२४ घंटे का वक़्त ....... घड़ी की टिक टिक दिल दिमाग पर हावी हो जाएगी , और सच सामने खड़ा मेरी आँखों से बहने लगेगा ,
आवाज़ दूंगी अपने बच्चों को और बहती आँखों में मुस्कान भरकर उनको प्यार करुँगी , एक पल के लिए हटना नहीं चाहूँगी -
क्या कहूँगी ! कुछ भी तो नहीं , बस यूँ ही कुछ ऐसा गुनगुना जाउंगी कि उनको लगे 'माँ यहीं कहीं है' .... कोई इंतज़ार नहीं होगा
किसी का, किसी बात का ........ सालों गुज़र जाते हैं इंतज़ार में २४ घंटे को कहाँ बाँध पाउंगी !
() रश्मि प्रभा
शेष २४ घंटे और आप ! बैठे-बैठे जाने क्यूँ ये ख्याल आया कि अगर शेष २४ घंटे की ज़िन्दगी रह जाये हाथ में तो ! दिमाग सन्नाटे में चला गया और आँखों से ख्वाब बहने लगे ...... कुछ समझ में नहीं आया तो सोचा परिचितों की सोच खटखटा आऊं , कुछ लोग तो बस मुस्कुरा कर रह गए - बहुत कुछ देखने को मिला उस मुस्कान में - किसी का संक्षिप्त जवाब मिला , किसी का उस भय से परे ! एक ख़ास बीमारी को सुनकर हमारे होश उड़ जाते हैं - यहाँ तो हाथ में हैं सिर्फ २४ घंटे ! चलिए मिलते हैं कुछ लोगों के ख्यालों से - |
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जहां तक जिन्दगी के सन्दर्भ में मेरी धारणा है, वह मेरी इस ग़ज़ल को पढ़ने के बाद स्वयं महसूस किया जा सकता हैं , कि-
जीत मन की, हार का विषयांतर है ज़िंदगी
मीत मेरे खेल का मध्यांतर है ज़िंदगी !
खुशनुमा फूलों पे बैठी तितलियाँ सी यह -
या किसी वटवृक्ष का रूपान्तर है ज़िंदगी !
गाय के गोबर से लिपा घर के आँगन में-
मासूम हाथों से बना हस्ताक्षर है ज़िंदगी !
भोजपत्र,स्याही,कलम, अभिव्यक्तियाँ और -
एहसास रूपी स्लेट पर वर्णाक्षर है ज़िंदगी !
नयी नवेली घर में आई एक दुल्हन सी -
झांकती दहलीज से आठो पहर है ज़िंदगी !
प्यार के एहसास से लबरेज लम्हा है प्रभात-
मौसमों का चीखता मौन स्वर है जिन्दगी !
जिन्दगी मेरे लिए केवल ज़िंदगी नहीं एक एहसास है, जो हर समय मेरे फन की तरजुमानी करती है और मैं यह कोशिश करता रहता हूँ कि जितना भी वक़्त शेष है स्नेह-प्यार-अपनेपन का खजाना लुटाता चलूँ .एक खुशहाल सह-अस्तित्व की परिकल्पना को मूर्तरूप दे सकूं तभी मेरी ज़िंदगी की सार्थकता होगी । ....
मन में उम्मीदों की चाहत बनी रहे इससे बढ़कर और इस ज़िंदगी की सार्थकता क्या हो सकती है ?
सिर्फ एक दिन की ज़िंदगी मेरे पास है , तो मैं यही चाहूंगा कि ज़िंदगी की उस आखिरी घड़ी में अपनी सारी सुखद अनुभूतियों को कोरे कागज़ पे बिखेर दूं ताकि मेरे न रहने पर स्मृति शेष के रूप में मेरी वही अनुभूतियाँ ज़िंदा रह सके ....!
