कभी शब्द छोटे छोटे नज़र आते हैं
पर इनके मायने
राख के ढेर में दबी चिंगारी से कम नहीं ...
रश्मि प्रभा
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क़ानून ...
हमें क़ानून का उतना डर नहीं है
जितना डर इस बात का है
कि -
तुम्हारे हांथों में क़ानून है !
न जाने कब
यह कह दो कि -
तुमने क़ानून का उल्लंघन किया है
और हमें फांसी चढ़ा दो !!
हे ईश्वर ...
हे ईश्वर ! हे अन्तर्यामी ! हे पालनहार !
कब तक -
तू यूँ ही मेरी परीक्षा लेता रहेगा ?
कब तक -
तू यूँ ही मुझे झकझोरते रहेगा ?
कब तक -
तू यूँ ही मुझे हार-जीत में उलझाए रहेगा ?
मुझे मालुम है कि -
मैं तुझसे जीत नहीं सकता हूँ, इसलिए
तू आज से -
मेरी परीक्षा लेना बंद कर दे !
मैं जान गया हूँ कि -
तू मेरे अन्दर ही बैठा हुआ है !
बस इशारा करते चल -
जैसा तू चाहेगा, वैसा मैं करते चलूँगा !!
महा-भारत ...
आज, कोई दुर्योधन नहीं है !
लेकिन
धृतराष्ट्रों की संख्या में -
गड़बड़ झाला है !
संख्या, गिनने में पकड़ से बाहर है !
पता नहीं क्यों ? कोई समझाए !!
ये कैसा महा-भारत है ??
अंगार ...
जिंदगी-नुमा
चिलचिलाती धूप में
इंसान -
लू की तेज लपटों में
चलते चलते
न जाने कब, कैसे
खुद ही
अंगार बन जाता है
और -
खुद ही जलता है
खुद ही तपता है
खुद ही सहता है
फिर भी -
अनजानी राहों पे
धीरे धीरे -
आगे बढ़ते रहता है ...
श्याम कोरी 'उदय'
bahut achchi sarthak kshanikayen.
ReplyDeletemahabhaarat vishesh hai.
बहुत ही बढि़या ..बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
ReplyDeleteतीनो ही रचनाये बेजोड ………आईना दिखाती हुई।
ReplyDeletebahut hi breikise karigiri ki hai !
ReplyDeleteuttam shilp!
badhaiyan !
bahut badiya...sundar....
ReplyDeletebahut badiya...sundar....
ReplyDeleteअनजानी राहों पर चलते रहना ही तपते हुए, जलते हुए यही तो जीवन की कीमत है...
ReplyDeleteआज, कोई दुर्योधन नहीं है !
ReplyDeleteलेकिन
धृतराष्ट्रों की संख्या में -
गड़बड़ झाला है !
संख्या, गिनने में पकड़ से बाहर है !
पता नहीं क्यों ? कोई समझाए !!
ये कैसा महा-भारत है ??
badhiya prastuti.
badhiya
ReplyDeleteप्रभावशाली रचनाएं . प्रस्तुति और उदय जी को बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ... सदैव स्नेह बना रहे ... आशा व विश्वास के सांथ अनंत, असीमित, अमिट शुभकामनाएं ...
ReplyDelete"तुम्हारे हांथों में क़ानून है !
ReplyDeleteन जाने कब
यह कह दो कि -
तुमने क़ानून का उल्लंघन किया है"
वाह! बेहतरीन।
पता नहीं क्यों ? कोई समझाए !!
ReplyDeleteये कैसा महा-भारत है ??
वाह! उदय जी! वाह!
तीनों रचनाएं परिवेश के विद्रूप का सार बिखेरती सी लगतीं हैं चारों ओर.
ReplyDeleteसार्थक संवेदनशील रचनाएं...
ReplyDeleteआदरणीय श्याम जी को सादर बधाईयाँ....
ऐसे क़ानून से तो डरना ही होगा
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