अजनबी ...
आज भी,
जिसे तुम राख मान रहे हो
उसके अन्दर अब भी चिंगारी है
संस्कारों के पदचिह्न आज भी हैं,
मूल्यांकन की तदबीर आज भी है
और मानो
आज भी इसमें ही कशिश है....
रश्मि प्रभा
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अजनबी ...
अपनी अपनी तन्हाईयाँ लिए
सवालों के दायरे से निकलकर
रिवाज़ों की सरहदों से परे
हम यूँ ही साथ चलते रहें
कुछ ना कहें
तुम अपने माज़ी का
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मैं भूली हुई कोई नज़्म ना दोहराऊं
तुम कौन हो
मैं क्या हूँ
इन सब बातों को,
बस रहने दें
चलो दूर तक
इन अजनबी रास्तों पर पैदल चलें..
शेखर सुमन
शिक्षा- अंग्रेजी स्नातक( पटना विश्वविद्यालय) और उसके बाद बी०टेक० (शिमला विश्वविद्यालय)
पेशा- नौकरी की तलाश
शुरू से ही लेखन में रूचि रही..आज भी शौकिया तौर पर लिखता हूँ, आशा है
हमेशा लिखता रहूँगा
ब्लॉग-http://i555.blogspot.com
संपर्क- callmeshekhu@gmail.com
बहुत सुन्दर सहेजे हैं अह्सास्।
ReplyDeleteवाह ... एक बेहतरीन शुरुआत ... बहुत खूब ..
ReplyDeleteसंस्कारों के पदचिह्न आज भी हैं,
ReplyDeleteमूल्यांकन की तदबीर आज भी है
कमाल का लिखा है रश्मि जी...
सबसे पहले आपको बधाई.
तुम अपने माज़ी का
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मैं भूली हुई कोई नज़्म ना दोहराऊं
तुम कौन हो
मैं क्या हूँ
वाह...वाह शेखर जी....बहुत उम्दा...बधाई.
बहुत सुन्दर अह्सास्।
ReplyDeleteबहुत उम्दा...बधाई.
शायद आपके ख्याल और दूर तक आपके साथ चलने को तैयार थे, आप शायद रुक गये!
ReplyDeleteचलो दूर तक
ReplyDeleteइन अजनबी रास्तों पर पैदल चलें..... वह बहुत खूब कहा शेखरजी ने.....
awesome God bless you
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद rashmi ji
ReplyDeletemeeri kavita yahan dekhkar achha laga...
aur sabhi padhne waalon ka bhi shukriya...
बहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteकभी कभी अजनबियत रिश्ते को और गहरा कर जाती है ...
इन अजनबी रास्तों पर पैदल चलें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
बेहद खुबसूरत प्रस्तुति ...आप दोनों को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteसहज अभिव्यक्ति द्वारा असहज मानसिकता से बतियाती सुंदर कविताएँ प्रस्तुत करने के लिए रश्मि प्रभा जी और शेखर आप दोनो को बहुत बहुत बधाई|
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ReplyDeleteसाथ अजनबी का
ReplyDeleteअजनबी राहों पर
सुलझा देगा मन की
अनजान व्यथा को
इक अनजानी सी आस
इक अनजाना सा विश्वास
आकार देगा अनजाने ही
अनजानी सी स्वप्न कथा को
आप दोनो को ही इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई
तुम अपने माज़ी का
ReplyDeleteकोई ज़िक्र न छेड़ो
मैं भूली हुई कोई नज़्म ना दोहराऊं
तुम कौन हो
मैं क्या हूँ
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ....प्रस्तुति के लिये आभार ।
यदि यह सच है तो बेहद शर्मनाक ....
ReplyDeleteमेरे पास निम्नलिखित मेल आई है
ReplyDeleteएक चोरी के मामले की सूचना :- दीप्ति नवाल जैसी उम्दा अदाकारा और रचनाकार की अनेको कविताएं कुछ बेहया और बेशर्म लोगों ने खुले आम चोरी की हैं। इनमे एक महाकवि चोर शिरोमणी हैं शेखर सुमन । दीप्ति नवाल की यह कविता यहां उनके ब्लाग पर देखिये और इसी कविता को महाकवि चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने अपनी बताते हुये वटवृक्ष ब्लाग पर हुबहू छपवाया है और बेशर्मी की हद देखिये कि वहीं पर चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने टिप्पणी करके पाठकों और वटवृक्ष ब्लाग मालिकों का आभार माना है. इसी कविता के साथ कवि के रूप में उनका परिचय भी छपा है. इस तरह दूसरों की रचनाओं को उठाकर अपने नाम से छपवाना क्या मानसिक दिवालिये पन और दूसरों को बेवकूफ़ समझने के अलावा क्या है? सजग पाठक जानता है कि किसकी क्या औकात है और रचना कहां से मारी गई है? क्या इस महा चोर कवि की लानत मलामत ब्लाग जगत करेगा? या यूं ही वाहवाही करके और चोरीयां करवाने के लिये उत्साहित करेगा?
