मैं खुद एक नज़्म हूँ , जिसे सृष्टिकर्त्ता ने अनमोल शब्दों से सजाया और किताब के पन्नों
में रखे गुलाब की तरह संजो दिया ..........
कभी फुर्सत हो तो आना
करनी है कुछ बातें
पूरा दिन ना सही
एक
पल ही काफी है
नज़्म से रूह में
रूह से नज़्म में बदलने के लिए ......रश्मि प्रभा


मेरा परिचय :
एक संवेदनशील, भावुक और न्यायप्रिय महिला हूँ । अपने स्तर पर अपने आस पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ जोड़ने की यथासम्भव कोशिश में जुटे रहना मुझे अच्छा लगता है ।

!! ज़रा ठहरो !!

ज़रा ठहरो !
तुम इनको न छूना,
ये एक बेहद पाकीजा से रिश्ते के
टूट कर बिखर जाने से पैदा हुई किरचें हैं
जिन्हें छूते ही
धारा प्रवाह खून बहने लगता है ,
डरती हूँ तुम्हारे छू लेने से
कहीं इनकी धार कुंद ना हो जाए,
अगर इनकी चुभन से लहू ही ना बहा
तो इनकी सार्थकता क्या रह जायेगी !


ज़रा ठहरो !
तुम इनको ना मिटाओ,
ये मेरे मन के कैनवास पर
उकेरे गये मेरे अनन्य प्रेम की
मोहक तस्वीरों को बिगाड़ कर
खरोंचने से बने बदनुमा धब्बे हैं
अगर ये मिट गए तो मेरे तो
जीने का मकसद ही खत्म हो जाएगा,
जब 'देखो, ढूँढो पहचानो' का खेल
ही खत्म हो जाएगा तो फिर मैं
इस कैनवास में क्या ढूँढ पाउँगी
और मुझे कैसे चैन आएगा !


ज़रा ठहरो !
तुम इनको ना समेटो,
ये मेरी अनकही, अनसुनी
अनभिव्यक्त उन प्रेम पातियों के
फटे हुए टुकड़े हैं जो कभी
ना भेजी गयीं, ना ही पढ़ी गयीं
लेकिन आज भी मैं दिन भर में
मन ही मन ना जाने कितनी बार
इन्हें दोहराती हूँ और जो आज भी
मेरे जीने का संबल बनी हुई हैं !


ज़रा ठहरो !
अब जब तुम आ ही गए हो
तो मेरे इस अनमोल खजाने
को भी देखते जाओ
जिसमें एक पाकीजा सी मोहब्बत की
चंद यादें, चंद खूबसूरत तस्वीरें,
ढेर सारे आँसू, ढेर सारी चुभन
चंद फटे खत और पुरानी डायरी के
जर्जर पन्नों पर दर्द में डूबी
बेरंग लिखावट में धुली पुछी
चंद नज्में मैंने सहेज रखी हैं !
इन्हें जब जब मैं बहुत हौले से
छू लेती हूँ, सहला लेती हूँ
तो इनका स्पर्श मुझे याद दिला देता है
कि मैं आज भी ज़िंदा हूँ और
मेरा दिल आज भी धड़कता है !
--
साधना वैद
http://sudhinama.blogspot.com/

18 comments:

  1. मन कि भावनाओं की सुन्दर प्रस्तुति ...ज़रा ठहर ...कौन कहाँ मन की पातियों को पढ़ समझ पाता है ....

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  2. इन्हें जब जब मैं बहुत हौले से
    छू लेती हूँ, सहला लेती हूँ
    तो इनका स्पर्श मुझे याद दिला देता है
    कि मैं आज भी ज़िंदा हूँ और
    मेरा दिल आज भी धड़कता है !

    इन पंक्तियों मे तो सारा सार छुपा है………………काश कोई समझता कि स्त्री भी एक वजूद है उसके सीने मे भी दिल है और जहाँ पर धडकने वैसे ही गुनगुनाती हैं जैसे एक अल्हड उम्र मे धडकतीहैं………………इन भावों को बेहतरीन ढंग से संजोया है।

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  3. बहुत भावपूर्ण रचना |बहुत बहुत बधाई |
    आशा

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  4. एक स्त्री का हर रिश्ते को विभिन्न नामों से निभाते हुए खुद को ना बिसराना ...
    उसकी नज्मों में उतर आना कि वह अभी जिन्दा है ...
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...आभार ..!

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  5. सुंदर रचना के लिएँ धन्यवाद

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  6. बहुत गहरे भाव सजोती कविता....हार्दिक बधाई.
    ______________
    'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.

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  7. इन्हें जब जब मैं बहुत हौले से
    छू लेती हूँ, सहला लेती हूँ
    तो इनका स्पर्श मुझे याद दिला देता है
    कि मैं आज भी ज़िंदा हूँ और
    मेरा दिल आज भी धड़कता है !

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द, गहरे भाव, अनुपम अभिव्‍यक्ति ।

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  8. सुंदर रचना के लिएँ धन्यवाद

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  9. बहुत ही सुन्‍दर रचना,अनुपम अभिव्‍यक्ति ।

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  10. भावनाओं की सुन्दर प्रस्तुति ...

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  11. इन्हें जब जब मैं बहुत हौले से
    छू लेती हूँ, सहला लेती हूँ
    तो इनका स्पर्श मुझे याद दिला देता है
    कि मैं आज भी ज़िंदा हूँ और
    मेरा दिल आज भी धड़कता है !
    sach hai ham vastav me apne bhoot ki smritiyo me hi jeeker sukh pate hai

    ReplyDelete
  12. इन्हें जब जब मैं बहुत हौले से
    छू लेती हूँ, सहला लेती हूँ
    तो इनका स्पर्श मुझे याद दिला देता है
    कि मैं आज भी ज़िंदा हूँ और
    मेरा दिल आज भी धड़कता है !
    sach hai ham vastav me apne bhoot ki smritiyo me hi jeeker sukh pate hai

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  13. ज़रा ठहरो !
    तुम इनको न छूना,
    ये एक बेहद पाकीजा से रिश्ते के
    टूट कर बिखर जाने से पैदा हुई किरचें हैं
    जिन्हें छूते ही
    धारा प्रवाह खून बहने लगता है ,
    डरती हूँ तुम्हारे छू लेने से
    कहीं इनकी धार कुंद नाहो जाए,....
    बहुत ही भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ....मन को अन्दर तक अविभूत कर दिया ...बहुत सुन्दर ...

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  14. ज़रा ठहरो !
    अब जब तुम आ ही गए हो
    तो मेरे इस अनमोल खजाने
    को भी देखते जाओ
    जिसमें एक पाकीजा सी मोहब्बत की
    चंद यादें, चंद खूबसूरत तस्वीरें,
    ढेर सारे आँसू, ढेर सारी चुभन
    चंद फटे खत और पुरानी डायरी के
    जर्जर पन्नों पर दर्द में डूबी
    बेरंग लिखावट में धुली पुछी
    चंद नज्में मैंने सहेज रखी हैं !
    इन्हें जब जब मैं बहुत हौले से
    छू लेती हूँ, सहला लेती हूँ
    तो इनका स्पर्श मुझे याद दिला देता है
    कि मैं आज भी ज़िंदा हूँ और
    मेरा दिल आज भी धड़कता है !

    bhaut dil ko chhune wala band hai ye

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  15. behad hi bhavpurn abhivyakti

    badhai

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  16. आप जैसे गुणी जनो को रचना पसंद आयी मेरा लिखना सफल हुआ ! आप सभी का ह्रदय से धन्यवाद !

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