चमकती उजली ऋतू का ,रूप धुंधलाने लगा है
कोहरा छाने लगा है
बीच अवनी और अम्बर ,आ गया है आवरण सा
गयी सूरज की प्रखरता,छा गया कुछ चांदपन सा
मौन भीगे,तरु खड़े है,व्याप्त मन में दुःख बहुत है
बहाते है,पात आंसू, रश्मियां उनसे विमुख है
कभी बहते थे उछालें मार कर, जब संग थे सब
हुए कण कण,नीर के कण,हवाओं में भटकते अब
कभी सहलाती बदन,वो हवाएं चुभने लगी है
स्निग्ध थी तन की लुनाई,खुरदुरी होने लगी है
पंछियों की चहचाहट ,हो गयी अब गुमशुदा है
बड़ी बदली सी फिजा है,रंग मौसम का जुदा है
लुप्त तारे,हुए सारे,चाँद शरमाने लगा है
कोहरा छाने लगा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/ghotoo-ki-kavitayen/
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
वाह कितने सुन्दर भावो को संजोया है।
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .. काव्य
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना |
ReplyDeletekhoob pasand aayee......
ReplyDeleteसही हालत बयाँ किये है शरद के आगमन के. बहुत खूबसूरत रचना. बधाई.
ReplyDeletebhaut hi sundar....
ReplyDeleteमौन भीगे,तरु खड़े है,व्याप्त मन में दुःख बहुत है
ReplyDeleteबहाते है,पात आंसू, रश्मियां उनसे विमुख है.
बहुत सुन्दर.