!!मुक्ति!!
मेरे पास चिट्ठियों का अम्बार था,
आदतन,जिन्हें संभाल कर रखती थी
गाहे-बगाहे उलटते-पुलटते,
समय पाकर लगा-
अधिकाँश इसमें निरर्थक हैं-रद्दी कागजों की ढेर!
फिर.....मैंने उन्हें नदी में डलवा दिया !
मेरे पास कुछेक सालों की लिखी डायरियों का संग्रह था,
फुर्सत में-
पलटते हुए पाया,
उनके पृष्ठों पर आँसुओं के कतरे थे-
बाद में ये कतरे किसी को भिंगो सकते हैं,
ये सोच-मैंने मन को मजबूत किया,
फिर उन्हें भी नदी के हवाले कर दिया!
अब,....मेरे पास कुछ नहीं,
सिर्फ़ एक पोटली बची है-जिंदगी के लंबे सफर की!
यादें, जिसमें भोर की चहचहाती चिडियों का कलरव है!
यादें,जिसमें नदी के मोहक चाल की गुनगुनाहट है!
दिल जीतनेवाली अटपटी बातों की मधुर रागिनी है!
बोझिल क्षणों को छू मंतर करनेवाले कहकहों की गूंज है
जीत-हार और रूठने-मनाने का अनुपम खेल है!
खट्टी-मीठी बातों की फुलझडी है
दिन का मनोरम उजास है,
रात की जादुई निस्तब्धता है,
छोटी-छोटी खुशियों की फुहार में भीगने का उपक्रम है
और कभी न भुलाए जानेवाले दर्द का आख्यान भी है!
ख्याल आता है,
पोटली को बहा देती तो मुक्ति मिल जाती!........
पर अगले ही क्षण हँसी आती है
- मुक्ति शब्द -प्रश्न-चिन्ह बनकर खड़ा हो जाता है,
जिसका जवाब नहीं!!!
तो, जतन से सहेज रखा है -
यादों की इस पोटली को
जिस दिन विदा लूंगी -
यह भी साथ चली जायेगी!
()सरस्वती प्रसाद
बेहद खूबसूरत शुरुआत की है ………………लेखकों और पाठकों को ये नया मंच उपलब्ध करवाने के लिये आपके आभारी हैं।
ReplyDeleteयादों की पोटली मे बहुत कुछ छुपा होता है और उसे जिस ढंग से उजागर किया है वो काबिल-ए-तारीफ़ है।
"वटवृक्ष" के लिएँ ढेरों सारी बढ़ाई |
ReplyDeleteइतनी खूबसूरती से सजाया है और बहुत ही भावात्मक अभिव्यक्ति से जूडी कल्पना को साकार करना, ये बहुत ही बड़ी बात है | मैं इतना ही कहूँगा -
"रश्मि प्रभा- वह पारस है, जिसे भी छू जाएँ उसे सोना नहीं मगर खुद उसका ही मूल्य दिखती है, उन्हें आत्मा दर्शन करवाती है|"
अभिनन्दन
सचमुच एक और नयी परिकल्पना का साकार रूप है यह वटवृक्ष ,अच्छा लगा इसपर आकर !
ReplyDeleteयह पहल अपने आप में नायाब है,वटवृक्ष के लिए कोटिश: बधाईयाँ
ReplyDeletewatwriksh ki parikalpana aur uska saakaar roop bahut sundar laga. safalta ki aasha aur shubhkaamna hai.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत विचार ..वटवृक्ष तले शायद कुछ राहत मिले ...
ReplyDeleteमुक्ति कविता के भाव बहुत सुन्दर हैं ..हर एक की ज़िंदगी से जुड़े हुए ...
बहुत सुन्दर शुरुआत है वाकई ..बधाई इस सुन्दर कविता के लिए
ReplyDeleteवटवृक्ष के लिए एक वटवृक्ष सरीखे व्यक्तित्व की रचना!!!
ReplyDeleteप्रारम्भ ही सुकून देने वाला है, तो आगे आगे देखिये होता क्या है ...
बहुत बहुत बधाई!
कविता भावप्रवण होने के साथ ही सहज ही कह जाती है, मोह को नदी में प्रवाहित कर दिया है, अब मैं मुक्त हूँ ..
अम्मा जी!
प्रणाम के शुभकामनाये....
वाकई बहुत सुन्दर शुरुआत है ..
ReplyDeleteतो, जतन से सहेज रखा है -
ReplyDeleteयादों की इस पोटली को
जिस दिन विदा लूंगी -
यह भी साथ चली जायेगी!