() रवीन्द्र प्रभात
मृत्यु जीवन का अंतिम सच, जीना तो हर कोई चाहता है hamesha N forever,
पर क्या यह मुमकिन है ?
प्रकृति का नियम है बदलाव, यह नियम हमारे शरीर के साथ भी जुड़ा है , जब् तक यह शरीर नष्ट नहीं होगा नया केसे आएगा ? आत्मा अमर है शरीर नहीं …!
वेसे तो अगले पल् क्या होंगा हम नहीं जानते … फिर भी पता चले कि हमारे जीवन के २४ घंटे ही शेष बचे है तो …..
1 मैं अपने beloved के साथ रहना पसंद करुँगी …
2 उनके साथ हर बचा हुआ पल् उत्सव की तरह व्यतीत करुँगी …
3 अंत में योग निंद्रा करते हुए मौत की निंद्रा में खो जाउंगी …
() प्रीती महेता
ओये होए ..क्यूँ डरा रही हैं ...:):)
() वाणी शर्मा
यदि मुझे ये पता चले कि मेरे पास एक ही दिन की ज़िन्दगी बची है तो मैं किसी संत के मुखारविंद से श्रीमद् भागवत का पाठ सुनना चाहूंगी, जिसके स्मरण मात्र से चित्त प्रसन्न हो जाता है, संसार की वस्तुओं में तो जीवन मजबूर हो कर गवाया ही है, संसार से जाते वक़्त मैं हरि के चरणों में जाना चाहूंगी !
() दिपाली आब
शुक्रिया रश्मि
अगर मिल जाये एक दिन की जिंदगी ..... आज फेस बुक पर रश्मि प्रभा ने ये टॉपिक दिया कि जो भी लिखना चाहे कुछ लिख कर भेज दे .......... तब से बस यही सोच रही हूँ ... सब जानते हैं कि एक दिन तो इस दुनिया से चले ही जाना है फिर भी इस सत्य को स्वीकार कर पाना बहुत मुश्किल है ..दरअसल हम भूल ही जाते हैं कि इस संसार में हम सब एक गेस्ट की तरह हैं ..बस अपना रोल प्ले करना है .... और चले जाना है .. सबसे बड़ी बात तो यह है - ये भी कोई नही जानता कि जाना कहाँ है .... अनजान सफ़र .. ना मंजिल का पता ना साथी का ..बस जाना है .................. मुझे अजीब सी विरक्तता हुई ...... क्या मैं पागलों की तरह फार्म विल्ले खेल रही हूँ लाइफ में कितना कुछ बचा है करने को सीखने को ..कहाँ खो गयी हूँ मैं ...कहाँ गयीं मेरी सृजन शक्तियां .....ऐसा है कि मैं बहुत अच्चा नहीं लिख पाती पर अपने मन के भावों को शब्द देने में कोई बुराई भी नहीं है .... .. मैं नहीं जानती कि रश्मि ने ये सब क्यूँ लिखने को कहा .. बस मेरा मन तब से यही सोच रहा है कि अगर ये दिन मेरी जिंदगी में आया तो ....................
उफ्फ्फ .................
....... मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी कि ये मेरी ज़िन्दगी का लास्ट डे है ! हसबैंड और बच्चों को कदापि नहीं ... मैं जानती हूँ कि मैं उनकी लाइफ में क्या अहमियत रखती हूँ ... मेरे जाने का सुनकर पता नहीं वो क्या रिएक्ट करें ....कई बार कुछ हादसे जब हो जाते हैं तो हम उनको झेलने की शक्ति अपने अंदर ले आते हैं लेकिन पहले से पता हो तो इन्सान कई बार कमज़ोर पड़ जाता है जैसे कि मैं ..... इस वक़्त गोया मेरी लाइफ का कल लास्ट डे है ...
