एक माँ मन्नतों की सीढियां तय करती है
एक माँ दुआओं के दीप जलाती है
एक माँ अपनी सांस सांस में मन्त्रों का जाप करती है
एक माँ एक एक निवाले मेंआशीष भरती है
एक माँ जितनी कमज़ोर दिखती है उससे कहीं ज्यादा शक्ति स्तम्भ बनती है
एक एक हवाओं को उसे पार करना होता है
जब बात उसके जायों की होती है
एक माँ प्रकृति के कण कण से उभरती है
निर्जीव भी सजीव हो जाये जब माँ उसे छू जाती है......

रश्मि प्रभा





=============================================
मदर हूँ मैं !


सहर हूँ मैं ,
तुम्हारे दर्द के हर रात का
सहर हूँ मैं

धीमे-धीमे दबे पाँव
घंटो तुझे देखती रहती
तुम्हारे सोने के बाद
ताकि ,कोई मच्छर न बैठने पावे ,वो
नज़र हूँ मैं !

तमाम जिंदगी चाहे वो अच्छे रहे या बुरे
खुद मट्ठा खाती रही
ताकि तुझे दही खिला सकूँ , हाँ
शज़र हूँ मैं !

मैं जानती हूँ ,
तुम्हारे लिए तुम्हारे बीवी ,तुम्हारे बच्चे ,
तुम्हारा आफिस ही तुम्हारा सबकुछ है
मैं कुछ भी नही !
और यदि कुछ हूँ तो कितना
कितना..? बता पाओगे तुम !
अपनी सोसाइटी अपना स्टेट्स बनाए रखने के लिए
एक बार फिर से तुम दही खाओगे...और ...
तुम, तुम्हारे बच्चे दही खाते रहे
इसलिए मैं मट्ठा खाऊँगी
और , चुप रहूंगी....आखिर
मदर हूँ मैं !

() अनुपम कर्ण
http://kaebh.blogspot.com/
Designation - Engineer(xml Programmer ,Aptara corp) ,Freelancer
Current Address -sector 21C,Faridabad -121001

19 comments:

  1. माँ के ह्रदय का बहुत खूबसूरत विवरण -
    सच में माँ का ह्रदय मंदिर ही है -
    सुंदर भावपूर्ण रचना -

    ReplyDelete
  2. माँ का वर्णन...
    जो वो अपने बच्चों के लिए करती है...
    उनके लिए जो भी सोचती है...
    बहुत प्यार से रचा गया है...

    ReplyDelete
  3. ये सब गुण तो माँ मे होते हैं मदर इस कर्म से लगभग दूर रहती है।

    ReplyDelete
  4. माँ की संवेदना और भावनाओं की बेहतरीन प्रस्तुति |

    उतनी अच्छी रश्मिजी की कविता ... बधाई |

    ReplyDelete
  5. इसलिए मैं मट्ठा खाऊँगी
    और , चुप रहूंगी....आखिर
    मदर हूँ मैं ...... छू गयी कहीं दिल को...... कचोट रहे है कुछ विचार..... याद आने लगी माँ की आज बहुत.

    ReplyDelete
  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    ReplyDelete
  7. आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद हौसलाफजाई के लिए !
    खासकर रश्मि प्रभा जी का जिन्होंने इसे लायक समझा !

    ReplyDelete
  8. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

    ReplyDelete
  9. मां के लिए चाहे जितना लिखा जाए, कम है
    दोनों रचनाएं बहुत अच्छी लगीं.

    ReplyDelete
  10. खुद मट्ठा पीकर बच्चों को दही सिर्फ माँ ही खिला सकती है ..!

    ReplyDelete
  11. "maa" itne chhote sabdo ko jitna sajaye kam hi lagta hai:)
    bahut khub!!

    ReplyDelete
  12. मां के बारे में सुन्‍दर भावमय प्रस्‍तुति ...बधाई ।

    ReplyDelete
  13. बहुत ही संवेदनशील,भावपूर्ण और सरल शब्दों में मर्मस्पर्शी कविता.

    सादर

    ReplyDelete
  14. भावपूर्ण प्रस्तुति!

    ReplyDelete

 
Top