परिवर्तन की हवा तो हर वक़्त चलती है
उपदेश देने से परे
हम अपने में सुधार लायें
तो सवेरा अपना होगा
आगत सुनहरा होगा ....
रश्मि प्रभा

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परिवर्तन

कहते हैं परिवर्तन संसार का नियम है..
दुनिया बदल भी रही है...निरंतर..
आज आज हम सभी चाहते हैं..
परिवर्तन हो सुधार हो.. रूपांतरण हो..
पर ये क्यों भूल जाते हैं हम
कि "परिवर्तन" और "सुधार" पृथक हैं..
दो अलग .. दो मुक़्तलिफ़ चीज़ें हैं.. !!!!
परिवर्तन.. "बदलाव" - अच्छे भी हो सकते हैं.. बुरे भी...
पर सुधार की दिशा नकारात्मक से सकारात्मक की ओर है.. !!
तमस से प्रकाश की ओर है...!!!
हम सब की "चाहना" है.. एक क्रन्तिकारी पैदा हो..
क्रांति लाये..
एक मसीहे की तलाश में हैं सब..!!
पर साथ ही ये "इच्छा" भी..
कि वो किसी और देश किसी और प्रान्त में पैदा हो...!!!
हमारे बच्चे..... हमारा भाई.. हमारे अपने.. तो बस अच्छे पद पे कार्यरत हो बस...!!!
शहीदों को आतंकवादी बताने वाले युग में जी रहे हैं हम सब !!!!!!!!!!
फिर एक प्रश्न का जन्म .....
कि कहाँ से फूटे लौ !!
कहाँ से निकले धारा...
कहाँ से हो शुरुआत..
कहाँ से ??
फिर मनः स्थिति उत्पन्न हो जाती है.. आरोप-प्रत्यारोप की..
पर सब अवगत है एक सनातन सत्य से..
आरोप-प्रत्यारोप से निष्कर्ष नहीं आता..!
बस .. घुमते रह जाते हैं परिधि पर..!!!
इसलिए ज़रूरी है स्वयं में सुधार लाना.."मैं" में सुधार लाना..
कहा ही गया है.. "मैं सुधर जाऊं तो जग सुधर जाए..!!
बूंद ही सही पर.. पर हैं तो गागर का ही अंश..
अगर हर "मैं" शुरुआत करे ..
तो निश्चय ही सुधार आएगा.. हम में.. सब में.. जग में...!!!


RJ Mohnish (मोहनीश वर्मा )

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. bahut hi uttam achchi shiksha saarthak sandesh deti hui kavita sahi kaha hai....bura jo dekhan mai chala bura na miliya koi ..jo dil khoju apna mujhse bura na koi.pahle apne ko hi sudharna chahiye.

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  3. SAGAR MANTHAN KAR DIYA AAPNE TO ,
    AMRIT OR VISH SAB ALAG ALAG
    AB SABKO CHAHIYE AMRIT TO NEELKANTH KAUN BANE


    आरोप-प्रत्यारोप से निष्कर्ष नहीं आता..!
    बस .. घुमते रह जाते हैं परिधि पर..!!!
    इसलिए ज़रूरी है स्वयं में सुधार लाना.."मैं" में सुधार लाना..
    कहा ही गया है.. "मैं सुधर जाऊं तो जग सुधर जाए..!!
    बूंद ही सही पर.. पर हैं तो गागर का ही अंश..
    अगर हर "मैं" शुरुआत करे ..
    तो निश्चय ही सुधार आएगा.. हम में.. सब में.. जग में...!!!

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  4. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  5. समष्टि का सुधार व्यष्टि के सुधार पर ही केंद्रित है!
    सुंदर रचना!

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  6. काश कि हम ये समझ पाते...

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  7. किसी भी सुधार की शुरुआत घर से हो तो बात ही क्या !

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