मैं सबसे पहले अपने गुरु की पूजा करूंगी , कोशिश करूंगी कि एक बार उनसे बात हो सके ..अपनी मम्मा जिनको मैं बहुत मिस करती हूँ , कभी उनके सामने अपने इमोशंस नहीं शो कर पाई उनको बताऊंगी कि मैंने कब कब उनको गलत समझा .. और बिना इमोशनल हुए उनसे माफ़ी भी मांगना चाहूंगी ..... सब लोगों को फ़ोन करके बस यूँ ही हाल चाल पूछना चाहूँगी ..... हाँ एक नारी सुलभ इच्छा - अपने सामान की will ज़रूर बना दूँगी और लिस्ट भी कि मेरा कौन सा कीमती सामान कहाँ है ..अपने सब उधार चुका दूँगी अगर कोई हुए तो ........... सबसे ज्यादा ... मैं hubby और बच्चों को समय दूँगी ...... उनसे वो सब बातें कहूँगी जो आज तक नहीं कह पाई अपने इमोशंस ....अपनी इच्छाएं ....... अपनी डायरी में लिखना चाहूंगी ...... एक बार जी भर कर देखना चाहूंगी इन दीवारों को जिन्होंने मुझे सुरक्षा का वातावरण दिया ..जहाँ मैंने एक दुल्हन बनकर कदम रखे ...... .bassssssssssssss इससे अधिक ना कोई ख़ास इच्छा है ना कोई गम ... हाँ लगेगा कि अपने मन के भावों को अपनों को नहीं कह पाई ..... सबसे बाद में मैं ..मेडिटेशन करना चाहूंगी ......... बस .............
थैंक्स रश्मि ...तुमने अचानक से ये प्रश्न उठाकर आंदोलित सा कर दिया मन को ...कि मैं क्या कर रही हूँ ..क्यूँ नहीं एक प्रैक्टिकल लाइफ जी रही ..ये क्या है जो मैं मृगतृष्णा में फंसी जा रही हूँ ....... पता नहीं जिंदगी में कितने दिन हैं - कम से कम उनको तो कुछ सार्थक दिशा जी जा सकती है ना .... ..
.
. मैं इस वक़्त कुछ सोचकर नहीं लिख रही हूँ , विचारों की जो भी श्रृंखला बन रही है बस लिखती जा रही हूँ . ...बस ...... . बस my love .... और मेरे बच्चे .... और मेरे परेंट्स ....जाने अनजाने जो भी मैंने गलतियां कीं उनके किसी लिए क्षमा .. ....अगर ईश्वर चाहता है मुझे फिर से इस दुनियां में मानव जीवन देना .. तो मैं नीलिमा बनकर ही जन्म लेना चाहती हूँ ....
() नीलिमा शर्मा
सुबह ४ बजे का वक़्त था .. बाहर कड़ाके की ठण्ड , रजाई के अन्दर ठिठुरते हुए सो रही थी कि अचानक
एक आवाज़ आई ..
पहली बार तो ये सोच के कि घर के नीचे कोई बात कर रहा होगा , मैंने ध्यान नहीं दिया ..
आवाज़ फिर आई .. किसी ने कहा – “अंकू , बाहर आओ ..” डर लगा .. इस वक़्त मुझसे मिलने कौन आया है ..
डरते डरते मैंने अपने पाँव बढ़ाये .. बालकोनी में जाके खड़ी हुई तो देखा कि आसमान में एक
अजीब सी रौशनी थी .. ऐसा लगा वो रौशनी सीधे मुझ तक पहुच रही थी .. ठण्ड में भी गर्माहट
महसूस हुई ..
न कोई चेहरा , ना कोई नाम .. बस एक आवाज़ .. एक सौम्य आवाज़ होने के बावजूद , मुझे उस आवाज़ से
डर लगा .. उस आवाज़ ने कुछ ऐसा कह दिया कि ...............वो कुछ मिनट डर ,
परेशानी , सवाल , इन सब से भरे थे .. उसने कहा “जी लो ये २४ घंटे .. कल के बाद तुम्हें ये चेहरे
नहीं देखने को मिलेंगे .. ना ही ये तुम्हें देख पाएंगे ..
