteइन पत्थरों में हो सके तो नहर जारी कीजिए --------------Vah Ravindra ji..shandar panktiyan..bahut prabhavshali.
Poonam
गज़ब शेर...गज़ब जज़्बात...गज़ब कशिश...
ReplyDeleteगज़ब शेर...गज़ब जज़्बात...गज़ब कशिश...
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteaniymit pathak hun , samyabhaw ke kaaran yada-kada hi aana hota hai.lekin jb bhi aana hota hai kuchh-n-kuchh achha padhne ko milta hai jaisa ki uprokt gajal. राम औ रहमान दोनों है अलग कह के प्रभात-
ReplyDeleteशर्म से आवाम को मत पानी पानी कीजिए
.......................khubsurat prastuti...........
bahut khoob..
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteअति सुंदर एवं सार्थक रचना ।🍁🍁🍁
ReplyDelete