चलते चलते यूँ हीं, बेवजह
हम हो जाते हैं अजनबी
बन्द कर देते हैं मुखर दरवाज़े
सन्नाटे में ढूँढने लगते हैं कोई कारण
...... कुछ होता नहीं पर हम !
हँसी को कैद कर उदास हो जाते हैं -
जाने क्यूँ !!!

रश्मि प्रभा
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हंसी को आजाद करते हैं ....

तुम्‍हारे और मेरे बीच
यह खामोशी क्‍यूं
आपस में हमारी कोई
ऐसी बात भी
नहीं हुई
जो तुम्‍हें और मुझे
बुरी लगी हो ...
फिर यह
पहल करने का
अहम बेवजह ही पाल लिया था
मन ने
कौन समझाएगा
अब मन को
छोटी-छोटी बातें
बेमतलब की करके
हंस लिया करते थे
वो हंसी बेकरार है
मेरे तुम्‍हारे अहम के पीछे
तुम गुमसुम हो
तुम्‍हारा चेहरा देख कर
मैं भी खामोश हूं
ऐसा करते हैं भूल जाते हैं
अहम को
हंसी को आजाद करते हैं
आओ कुछ कहने की
शुरूआत करते हैं ....
तुम्‍हें पता है
मैने कहीं पढ़ा था
उंगलियों के मध्‍य
ये रिक्‍त स्‍थान
क्‍यूं रहता है ?
वो इसलिए की
जब हम एक दूसरे का
हांथ थामें तो
उसमें मजबूती कायम रहे :)
बस यही मुस्‍कान
तुम्‍हारे चेहरे पे
भली लगती है
कैद होकर हंसी भी
सच मानो
बिल्‍कुल नमक की डली लगती है .... !!!

सीमा सिघल 'सदा'
http://sada-srijan.blogspot.com/
http://ladli-sada.blogspot.com/

11 comments:

  1. सुंदर रचना

    हंसी को आजाद करते हैं
    आओ कुछ कहने की
    शुरूआत करते हैं ....


    क्या बात है...

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  2. हँसी को कैद कर उदास हो जाते हैं -
    जाने क्यूँ !!!
    sach men......jane kun?

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  3. kar diya azaad maine bhi aaj...
    lo kah diya jo kahna tha aaj
    meri baatein pahuche na pahuche tum tak
    tumhari baat pahuchi hai mujh tak aaj...

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  4. हंसी को आजाद करें तो कितने और चेहेरों पर वह बिखर जाती है।

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  5. कभी-कभी हंसी बंधक भी हो जाती है !

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  6. सुन्दर भावाभिव्यक्ति.....
    आद सीमा जी को सादर बधाई....
    आभार....

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  7. आपका बहुत-बहुत आभार इस रचना को वटवृक्ष में स्‍थान में देने के लिये .. ।

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