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बचपन ... सोचते ही
चकोर की तरह सर पीछे अटक जाता है
दिन दुनिया से बेखबर
तितलियों सा मन
काबुलीवाले की मिन्नी बन जाता है
फ्रॉक में ढेर सारा पिस्ता बादाम
और कभी न ख़त्म होनेवाली बातों संग
जाने कहाँ कहाँ घूम आता है ....
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रश्मि प्रभा
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इंदु
बचपन की याद
कितना खूबसूरत,अल्हड़ सा बचपन
कंचे की चट-चट में बीता वो दिन
जीत की खुशी कभी हार का गम
रंगबिरंगे कंचों में घूमता बचपन।
गिल्ली डंडे का है आज मैदान जमा
किसकी कितनी दूर,है यही शोर मचा
डंडे पे उछली गिल्ली कर रही है नाच
दूर कहीं गिरती,आ जाती कभी हाथ
भागते हैं कदम कितने बच्चों के साथ
गिल्ली डंडे में बीता है बचपन का राग।
कभी बित्ती से खेलते कभी मिट्टी का घर
पानी पे रेंगती वो बित्ती की तरंग
भर जाती थी बचपन में कितनी उमंग।
कुलेड़ों को भिगोकर तराजू हैं बनाए
तौल के लिये खील-खिलौने ले आए
सुबह-सुबह उठकर दिये बीनने की होड़
लगता था बचपन है,बस भाग दौड़
सारे खेलों में ऊपर रहा गिट्टी फोड़
सात-सात गिट्टियाँ क्या खूब हैं जमाई
याद कर उन्हें आँख क्यूं भर आई।
हाँ घर-घर भी खेला सब दोस्तों के साथ
एक ही घर में सब करते थे वास
हाथ के गुट्टों में उछला,वो मासूम बचपन
दिल चाहे फिर लौट आए वो मधुबन
तुझ सा न कोई और दूसरा जीवन
कितना खूबसूरत,अल्हड़ सा बचपन…
इंदु
बचपन की यादों से सराबोर अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteबचपन की यादों को खूब संजोया है।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeletekhubsurat yaade hai bachpan kii...
ReplyDeleteयादों में ही रह जाता है बचपन ...
ReplyDeleteअच्छी कविता !
सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteइंदु जी को बधाई...
सादर आभार...
बचपन ... सोचते ही
ReplyDeleteचकोर की तरह सर पीछे अटक जाता है
दिन दुनिया से बेखबर
तितलियों सा मन
काबुलीवाले की मिन्नी बन जाता है
अनमोल खजाना बचपन का ...।
बचपन के दिन भी क्या दिन थे...
ReplyDeleteबचपन की यादें ताजा कर दी। सुंदर प्रस्तुति।
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