!!प्रेम..... !!
प्रेम.... !!
हम जानते तो हैं नहीं ,
परन्तु
जानना चाहते हैं
कि क्या है ये ?
दर्द या दवा ?
कुदरत का करिश्मा ?
आस्था या विश्वास ?
लौटते रास्ते का मुसाफिर ?
या फिर चढ़ते रास्ते का तीर्थयात्री ?
ख़यालों की तितली ?
या कायनात का सबसे उम्दा रंग ?
बंद मुट्ठी का रहस्य या कि
खुले आँगन की महक ?
अथवा....
आत्मदाह या आत्मदान ?
या फिर ...
सभी संवेदनाओं की
एक बेताब सी प्रतीक्षा...!
() स्वप्न मञ्जूषा शैल
सच प्रेम का स्वरूप तो दिव्य होता है जिसे जानने के लिये खुद को मिटाना पडता है…………………सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक कहा ........
ReplyDeleteधन्यवाद !
जानना चाहते हैं
ReplyDeleteकि क्या है ये ?
दर्द या दवा ?
कुदरत का करिश्मा ?
आस्था या विश्वास ?
बहुत ही सुन्दर और गहराई युक्त भावमय प्रस्तुति ।
बेहतरीन कविता के लिए ढेरो बधाईयाँ !
ReplyDelete!!प्रेम..... सभी संवेदनाओं की
ReplyDeleteएक बेताब सी प्रतीक्षा...!भावमय प्रस्तुति ।
सुन्दर बेहतरीन भाव लिए रचना...
ReplyDeleteबहुत कुछ लिखने के बाद शायद अभी भी प्रेम को लिखना आसान नही है ....
ReplyDeletebahut sundar ..acche lage is rachna ke bhaav
ReplyDeleteप्रेम आस्था और विश्वास ही तो है ...नहीं क्या ..
ReplyDelete@प्रेम सभी संवेदनाओं की बेताब सी प्रतीक्षा ...
हालाँकि कोई प्रतीक्षा नहीं है फिर भी अच्छी लगी ये पंक्तियाँ ..!
सभी संवेदनाओं की
ReplyDeleteएक बेताब सी प्रतीक्षा...!
man ko kuredati kavita!
तभी न हम कहते हैं न ..दी आप मेरी नैहर की हैं...
ReplyDeleteअपना फोटो देख कर हम तो अचकचा गए थे..कि कौनो हमरी जूडूवाँ भी है का..
अब ई भी तो प्रेम है न दी ...इसकी का परिभाषा होगी भला ..:)
बहुत आभार मानते हैं...कि आपने इस योग्य समझा..
सच में..