ख़ुशी में भय
(पूनम माथुर)
और झूठ में ख़ुशी ...
इस बदली हवा ने सारे मायने बदल दिए हैं
रश्मि प्रभा
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कुछ तो लगता है
त्योहारों से मुझे अब डर लगता है
बचपन बीता
सब कुछ सपना सा लगता है
रिश्ता एक छलावा लगता है..
छल-बल दुनिया के नियम
कौन किसका
सबको अब अपना अहम् अच्छा लगता है
ऊपर उठाना-गिराना अब यही सच्चा धर्म लगता है
खून-खराबा - अब यही धर्म सब को अच्छा लगता है
त्योहारों का मौसम है
सब को 'नमस्ते' कहना अच्छा लगता है
दुबारा न मिलने का यह संदेश अच्छा लगता है
राम-रहीम का ज़माना पुराना लगता है
बुजुर्गों का कुछ भी कहना बुरा लगता है
मारा-मारी करना अच्छा लगता है
खुदगरजी का जमाना अच्छा लगता है
नैनो से तीर चलाने का ज़माना अब पुराना लगता है
गोली-बारी चलाना अच्छा लगता है
भ्रष्टाचार और घूस कमाना अच्छा लगता है
बदलते दुनिया का नियम अच्छा लगता है
शोर-शराबा करना अच्छा लगता है
हिटलर और मुसोलिनी कहलाना अच्छा लगता है
हिरोशिमा की तरह बम बरसाना अच्छा लगता है
अब गांधी-सुभाष बनना किसी को अच्छा नही लगता है
शहीदों की कुर्बानी बेमानी लगती है
मैं ' आज़ाद हूँ
दुनिया मेरी मुट्ठी में है - कहना अच्छा लगता है
अपने को श्रेष्ठ ,दूसरे को निकृष्ट कहना अच्छा लगता है
चिल्लाना और धमकाना अच्छा लगता है
बेकसूर को कसूरवार बनाना अच्छा लगता है
न्यायालय में झूठा बयान देना अच्छा लगता है
औरों को सता कर 'ताज' पहनना अब अच्छा लगता है
झूठ को सच कहना अच्छा लगता है
दिलों को ठेस पहुंचाना अच्छा लगता है
किसी ने कहा-क्या शर्म नहीं आती
शर्म को ख़ाक करना अच्छा लगता है
अब यह सब करना ही अच्छा लगता है....
(पूनम माथुर)
पूनम जी बहुत अच्छी रचना शुभकामनाए।
ReplyDeleteरश्मि दी आपका चयन भी कमाल का है। रोजना एक सुंदर कविता परोसने के लिए बहुत बहुत आभार
तीखे तंज ... पूनम जी ने आज के हालात पर बहुत खूब कह डाला इस कविता के माध्यम से ... रश्मि जी की क्षणिका भी बहुत खूब है... आभार रश्मि जी..
ReplyDeletewaah... Aunty ji, aapki kavita bahut hi gazab hai... zaroori hai ki aisi baatein likhi jaayen...
ReplyDeleteBadi Maa... aapka to koi jawaab hi nahi...
ख़ुशी में भय
ReplyDeleteऔर झूठ में ख़ुशी ...
बेहतरीन अभिव्यक्ति .. इस अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार ।
पूनम के उद्गारों को 'वट वृक्ष'पर स्थान देने हेतु रश्मि प्रभा जी का आभार।
ReplyDeleteआज मानव के मन के भावों में जो चलता रहता है उस पर तीक्ष्ण रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteदुनिया का अजीब ही कारोबार लगता है !
ReplyDeleteतीखा व्यंग्य !
jo achchaa aapko lgtaa hai vhi hme bhi achchaa lgtaa hai bhtrin rchnaa ke liyen bdhaai
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteपूनम जी की भावपूर्ण सुन्दर रचना पढ़ ने को मिली धन्यवाद....
ReplyDeleteपूनम जी बहुत अच्छी और भावपूर्ण रचना पढ़ने को मिली ..बहुत -बहुत धन्यवाद..
ReplyDeleteसबको अब अपना अहम् अच्छा लगता है....
ReplyDeleteसही कहा है आपने..
अच्छी लगी कविता!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-704:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सशक्त रचना....
ReplyDeleteपूनम जी को सादर बधाई....