एक माँ मन्नतों की सीढियां तय करती है
एक माँ दुआओं के दीप जलाती है
एक माँ अपनी सांस सांस में मन्त्रों का जाप करती है
एक माँ एक एक निवाले मेंआशीष भरती है
एक माँ जितनी कमज़ोर दिखती है उससे कहीं ज्यादा शक्ति स्तम्भ बनती है
एक एक हवाओं को उसे पार करना होता है
जब बात उसके जायों की होती है
एक माँ प्रकृति के कण कण से उभरती है
निर्जीव भी सजीव हो जाये जब माँ उसे छू जाती है......
रश्मि प्रभा
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मदर हूँ मैं !
सहर हूँ मैं ,
तुम्हारे दर्द के हर रात का
सहर हूँ मैं
धीमे-धीमे दबे पाँव
घंटो तुझे देखती रहती
तुम्हारे सोने के बाद
ताकि ,कोई मच्छर न बैठने पावे ,वो
नज़र हूँ मैं !
तमाम जिंदगी चाहे वो अच्छे रहे या बुरे
खुद मट्ठा खाती रही
ताकि तुझे दही खिला सकूँ , हाँ
शज़र हूँ मैं !
मैं जानती हूँ ,
तुम्हारे लिए तुम्हारे बीवी ,तुम्हारे बच्चे ,
तुम्हारा आफिस ही तुम्हारा सबकुछ है
मैं कुछ भी नही !
और यदि कुछ हूँ तो कितना
कितना..? बता पाओगे तुम !
अपनी सोसाइटी अपना स्टेट्स बनाए रखने के लिए
एक बार फिर से तुम दही खाओगे...और ...
तुम, तुम्हारे बच्चे दही खाते रहे
इसलिए मैं मट्ठा खाऊँगी
और , चुप रहूंगी....आखिर
मदर हूँ मैं !
() अनुपम कर्ण
http://kaebh.blogspot.com/
Designation - Engineer(xml Programmer ,Aptara corp) ,Freelancer
Current Address -sector 21C,Faridabad -121001
माँ के ह्रदय का बहुत खूबसूरत विवरण -
ReplyDeleteसच में माँ का ह्रदय मंदिर ही है -
सुंदर भावपूर्ण रचना -
माँ का वर्णन...
ReplyDeleteजो वो अपने बच्चों के लिए करती है...
उनके लिए जो भी सोचती है...
बहुत प्यार से रचा गया है...
अच्छी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना -
ReplyDeleteये सब गुण तो माँ मे होते हैं मदर इस कर्म से लगभग दूर रहती है।
ReplyDeleteमाँ की संवेदना और भावनाओं की बेहतरीन प्रस्तुति |
ReplyDeleteउतनी अच्छी रश्मिजी की कविता ... बधाई |
इसलिए मैं मट्ठा खाऊँगी
ReplyDeleteऔर , चुप रहूंगी....आखिर
मदर हूँ मैं ...... छू गयी कहीं दिल को...... कचोट रहे है कुछ विचार..... याद आने लगी माँ की आज बहुत.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद हौसलाफजाई के लिए !
ReplyDeleteखासकर रश्मि प्रभा जी का जिन्होंने इसे लायक समझा !
बेहतरीन....................
ReplyDeletebahut achchi lagi.
ReplyDeleteमां के लिए चाहे जितना लिखा जाए, कम है
ReplyDeleteदोनों रचनाएं बहुत अच्छी लगीं.
खुद मट्ठा पीकर बच्चों को दही सिर्फ माँ ही खिला सकती है ..!
ReplyDelete"maa" itne chhote sabdo ko jitna sajaye kam hi lagta hai:)
ReplyDeletebahut khub!!
मां के बारे में सुन्दर भावमय प्रस्तुति ...बधाई ।
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील,भावपूर्ण और सरल शब्दों में मर्मस्पर्शी कविता.
ReplyDeleteसादर
भावपूर्ण प्रस्तुति!
ReplyDeletesach mein, maa esi hi hoti hai...
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