दिन किस कदर बदल गए
तेरी खुशबू के बगैर
पंछी भी उदास हो गए ...
रश्मि प्रभा
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पंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं....
ज़िक्र होता नहीं जवानों में,
लोग गिनने लगे सयानों में.
होगा अपना भी खरीदार कोई,
सज गए हम भी अब दुकानों में.
वो मोहब्बत नहीं मिलेगी कहीं,
जो मोहब्बत है माँ के तानों में.
एक कमरे का घर तो बेच दिया,
कई कमरे हैं अब मकानों में.
इश्क का कारोबार चल निकला,
प्यार बनता है काखानों में.
ज़िक्र दुश्मन का कर रहे हो तुम,
नाम मेरा भी है बयानों में.
फिर बहाना करो ना आने का,
इश्क जिंदा है बस बहानों में.
पंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं,
तेरी खुशबू कहाँ थी दानों में.
अखिल
वाह! साहब! वाह!
ReplyDeleteएक कमरे का घर तो बेच दिया,
ReplyDeleteकई कमरे हैं अब मकानों में.
पंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं,
तेरी खुशबू कहाँ थी दानों में.
वाह वाह वाह ………………क्या खूब लिखा है दिल को छू गयी।
पंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं,
ReplyDeleteतेरी खुशबू कहाँ थी दानों में.
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
wah ji, padhkar behad acha laga
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवो मोहब्बत नहीं मिलेगी कहीं,
ReplyDeleteजो मोहब्बत है माँ के तानों में.
एक कमरे का घर तो बेच दिया,
कई कमरे हैं अब मकानों में.
bahut sundar rachna !
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteएक कमरे का घर तो बेच दिया,
ReplyDeleteकई कमरे हैं अब मकानों में.
पंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं,
तेरी खुशबू कहाँ थी दानों में.
in panktiyon ne to kavita me jaan dal di.vaah.
lajabab..prastuti..
ReplyDeleteदिन किस कदर बदल गए
ReplyDeleteतेरी खुशबू के बगैर
पंछी भी उदास हो गए ...
ekdam yahi hua......
इश्क का कारोबार चल निकला,
ReplyDeleteप्यार बनता है काखानों में.
sahi varnan kiya hai......
एक कमरे का घर तो बेच दिया,
ReplyDeleteकई कमरे हैं अब मकानों में.
वाह!
हर पंक्ति गहरी संवेदनाओं की वाहक है!
शुभकामनाएं!
बेहद संजीदा खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteपंछियों ने इन्हें छुआ भी नहीं,
ReplyDeleteतेरी खुशबू कहाँ थी दानों में.
वाह ...बहुत खूब ।
Badalte haalat se upji wahi purani shikayatein.. naye andaaz me.. behad khubsurat
ReplyDeleteउम्दा अशआर....
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल...
सादर बचाई...
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल.
ReplyDeleteसराहनीय रचना
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