चलते चलते यूँ हीं, बेवजह
हम हो जाते हैं अजनबी
बन्द कर देते हैं मुखर दरवाज़े
सन्नाटे में ढूँढने लगते हैं कोई कारण
...... कुछ होता नहीं पर हम !
हँसी को कैद कर उदास हो जाते हैं -
रश्मि प्रभा
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हंसी को आजाद करते हैं ....
तुम्हारे और मेरे बीच
यह खामोशी क्यूं
आपस में हमारी कोई
ऐसी बात भी
नहीं हुई
जो तुम्हें और मुझे
बुरी लगी हो ...
फिर यह
पहल करने का
अहम बेवजह ही पाल लिया था
मन ने
कौन समझाएगा
अब मन को
छोटी-छोटी बातें
बेमतलब की करके
हंस लिया करते थे
वो हंसी बेकरार है
मेरे तुम्हारे अहम के पीछे
तुम गुमसुम हो
तुम्हारा चेहरा देख कर
मैं भी खामोश हूं
ऐसा करते हैं भूल जाते हैं
अहम को
हंसी को आजाद करते हैं
आओ कुछ कहने की
शुरूआत करते हैं ....
तुम्हें पता है
मैने कहीं पढ़ा था
उंगलियों के मध्य
ये रिक्त स्थान
क्यूं रहता है ?
वो इसलिए की
जब हम एक दूसरे का
हांथ थामें तो
उसमें मजबूती कायम रहे :)
बस यही मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पे
भली लगती है
कैद होकर हंसी भी
सच मानो
बिल्कुल नमक की डली लगती है .... !!!
सीमा सिघल 'सदा'
http://sada-srijan.blogspot.com/
http://ladli-sada.blogspot.com/
सुंदर रचना
ReplyDeleteहंसी को आजाद करते हैं
आओ कुछ कहने की
शुरूआत करते हैं ....
क्या बात है...
हँसी को कैद कर उदास हो जाते हैं -
ReplyDeleteजाने क्यूँ !!!
sach men......jane kun?
bahut sunder ...
ReplyDeletekar diya azaad maine bhi aaj...
ReplyDeletelo kah diya jo kahna tha aaj
meri baatein pahuche na pahuche tum tak
tumhari baat pahuchi hai mujh tak aaj...
सुन्दर रचना
ReplyDeleteGyan Darpan
.
सुंदर!
ReplyDeleteहंसी को आजाद करें तो कितने और चेहेरों पर वह बिखर जाती है।
ReplyDeleteकभी-कभी हंसी बंधक भी हो जाती है !
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteआद सीमा जी को सादर बधाई....
आभार....
bhaut hi sundar....
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार इस रचना को वटवृक्ष में स्थान में देने के लिये .. ।
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