जी लो ये २४ घंटे , क्यूंकि कल के बाद तुम इनका हाथ नहीं पकड़ सकोगी , तुम इनसे जिद्द नहीं कर सकोगी ,
अपना प्यार नहीं जता सकोगी , अपनी वो हर बचकाना हरकतें नहीं कर सकोगी , क्यूंकि तुम्हारे पास जीने
के लिए सिर्फ २४ घंटे हैं ..”
मैं पूछना चाहती थी “क्यूँ ,?” कई सवाल थे पर वो सवाल ही रह गए .. रौशनी कम होते गयी ..
मेरे हाथ पाँव ठन्डे पड़ गए .. ऐसा लगा कि पूरा आसमान मेरी ही तरह , कई भावनाओं से गुज़र
रहा था ..
5 बजे का वक़्त था .. मैं दूसरे कमरे में गयी , दरवाज़ा बन्द किया .. मन था कि चिल्ला उठूं , जोर
जोर से रोऊँ , पर नहीं कर सकी .. मैं रोई , काफी देर तक ..
थोड़ी देर बाद माँ ने आवाज़ दी .. मैं कमरे में आई तो माँ ने मुझे देखते ही पूछा “रोई
हो बेटा ? क्या हुआ ?”
जिस चुप्पी के साथ मैं घुसी थी , वो टूट गयी .. जोर जोर से रोते हुए मैं माँ के गले लग गयी .. सब
उठ गए ..
रोते रोते हिम्मत करके पूरी बात मैंने बताई.
भईया ने मज़ाक में उड़ा दिया , अम्मा ने विश्वास नहीं किया .. माँ -दीदी ने दिलासा दिलाया – ऐसा नहीं है
बेटा .. पर उनकी आँखें देख के लगा कि ये सच है ......
सुबह की दिनचर्या वैसे ही चली .. नाश्ते के बाद माँ -दीदी मेरे पास आए .. हम तीनों की आँखें
नम थी ..
आधा दिन लगभग गुज़र चुका था .. बात कम रोना ज्यादा हुआ .. पर फिर बस लगा कि रोना कुछ गलत
नहीं पर क्यूँ ना ये बाकी का दिन कुछ यूँ बिताऊं कि आज के बाद भी ये पल ज़िन्दगी भर रहें ..
दीदी ने अपनी रोती हुई आवाज़ में सवाल किया – अंकू बताओ क्या करने का मन है ?
मूवीज में यही देखते थे कि जब भी किसी कि लाइफ में एक दिन बाकी था , तो सब सोचते हैं कि जो
नहीं किया है वो करना है .. पर दीदी के इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब ही नहीं था .. क्यूंकि कभी इस
तरह सोचा ही नहीं कि एक दिन बचेगा ज़िन्दगी में तो ऐसा क्या करना चाहूँगी जो कभी नहीं किया ..
बस एक बात कही मैंने – दीदी , बस साथ रहना है .. ऐसा नहीं है कि आज रुलाई नहीं आएगी .. बहुत आएगी
पर बस साथ रहना है ....
() अपराजिता कल्याणी
अचानक इस घोषणा ने मुझे चौंका दिया- ज़िन्दगी मात्र २४ घंटों की है . आँखों में एक परछाई सी उभरी - यम अपनी सवारी के
साथ दरवाज़े पर आने ही वाला है . सबसे पहले ये ख्याल आया - आए दिन की शारीरिक तकलीफों से निजात पाने को मैं मुक्ति
की कामना करती रही हूँ, चलो २४ घंटे और ! सुकून मिलने ही वाला है - बस पिंजडा लेकर उड़ जा पंछी....