भावमय प्रस्तुति, वटवृक्ष्ा की शुरूआत बहुत ही गरिमामयी है, आभार के साथ्ा बधाई ।
वाह ...
ReplyDeleteवटवृक्ष की शुरुवात वटवृक्ष सी अम्मा से ... Ilu Ammaaa...
सुन्दर रचना -बट वृक्ष इसलिए स्वागत योग्य है क्योंकि इसकी सभी शखाएं खुद एक बट वृक्ष बन जाती हैं कालांतर में -यह अभियान एक से अनेक बट वृक्षों को जन्म दे -शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना! शुरुआत से लेकर अंत तक बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeleteअरविन्द जी, इस पहल के पीछे यही पवित्र उद्देश्य छिपा है ......आप सभी से अनुरोध है कि आप भी इस पहल का हिस्सा बने, क्योंकि आगे इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की भी योजना है !
ReplyDeleteवटवृक्ष एक ठहराव है, खुद को जानने का, दुनिया को बताने का......
ReplyDeleteउम्दा पहल!! शुभकामनाएँ.
तो, जतन से सहेज रखा है -
ReplyDeleteयादों की इस पोटली को
जिस दिन विदा लूंगी -
यह भी साथ चली जायेगी!
ऐसा कैसे हो सकता है
हमने अपनी अपनी यादों की पोटली को खोला
कभी अकेले में
तो किसी अपने के सामने.
और पोटली से निकला बहुत कुछ हमारे पास आ गया है
वो कोई नही ले जा सकता अपनी यादों की पूरी पोटली अकेले क्योंकि वो उसकी अकेले की अमानत नही होती.
कुछ मात्र नितांत उसका होता है उसमे
तो कुछ सबके होते हैं......
तभी तो हमारे जाने के बाद भी रह जाती है
कई पोटलियाँ यहाँ
सब की अपनी अपनी
पर उनमे होती है हमारी भी यादें.
यादें चंचल युवती सी,
नटखट बालक सी
ठहरे बादल सी होती है
जो कभी अकेले होकर भी ही नही सकते अकेले'
वट वृक्ष फूले फले और हरा भरा रहे और चीर काल तक हमे अपनी ममता की छाँव में बैठाए रखे.
बहुत सुन्दर शुरुआत
ReplyDeleteAmazing !....Congrats !
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और अच्छी शुरुआत .... वटवृक्ष के रूप में एक मज़बूत छत प्रदान करी है कवि और कविता के विकास के लिए ... बहुत बहुटी बधाई ...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण उअर विस्तृत दर्शन देती र्काहना..अम्मा जी को नमस्कार
ReplyDeleteऔर मोहने वाली रचना के लिए बधाई ...
बहुत-बहुत ही बेहतरीन लगी कविता मम्मी जी.. काफी कुछ हर एक सच्चे और संवेदनशील ह्रदय की कहानी है.. है मगर कविता..
ReplyDeleteएक अभिनव प्रयास ...
ReplyDeleteसफल हो... बहुत शुभकामनायें ..!
वट बृक्ष के लिये बहुत बहुत शुभकामनाये
ReplyDelete। सरस्वती जी की रचना दिल को छू गयी शायद इन शब्दों मे जीवन जीने की प्रेरना भी है
फुर्सत में-
पलटते हुए पाया,
उनके पृष्ठों पर आँसुओं के कतरे थे-
बाद में ये कतरे किसी को भिंगो सकते हैं,
ये सोच-मैंने मन को मजबूत किया,
फिर उन्हें भी नदी के हवाले कर दिया!
अब,....मेरे पास कुछ नहीं,
बहुत अच्छी लगी रचना बधाई।
bahut achchha
ReplyDeletevatvriksh bahut khoobsoorat padav,jindgi ki dhoop chhav ka...badhai.
ReplyDeleteRashmi di aur Prabhat jee ka vatt vriksh jisme amma ne apne pahle post se ashirwad de di.......aur kya chahiye......sayad kabhi ham jaise pattiyan dikh jayen...:) falte fulte hue..!!
ReplyDeletesubhkamnayen.......vatt vriksha ko..!
सरस्वती जी कि इस सुन्दर रचना के साथ आपने वटवृक्ष का आरंभ किया था शायद ... अब वाकई मे आपका वटवृक्ष फ़ैल रहा है ..और और यहाँ आये पथिकों को छाया और विश्राम स्थली दे रहा है...
ReplyDeleteदो वर्ष बीत गये
ReplyDeleteपोटली बहुत
मोटी और भारी
हो गई होगी
मूल भी होगा
सूद के साथ
मिलकर दुगनी
हो गयी होगी !