प्यार ....... कहते ही एक सिहरन सी होती है, पलकें भारी हो उठती हैं , पैरों से रुनझुन के गीत बजते हैं ...
क्या है यह प्यार ? कि सब कहते हैं - 'मैं तख्तो ताज को ठुकरा के तुझको ले लूँगा कि तख्तो ताज से तेरी गली की ख़ाक भली '
ओह ! प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो........()रश्मि प्रभा



!!प्रेम..... !!

प्रेम.... !!
हम जानते तो हैं नहीं ,
परन्तु
जानना चाहते हैं
कि क्या है ये ?
दर्द या दवा ?
कुदरत का करिश्मा ?
आस्था या विश्वास ?
लौटते रास्ते का मुसाफिर ?
या फिर चढ़ते रास्ते का तीर्थयात्री ?
ख़यालों की तितली ?
या कायनात का सबसे उम्दा रंग ?
बंद मुट्ठी का रहस्य या कि
खुले आँगन की महक ?
अथवा....
आत्मदाह या आत्मदान ?
या फिर ...
सभी संवेदनाओं की
एक बेताब सी प्रतीक्षा...!



() स्वप्न मञ्जूषा शैल

11 comments:

  1. सच प्रेम का स्वरूप तो दिव्य होता है जिसे जानने के लिये खुद को मिटाना पडता है…………………सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. बहुत सटीक और सार्थक कहा ........
    धन्यवाद !

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  3. जानना चाहते हैं
    कि क्या है ये ?
    दर्द या दवा ?
    कुदरत का करिश्मा ?
    आस्था या विश्वास ?

    बहुत ही सुन्‍दर और गहराई युक्‍त भावमय प्रस्‍तुति ।

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  4. बेहतरीन कविता के लिए ढेरो बधाईयाँ !

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  5. !!प्रेम..... सभी संवेदनाओं की
    एक बेताब सी प्रतीक्षा...!भावमय प्रस्‍तुति ।

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  6. सुन्दर बेहतरीन भाव लिए रचना...

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  7. बहुत कुछ लिखने के बाद शायद अभी भी प्रेम को लिखना आसान नही है ....

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  8. प्रेम आस्था और विश्वास ही तो है ...नहीं क्या ..

    @प्रेम सभी संवेदनाओं की बेताब सी प्रतीक्षा ...
    हालाँकि कोई प्रतीक्षा नहीं है फिर भी अच्छी लगी ये पंक्तियाँ ..!

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  9. सभी संवेदनाओं की
    एक बेताब सी प्रतीक्षा...!
    man ko kuredati kavita!

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  10. तभी न हम कहते हैं न ..दी आप मेरी नैहर की हैं...
    अपना फोटो देख कर हम तो अचकचा गए थे..कि कौनो हमरी जूडूवाँ भी है का..
    अब ई भी तो प्रेम है न दी ...इसकी का परिभाषा होगी भला ..:)
    बहुत आभार मानते हैं...कि आपने इस योग्य समझा..
    सच में..

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