पर अगले ही पल उदासी की एल ठंडी लहर मुझे छूकर जडवत कर गई- इस सच के बाद ? वे सारे चेहरे जो मुझे जान से प्यारे
रहे , जिनके दो बोल सुनकर मैं ऊर्जा पाती रही, जिनके नाम की मैंने सुमिरनी बना रखी है उनसे परे हो जाउंगी ... न देख पाउंगी,
न कुछ कह पाउंगी , ज़िन्दगी की ये नियामत हमेशा के लिए मुझसे छूट जाएगी. अपने को कोसा- ओह ! ममता तू न गई मेरे मन से ...
उमड़ती आँखों के पानी को झटक दिया और खुद को समझाया - तैयार हुई पहल करने को ," अगर कभी कुछ भूल हुई हो तो भुला देना,
तुम्हारे लिए जीते रहे - मुझे याद रखना - एक थी अम्मा , और क्या कहूँ - अपनी ख़ुशी न आए थे , न अपनी ख़ुशी चले "
() सरस्वती प्रसाद
एक बेहद सोचनीय विषय चुना है।
ReplyDeleteमगर ये तो हर किसी की ज़िन्दगी की हकीकत है । सभी के पास सिर्फ़ 7 दिन होते हैं और उनमे से भी 24 घंटे का कौन सा पल आखिरी है पता नही होता और हम जीते जाते हैं अपने अहम के साथ । यदि हर पल को आखिरी समझ कर जियें तो ज़िन्दगी मे कभी सोचना ही न पडे और फिर 24 घंटे मिलें या नही या कहो फिर चाहे मौत कभी भी आ जाये……………बेशक ये एक ऐसा प्रश्न है जिससे हर कोई बचना चाहता है चाहे हकीकत सभी को पता है।
आज की आपकी पोस्ट बेहद उम्दा और सोचने को मजबूर करने वाली है।
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट ..सबके विचार जाने २४ घंटे ...कितने महत्त्वपूर्ण हो उठे हैं ...
ReplyDeleteमैं तो सोच भी नहीं पा रही की मैं क्या करती?
शायद इन २४ घंटों में थोड़ा वक्त ब्लोगिंग को ज़रूर देती हा हा हा ...
जिंदगी केवल इसकी अनिश्चितता की वजह से ही जी पाते हैं....अगर यह पता चले की हमारे पास जीने के लिए केवल २४ घंटे हैं तो शायद हम म्रत्यु की चिंता में एक पल भी शांति से न जी पायें.....पोस्ट बहुत सुन्दर है और सोचने को विवश कर देती है......
ReplyDeleteकिसके होश नहीं उड़ जाएँ अगर उसे पता चले कि उसके पास सिर्फ चौबीस घंटे बचे हैं ...
ReplyDeleteयही जवाब सूझा ....
उस समय ब्लॉगिंग कहाँ सूझती ...
वैसे इन चौबीस घंटों में मैंने क्या किया ...आप सुनेगी तो हँसेंगी ...:):)
सबके विचार पढ़े ...अच्छे लगे , जीवन को अनिश्चितता के साथ जीना ही ठीक है ...!
बहुत बढिया रश्मिजी सुन्दर प्रयास है। अगर मुझ से कोई पूछे तो कहुँगी कि बस मुझे केवल सब के लिये दुयायें करने दो। बधाइ और शुभकामनायें।
ReplyDelete२४ घंटे को कौन बाँध सका है? कीं बार लगता है की इन २४ घंटों में मैं यह कर लूं, वो कर लूं, मगर होता कुछ नहीं |
ReplyDeleteजब अपनों ने ही मुझे तोड़ दिया और मैं उन भरोसे पे जीता था की सबकुछ सोच-समाज से बाहर था...