अगर यह वाकई सच है तो बेहद शर्मनाक है निंदनीय कृत्य है !
रश्मि प्रभा जी से निवेदन है कि शेखर सुमन से इस संदर्भ में स्पष्टीकरण मांगे …
राजेन्द्र स्वर्णकार
अगर यह वाकई सच है तो बेहद शर्मनाक है निंदनीय कृत्य है !
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी से निवेदन है कि शेखर सुमन से इस संदर्भ में स्पष्टीकरण मांगे …
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ReplyDeleteरश्मि जी,
ReplyDeleteमेल मेरे पास भी आई है जिसमें दीप्ति नवल जी की मौलिक पोस्ट का ऑनलाइन लिंक भी है। दीप्ति नवल जी की मूल कविता यहाँ है:
http://www.deeptinaval.com/lamha-gulzars_chalo_dur_tak.html
लिंक पर जाने से साफ ज़ाहिर है कि यह कविता दीप्ति नवल की ही है।
कृपया आप सभी मेरे ब्लॉग पर आये या आज का हिंदुस्तान उठा कर शब्द कॉलम पढें। दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा। मुझे लगता है इस चोर ने सोचा होगा की दीप्ति नवल जी के पास समय ही कहाँ है जो चोर को पकड़े। ऎसे इंसान को हटा देना चाहिये। बहुत ही गलत कार्य है यह।
ReplyDeletehttp://mereerachana.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
यहाँ जरूर पढ़े...
बहुत अफ़सोस जनक ....
ReplyDeleteनिंदनीय...मैं खुद भुक्तभोगी इस तरह की चोरी का
ReplyDeleteसच्चाई सामने आ ही जाती है। लेकिन दीप्ति जी वाले ब्लॉग पेज से यह क्लियर नहीं हो पा रहा कि वहाँ यह रचना कब छपी है, या फ़िर मैं ही नहीं मालूम कर पा रहा।
ReplyDeleteकिसी दूसरे की रचना को खुद की बताकर छापना और वाहवाही लूटना शर्मनाक है।
must be condemned...
ReplyDeleteYe nindniy kaary hai ... Ye rachna Deepti JI ke blog par hai par uske prakashan ki tithi nahi hai. Aise kaamon ki bhatsarna honi chaahiye aur sach bhi saamne aana chaahiye.
ReplyDeleteअगर यह सच है तो दुष्कृत है निंदनीय है।
ReplyDeleteपिछले दो दिनों से सफ़र पर था, अभी जब दिल्ली पहुंचा हूँ तो एक विवाद का पता चला... ये जो विवाद उठ खड़ा हुआ है इसकी बहुत लम्बी कहानी है, जब मैं अपने कॉलेज में था तो मेरे एक मित्र ने ये कविता मुझे ये कहते हुए दी की ये उसने लिखी है और उसका कोई ब्लॉग नहीं है इसलिए अपने ब्लॉग पर मैं अपने नाम से ही पोस्ट कर दूं... मुझसे बस यही गलती हो गयी की मैंने बिना किसी विशेष खोज-पड़ताल के ये कविता अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दी... गूगल सर्च पर आप अभी भी देख सकते हैं ये कविता आपको कहीं नहीं मिलेगी... फिर उसके बाद आदरणीय रश्मि जी ने ये रचना वटवृक्ष के लिए मंगा ली.... हालाँकि मुझे कुछ महीनो के बाद इसकी मौलिकता पर शक हुआ तो मैंने एक टिपण्णी में माफीनामे के साथ ये कविता अपने ब्लॉग से हटा ली थी, लेकिन यहाँ का ध्यान नहीं रहा...
ReplyDeleteमैं पूरे ह्रदय से आदरणीय दीप्ती नवल जी, आदरणीय रश्मि जी, आदरणीय रविन्द्र प्रभात जी, वटवृक्ष और समस्त ब्लॉग जगत से माफ़ी मांगता हूँ.. और आपको ये विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने ये कोई जानबूझ कर नहीं किया.. जो लोग मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं वो शायद इस बात को समझ लेंगे... मेरी कोई भी व्यक्तिगत मंशा नहीं थी....
