कितना कुछ होता है आँखों में
जाता ही नहीं
हर दिन कहता है
उस खुदा के सज़दे से कभी दूर ना होना
जिसने हर सोच से पहले तुमको सोचा है ........


रश्मि प्रभा




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!! बेहतर खुदा !!


अमुक तारीख को
भरनी है फीस.
लानी हैं चप्पलें,
नई एक कमीज.

अमुक इंसान से,
पूछना है कहीं,
मिल रही हो साइकिल,
कम दाम में.

अमुक स्कूल जा,
करना है पता.
छठवीं का फॉर्म,
कब निकलता है?


अमुक सड़क से हो,
जाना है घर.
व्याकरण पढ़ाने को,
वक़्त बचता है.

अमुक दुकान से,
खरीदने हैं पटाखें.
परिचित है अहमद,
अच्छे पटाखे देगा.

अमुक दुकान से,
खरीदने हैं लड्डू.
चश्मा फिर कभी,
आज दिवाली है.


असीम स्नेह में,
ऐसे कितने ही,
दिन-हफ्ते-साल,
अमुक कह कर,
मूक रह कर,
काट दिए तुमने.

जाने कहाँ-कहाँ से,
चुने जीवन पुष्प.
निहारे बिना ही,
एक क्षण भी,
हममें बाँट दिए तुमने.

सुनो अब्बा!
मिले किसी मस्जिद,
तुम्हारा अमुक खुदा.
तो कहना फ़क्र से,
तुम बेहतर खुदा हो.

अविनाश चन्द्र

http://penavinash.blogspot.com/

उद्योग: अभियांत्रिकी

व्यवसाय: IT Engineer

स्थान: Varanasi/Gurgaon : UtterPradesh :





15 comments:

  1. पिता के कर्ज को चुकाने की एक नाकामयाब कोशिश ............
    अच्छे भाव ,अच्छे संस्कार को परिलक्षित करते हुए

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  2. अविनाश जी की कविता हमेहा अलग भाव लिए होती हैं.. नवीन बिम्ब होते हैं.. उसका एक और उदाहरन है यह कविता...

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  3. माता पिता ही असल खुदा हैं ... उनके सामने कोई और खुदा क्या ...
    बहुत ही सुन्दर रचना है ...

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  4. Avinash nice ...kishor avstha ki age me itni samaj achchi bat he .... kuch kar dikhane ki bhavna....ichcha pgrgat ki he ...

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  5. पिता को समर्पित यह रचना बहुत अच्छी लगी

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  6. माँ की ममता अनमोल है तो पिता का त्याग भी उससे कम नहीं है. उस त्याग को नमन करके उसे सम्मान और श्रद्धा का सही मोल आँका है.

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  7. बहुत उम्दा नज़्म अविनाश
    बधाई !
    इसी तरह अच्छा लिखते रहो ,ख़ूब ख़ुश रहो,ख़ूब लिखो
    लेकिन बेटा
    ये कभी मत भूलना कि ये फ़िक्र करने वाला दिमाग़ देने वाला ,नायक को इतने अच्छे अब्बा देने वाला भी ख़ुदा,भगवान ही है

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  8. बहुत ही सुन्‍दर रचना ।

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  9. पहले भी पढी थी और जितनी बार पढो हमेशा सुखद अह्सास देती है…………भावों का सुन्दर चित्रण्।

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  10. bahut hi sundar/ maa ko sabhi likhte hain, lekin aapne pita ko likha, bakai kabile tareef he

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  11. बहुत ही मार्मिक ... गज़ब का लिखा है ....

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  12. "सुनो अब्बा!
    मिले किसी मस्जिद,
    तुम्हारा अमुक खुदा.
    तो कहना फ़क्र से,
    तुम बेहतर खुदा हो."
    अविनाश अदृश्य खुदा के ऊपर दृश्य खुदा बना लेना एक जटिल कार्य है.संबंधों को इतना सम्मान देने के लिए आपको बधाई.

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  13. bahut khoobsurat... sachmuch mata-pita hi khuda ki pehli pehchaan hote hain...

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  14. यहाँ मुझे स्थान देने का, मुझे पढने का, स्नेह देने का ...आप सभी का बहुत आभार...

    @इस्मत जी, नहीं भूला...पर मैंने तो उनमे ही सब देखा है :)
    आप सा कोई अच्छा कहता है तो वाकई बहुत अच्छा लगता है...
    प्रणाम इन मीठे वचनों को, आप को.

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