अब कुछ भी तो हाथ में नहीं है |
मैं उनको समझूं या वो मुझे... यही बात थी और घर की दहलीज पार कर गया | समय बहुत कम था, क्या कुछ करना था हमें प्यार के लिएँ ...! मरते थे एक दूसरे पर | मगर ये वही लोग है जो हमेशा बहाना करते थे कि हमारे पास समय ही कहाँ? वो लोग इन दिनों बेकार हो गए और धरते रहे ध्यान हमारे बारे में...
२४ घंटा पूरा भी नहीं हुआ और बेटियों ने आवाज़ लगाई हमें.... मिलने सुकून मिलेगा यही छोटी सी सोच थी | जब लौटा तो उसी गहरी घाटियों में उलझ गया... !
समय बीतने लगा... मगर मेरा समय गुज़रता नहीं, थम गया है समय और ज़िंदगी.... उसी चौराहे पर खडा हूँ जहां से कहीं भी जा सकता था | आज उसी चौराहा दीवार बनाकर खडा है और मैं कैद हूँ अपनी ही गलियों में... ये २४ घंटे ने मेरी ज़िंदगी के पन्नों को पीला कर दिया, उधर से दीमक उभर आई है... जनता हूँ कि अब समय नहीं है... मैं इंतजार करता था पहले उसका और अब...
उस दीमक का, जो निश्चित कर बैठी है मेरे अंत को....
मैं तो मौत के नाम से ही सिहर उठाती हूँ , जबकि यही सत्य है ! मुझे कोई भी यह बता दे कि आपके पास अब केवल २४ घंटे है तो मैं इतना घबडा जाऊंगी कि बच्चों को चुमते हुए ही कट जायेंगे ये पल .....काश यह मालूम ही न हो कभी तो अच्छा है !
ReplyDeleteमौत से वेपरबाह मरना ज्यादा सुखद हो सकता है, किन्तु चंद लम्हों में बांधकर जीना काफी मुश्किल होगा !
सबके विचार पढ़े ...अच्छे लगे
ReplyDeleteशेष २४ घंटे और इतना गंभीर बहस, इतने अच्छे-अच्छे विचार .....मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा है, कि मैं किसी ब्लॉग पर हूँ ......सार्थक और सराहनीय परिचर्चा के लिए बहुत-बहुत बधाईयाँ ! रविन्द्र प्रभात जी और सरस्वती जी के विचार बहुत सुन्दर है ! रश्मि जी को एक उत्कृष्ट परिचर्चा आयोजित करने हेतु आभार !
ReplyDelete24 घंटे ?
ReplyDeleteवाकई, जीवन की क्षणभगूरता, सोचने के दृष्टीकोण को ही बदल देती है।
सार्थक प्रस्तूति!! आभार
जीवन के अंतिम २४ घंटे, शायद कभी कोई जान नहीं पाता कि वो कौन सा दिन होगा| पर मेरे पास सिर्फ २४ घंटे रहे तो मैं घर के सभी से अंतिम विदाई लेकर सिर्फ अपने साथ बीताना पसंद करुँगी| जो भी कामना अपूर्ण होगी जितना मुमकिन हो पूरा कर लूँगी और अंतिम पल में भी ख़ुद के साथ रहकर देखना चाहूंगी कि कैसे धीमे धीमे मौत करीब आती है...और मुझे कैसा लगता है...
ReplyDeleteसभी के २४ घंटे पढ़कर मैं भी २४ घंटे का आख़िरी पल लिख गई| बहुत अच्छा लगा सबको पढ़कर और ऐसी कल्पना करके|
बहुत अच्छा लगा सबके विचार पढकर ..मैं तो अपने परिवार और दोस्तों के साथ मस्ती करके गुजार देती २४ घंटे :)
ReplyDeleteयदि यह ज्ञात हो गया कि जीवन में २४ घंटे ही शेष हैं, तो प्रयास करूंगी कि कोई रूठा न रह जाए, अपने बच्चों को कुछ समझाना चाहूंगी ताकि मेरे जाने के बाद उन्हें जीवन को समझने में कठिनाई न हो....ईश्वर को धन्यवाद दूँगी कि उसने मुझे यह ज्ञात कराया जिससे मैं अपने छूटे हुए कुछ कामों को पूरा कर सकी...एक आश्वासन में अपनों को बाँध पाई....कि मैं फिर आऊँगी .