अब सब कुछ साफ़ हो ही चुका है और शेखर जी ने माफी भी मांग ली है तो अनजाने में हुई इस भूल को भुला देना चाहिए
ReplyDeleteक्या इनकी बाकी कविताओं की भी जांच होनी चाहिये ?
ReplyDeleteबाकी माफ़ी मांग कर आपने बड़े दिल का परिचय दिया है
धन्यवाद
this is very wrong and thio post should be removed now that it has been proved that the poem dipti navals
ReplyDeleteजब शेखर के किसी दोस्त ने ये कविता दी थी तो शेखर इस कविता को अपना क्यों बता रहा था?
ReplyDeleteयह चोरकतई है.
@ शेखर सुमन
ReplyDeleteअभी भी चोरी और सीना जोरी वाली स्टाइल है तुम्हारी? तुम्हारा यह कहना कि आपको यह कविता गूगल सर्च में कहीं नही मिलेगी।
क्यों नही मिलेगी? वो इसलिये कि तुम्हारे जैसे चोर उठाईगिरों से बचने के लिये दीप्ति नवाल जी ने अपनी कवितायें वहां स्केन करके इमेज स्वरूप डाल रखी हैं। और इमेज कभी भी सर्च में नही आती।
लगता है तुम्हें पछतावा नही है बल्कि अपनी मासूमियत दिखा रहे हो? इसी पोस्ट की टिप्पणी में कितनी शान से तुमने आभार प्रकट किया है? उस समय भी शर्म नही आयी थी तो अब क्या आयेगी?
तुम जैसे लोगों को तो शर्म से डूब मरना चाहिये एक बूंद पानी में डूबकर।
तुम्हारा ब्लाग और उसकी लेखन शैली से ही पता लग जाता है कि तुम्हारे लेखन की औकात क्या है? तुम्हारे नाम से यह कविता ऐसी लग रही थी जैसे भिखारी के हाथ में असली हीरे की कीमती अंगूठी हो। और इसी वजह से सारी जांच पडताल के बाद मैने यह लिंक दिये थे।
अगर जरा भी शर्म हया बाकी हो तो इस बात का सहारा मत लो कि दोस्त ने दी थी बल्कि खुले आम कहो कि खुद तुमने चुराई थी।
@ रश्मि जी
ReplyDeleteआपसे निवेदन है कि इस पोस्ट को और इस पर आई टिप्पणियों को जस का तस रहने दिजिये जिससे यह सबक रहेगा। और कई लोग आपके पास आयेंगे इसे हटवाने के लिये।
आशा करता हूं कि आप इन चोरों को और प्रोत्साहित करने की बजाये हतोत्साहित करने की दिशा में काम करेंगी और यह पोस्ट यूं ही रहने दी जायेगी।
मेरे ब्लॉग पर Radhe Radhe Satak Bihari जी ने अपनी टिप्पणी द्वारा इस प्रसंग से अवगत कराया है कि -
ReplyDelete‘‘एक चोरी के मामले की सूचना :- दीप्ति नवाल जैसी उम्दा अदाकारा और रचनाकार की अनेको कविताएं कुछ बेहया और बेशर्म लोगों ने खुले आम चोरी की हैं। इनमे एक महाकवि चोर शिरोमणी हैं शेखर सुमन । दीप्ति नवाल की यह कविता यहां उनके ब्लाग पर देखिये और इसी कविता को महाकवि चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने अपनी बताते हुये वटवृक्ष ब्लाग पर हुबहू छपवाया है और बेशर्मी की हद देखिये कि वहीं पर चोर शिरोमणी शेखर सुमन ने टिप्पणी करके पाठकों और वटवृक्ष ब्लाग मालिकों का आभार माना है. इसी कविता के साथ कवि के रूप में उनका परिचय भी छपा है. इस तरह दूसरों की रचनाओं को उठाकर अपने नाम से छपवाना क्या मानसिक दिवालिये पन और दूसरों को बेवकूफ़ समझने के अलावा क्या है? सजग पाठक जानता है कि किसकी क्या औकात है और रचना कहां से मारी गई है? क्या इस महा चोर कवि की लानत मलामत ब्लाग जगत करेगा? या यूं ही वाहवाही करके और चोरीयां करवाने के लिये उत्साहित करेगा? ’’
यह सचमुच दुखद और शर्मनाक प्रसंग है।
ऐसे कृत्यों की निन्दा की ही जानी चाहिए।
