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नाम: मुकेश कुमार सिन्हा
जन्म स्थान : बेगुसराय (बिहार)
शैक्षणिक योग्यता: स्नातक (विज्ञानं), PGD ग्रामीण विकास
जन्म तिथि: ०४.०९.१९७१
ब्लॉग: http://www.jindagikeerahen.blogspot.com/
जिंदगी की राहें! कभी लगती है, बहुत लम्बी! तो कभी दिखती है बहुत छोटी!! निर्भर करता है पथिक पर, वो कैसे इसको पार करना चाहता है.........
मैं मुकेश कुमार सिन्हा झारखंड के धार्मिक राजधानी यानि देवघर (बैद्यनाथ धाम) का रहने वाला हूँ! वैसे तो देवघर का नाम बहुतो ने सुना भी न होगा, पर यह शहर मेरे दिल मैं एक अजब से कसक पैदा करता है, ग्यारह ज्योतिर्लिंग और १०८ शक्ति पीठ में से एक है, पर मेरे लिए मेरा शहर मुझे अपने जवानी की याद दिलाता है, मुझे अपने कॉलेज की याद दिलाता है और कभी कभी मंदिर परिसर तथा शिव गंगा का तट याद दिलाता है.......तो कभी दोस्तों के संग की गयी मस्तियाँ याद दिलाता है.......काश वो शुकून इस मेट्रो यानि आदमियों के जंगल यानि दिल्ली मैं भी मिल पाता ....पर सब कुछ सोचने से नहीं मिलता......और जो मिला है उससे मैं खुश हूँ........ क्योंकि इस बड़े से शहर मैं मेरी दुनिया अब सिमट कर मेरी पत्नी और अपने दोनों शैतानों (यशु-रिशु)के इर्द-गिर्द रह गयी है.........और अपने इस दुनिया में ही अब मस्त हूँ.........खुश हूँ !!
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!! सड़क पे बचपन !!
तपती गर्मी
दौड़ती सड़क
भागती मेरी कार
एकाएक सिग्नल हुआ लाल
चर्र्र्रर.......... ब्रेक
थम गयी कार
जेब्रा क्रॉसिंग से ठीक पहले......!!
.
"सारे सपने कहीं खो गए,
हाय ! हम क्या से क्या हो गए...."
सुरीली गमगीन आवाज
में था खोया
तभी था कोई जो
खिड़की पर हाथ हिलाते हुए चिल्लाया
"बाबूजी! ले लो
ये नीली चमकीली कलम"
नहीं!!! - मैंने कहा!
.
झुलसती गर्मी में
था वो फटेहाल
उम्र...?????
शायद आठ साल,
लेकिन फिर भी
तपती गर्मी में कांपती आवाज
"बाबूजी! ले लो न"
"एक के साथ, एक मुफ्त है!!"
ओह! रहने दे यार!!
क्यूं करता है बेहाल॥
.
मुफ्त! मुफ्त!! मुफ्त!!!
इस छोटे से शब्द में
मुझे दिखी एक चमक!!
वो छोरा जा ही रहा था
चिल्लाया मैं
'दिखा जल्दी
सिग्नल होने वाली है!'
और फिर उसे पकडाया
दस का नोट
और मेरे हाथों में दो कलम!!
.
सिग्नल हुई हरी
गियर बदली
निकल गया सर्रर्रर!!
पर उस छोटे से वक़्त का
किया मैंने आत्म-मंथन!!!!!!
उस छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
क्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश में,
उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी........?
() मुकेश कुमार सिन्हा
() () ()
सच कहा……………हम सब आज सिर्फ़ अपना ही सोचते हैं यही तो ज़िन्दगी भर देखते और सीखते आये हैं शायद उस के आगे सोचना ही नही चाह्ते मगर आपने उस के आगे सोचा और कहने की हिम्मत की जो काबिल-ए-तारीफ़ है।
ReplyDeleteअच्छी पंक्तिया है .....
ReplyDeleteयहाँ भी अपने विचार प्रकट करे ---
( कौन हो भारतीय स्त्री का आदर्श - द्रौपदी या सीता.. )
http://oshotheone.blogspot.com
बहुत संवेदनशील रचना है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील ....
ReplyDeleteसुंदर कविता मुकेश जी .. मार्मिक रचना है... जीवन को बहुत करीब से चित्रित किया है आपने .. बहुत खूब !
ReplyDeleteye bhi ek bidambna he, ye hamari rajdhani delhi he
ReplyDeletebaki jagha ki bate kya karni, baise ab aapko ye sab nhi dikhega, kyunki ab meir dilli paris ban jayegi, hindustaan ki ye garibi kahi kho jayegi,
बहुत ही संवेदनशील रचना ..यथार्थ को कहती हुई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबढ़िया रचना ....
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteसुन्दर और सारगर्भित अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत खुदगर्ज है हम..अपना ही रुख देखते है
ReplyDeleteबेहद भावुक कर देने देने वाली रचना है यह
ReplyDeletemere pass kahne ke liye shabd ki kami hai.....bas itna kahunga aap sabko dhanyawad...!! jo meri panktiyon ko ye ahmiyat mil saki......dhanyawad!!!!!!:)
ReplyDeletebahut hi maarmik rachna... sahi kaha aapne..!
ReplyDeleteaatam chintan bahut jaruri hota hai hum sabke liye,aapki iss rachna ne kuch sochne per jarur majbur kar diya hai.... :)
ReplyDeletemukesh ji zindagi ke bahut se rang hain jinme kuchh chatk rang hain to kuchh halke se ,aapki ye rachna usi ko bata rahi marmik to hai chhuti hai , par sadak par bachpan aaj bhi bit rahe .......
ReplyDeletesarkar aur ngo paper kai uper in logo kai liya bahut kuch karta hai aur in sab ka haq khud khaa jata hai
ReplyDeletemukesh ji ati uttam rachna
ReplyDeletebahut badiya rachna...kisi ke dukh ki kisko chinta hai...har taraf insaan pehle apne faide per hi nigha daalta hai...
ReplyDeleteउस छोटे बच्चे की बचपनसे बड़ा
ReplyDeleteक्यूं दिखा "मुफ्त" का लालच
क्यूं नहीं दिखी
उस गरम तपिश में,
उसके जीने की कोशिश..........
क्यूं नहीं दिखी........?
हम वही देखते हैं जो देखना चाहते हैं ..तस्वीर के इस रुख पर अच्छा प्रकाश डाला इस कविता ने ..!
aap sabka bahut bahut abhivadan!! mere iss kavita ke liye apna samay dene ke liye...:)
ReplyDeletedhanyawad!!
bahut badhiya, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteबहुत कुछ ऐसा घटित हो जता है जिसे नहीं होना चाहिए....जब तुम्हारे शब्द कारण ढूँढने लगे तो समझ लो की चेतना जाग गई ...तुमने हमें भी जताया कि हमें अपनी जिम्मेदारियां कहाँ निभानी हैं , किनका दर्द बाँटना है , किन्हें सूकून देना है...
ReplyDelete...बहुत खूब लिखा है...फिर वही कहूँगी...कलम को थमने नहीं देना ...शुभकामनायें साथ हैं...
mukesh... itni gehraai se kabhi socha nahin maine... bahut hi sunder tareeke se abhivyakt liya hai aapne.. sadak oe bachpan !!
ReplyDeletethaNX!!!!!!!!!!!!
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