ReplyDelete२४ घंटे शेष बचे जीवन के मेरे,
अब न होंगे इस जीवन के साँझ-सवेरे...
ऐसे में कुछ छूट न जाए
मेरे अपने रूठ न जाए...
बच्चों को कुछ समझाऊँगी
कहूँगी प्रिय से "फिर आऊँगी"
एक दूजे का ध्यान धरें सब,
अच्छा तो, चलती हूँ मैं अब.
उपर्युक्त सभी विचार सुन्दर लगे....
मुझे अगर ज्ञात हो गया कि मेरे पास अब सिर्फ २४ घंटे बचे हैं,तो में भगवान से यही प्रार्थना करूँगा, धन्यबाद करूँगा, कि हे भगवान, जितनी नेमत तुमने मेरे को बख्शी , उससे कही ज्यादा तू उन दीन दुखिओं को बख्शना ; और
ReplyDeleteअपनी लिखी ये २ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा....
"क्यूँ होता हे परेशां अपने से ऊपर वाले को देखकर,
जरा एक नजर अपने नीचे भी तो डाल"
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ReplyDeleteजीत मन की, हार का विषयांतर है ज़िंदगी...Great line.
Every single moment is precious.
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२४ घंटे शेष बचे जीवन के ,
ReplyDeleteसदा रहेंगे इस जीवन के साँझ-सवेरे...
thnx rashmi...... kuch emotions jo mai kah nhi aaj tak apno se woh yaha kah gyi ... only 24 hours...... bass tab se main game bhi chorr diya .....:)))) .. mujhe vishwas nhi ho raha hai k mai vatvriksh par hu ..... . naman aap sabko jinhone bhi ham sabko parha
ReplyDeletethnx for sharing...
ReplyDeletewohi hai zindagi lekin jigar yeh haal hai apnaa...
ki aisee zindagi se zindagi kam hoti jaati hai..
zindagi ka har pal har lamhaa aise jeeta hun jaise woh aakhri pal ho..aur aakhri 24ghante bhi aise hi jiyoongaa...
maut se kya darnaa use to aana hai ..
yahi sach hai use hi nibhaana hai ...
२४ घंटे ?
ReplyDeleteअरे कहाँ,
सांस के बस एक लम्हे का सफ़र है ज़िन्दगी
SO MANY THNX RASHMI FOR GIVING ME CHANCE TO PEN DOWN MY THOUGHTS
ReplyDeleteSO MANY THNX RASHMI FOR GIVING ME CHANCE TO PEN DOWN MY THOUGHTS
ReplyDeleteक्या बात है जी यहाँ एक लम्हा जीने को तरसते है वाहन आपके पास २४ घंटे हैं -----मुझे कभी एसी सुविधा मिले की २४ घंटे पहले पता चल जाये जाने का कार्यक्रम तो बस गोविन्द को सुमिरून यही एक काम है जो हम टालते चले जाते हैं
ReplyDeleteखुशनुमा फूलों पे बैठी तितलियाँ सी यह -
ReplyDeleteया किसी वटवृक्ष का रूपान्तर है ज़िंदगी !
so beautiful!
कहते हैं, मौत सामने खड़ी हो, मौत का हर क्षण एहसास जिंदा रहे तो जीने का सलीका आ जाता है....! आपकी यह प्रस्तुति भिन्न भिन्न लोगों के भांति भांति विचारों के माध्यम से ज़िंदगी को ही जीवन का आइना दिखा गयी!
२४ घंटे तो बहुत होते हैं... वास्तव में एक पल की नोटिस भी कहाँ मिलती है... जो जाता है अचानक ही जाता है!