राधे राधे जी की जागरूकता प्रशंसनीय है।
गूगल सर्च पर कविता न होने की दलील का क्या अर्थ है? ये तो चैक्प्वाईंट हुआ फ़िर कि कहीं से कुछ मिले तो उसे गूगल सर्च पर डाला जाये और फ़िर रिज़ल्ट न आने पर उसे अपना नाम दे दिया जाये।
ReplyDeleteऔर ये पोस्ट रिमूव करने से क्या होगा? गलती की है तो सीधे से स्वीकार करनी चाहिये। बाकी जो करेगा सो भरेगा।
मि. rrsb ने वाकई दूर की कौड़ी खोजी है। धन्यवाद के पात्र हैं।
एक मित्र ने ये कविता मुझे ये कहते हुए दी की ये उसने लिखी है और उसका कोई ब्लॉग नहीं है इसलिए अपने ब्लॉग पर मैं अपने नाम से ही पोस्ट कर दूं
ReplyDeleteजनाब ये भी तो अच्छी बात नहीं है कि आप अपने मित्र कि कविता अपने नाम से प्रकाशित करें .... क्या कविता के साथ उन महानुभाव, जिन्हें आपने मित्र कहा है, का नाम नहीं होना चाहिए.
या काही ऐसा तो नहीं कि पकड़े गए तो अपने काल्पनिक मित्र पर इल्जाम डाल दो
यह शर्मनाक है। इसकी निंदा की जानी चाहिए। रश्मि जी, आप इस पोस्ट को ऐसे ही रहने दें..ताकि सभी ब्लॉगर निंदा कर सकें। साहित्यिक चोर में एक अच्छी बात होती है कि निंदा पा कर शर्मिंदा होता है। मित्र की कविता छापते वक्त भी इसका जिक्र किया जाना चाहिए था। यहाँ छपने के बाद भी आभार नहीं लेना चाहिए था। गलती पर गलती क्षम्य नहीं है।
ReplyDeleteRRSB ने कमाल का काम किया है। इनका कोई ब्लॉग नहीं मिला। यह अच्छा है कि वे ब्लॉग की गंदगी साफ कर रहे हैं।
ReplyDeleteजो सच था वो मैंने हुबहू बता दिया है, सबसे सहृदय माफ़ी भी मांग ली है....बाकी विश्वास करना, नहीं करना आपके ऊपर है...
ReplyDeleteबंटी महाशय.
ये शब्द आपके मुंह से अच्छे नहीं लग रहे....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशेखर सुमन जैसे चोरों की निंदा और लानत मलामत करने के लिये आप सभी टिप्पणिकारों का हार्दिक धन्यवाद। आप सभी के द्वारा किये गये इस प्रयास से इन चोरों का हौसला परास्त होगा।
ReplyDeleteरश्मि जी का भी हार्दिक धन्यवाद जो उन्होने इस पोस्ट को टिप्पणियों सहित यहां रख छोडा है जिससे इन चोरों को सबक मिलता रहेगा।
अंत में उन रचनाकारों एक सुझाव देना चाहता हूं जो कि अपनी रचना को स्केन करके समझ लेते हैं कि वो इन चोरों से सुरक्षित होगये।
स्केन कभी भी गूगल सर्च में नही आता और शेखर सुमन जैसे तकनीक के जानकार चोर सबसे पहले यही देखते हैं कि यह रचना गूगल सर्च में नही आ रही है तो बेखटके उसको चुराकर अपने आपको साहित्य शिरोमणि समझते हैं। अत: स्केन करके डालने वाले अपनी रचनाओं का ध्यान रखा करें। अगर जरूरत लगे तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
सभी मित्रों को आश्वस्त करता हुं कि मुझसे जितना बन पडेगा इन चोरो की पोल समय समय पर आपके सामने लाता रहुंगा, अभी अनेकों बाकी हैं, यह तो एक नमूना आप लोगों के सामने पेश किया है आगे आगे देखिये और कौन कौन RRSB के निशाने पर आता है।
सभी टिप्पणीकारों का हार्दिक आभार।
Good work Mr. radhe radhe satak bihari. please just see the bellow link :-
ReplyDeleteIs blog par :-
http://purviya.blogspot.com/2011/01/blog-post_29.html
is blog post ki rachna:-
http://maakamal.blogspot.com/2010/11/blog-post.html