जब असफलता निराश करे
तो कोई ख्वाब बुनो............
मैं दुआ हूँ-
उन ख़्वाबों की ज़मीन पर
जहाँ निराशा अपनी असफलता पर रोती है
और तुम्हारी आंखों में
सुबह की किरणें जगमगाती हैं.........
मेरी मानो,
ख़्वाबों को मकसद बना लो !
रश्मि प्रभा
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मेरा परिचय - मैं अपर्णा त्रिपाठी कानपुर के एक इंजीनियरिंग कालेज में अध्यापिका हूँ । कम्प्यूटर तकनीक मेरा अध्ययन क्षेत्र है । पिछ्ले आठ वर्षों से मै अध्यापन का कार्य कर रही हूँ ।हिन्दी साहित्य पढना और लेखन मेरा शौक है। कुछ समय से मै ब्लाग लिख रही हूँ । सदा आप सभी की शुभकामनाओ एवं मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी.....!ई.मेल : aprnatripathi@gmail.com"
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!! मुकद्दर की हकीकत !!
लाख हम चाहे हर सपना ,हकीकत बनता नहीं ।
जो मुकद्दर में न हो ,वो हासिल होता नहीं ॥
हालात कभी किसी के ,एक से रहते नहीं ।
कौन सा जख्म है , जिसकी दवा वक्त होता नहीं ।।
जिन्दगी में सिर्फ सुख मिलें, ये मुमकिन होता नहीं
अश्क के आये बिना तो ,खु्शियां भी पूरी होती नहीं ।।
जो मिला है हमें , वो भी कम तो नहीं ।
क्यों गिने वो जो , हाथ में आया ही नहीं ॥
अक्सर जो सोचते हैं, वो पूरा होता नहीं ।
और जो देता है खुदा, उसे हम सोच पाते ही नहीं ॥
माना मुड़ के देखने से वक्त को , मुकद्दर बनता नहीं ।
मगर मुकद्दर बनाने की खातिर बीता वक्त भूलना नहीं ॥
()अपर्णा त्रिपाठी
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जिन्दगी में सिर्फ सुख मिलें, ये मुमकिन होता नहीं
ReplyDeleteअश्क के आये बिना तो ,खु्शियां भी पूरी होती नहीं ।।
जो मिला है हमें , वो भी कम तो नहीं ।
क्यों गिने वो जो , हाथ में आया ही नहीं ॥
बिल्कुल यही फ़लसफ़ा अगर इंसान अपने जीवन मे उतार ले तो जीना कितना आसान हो जाये………बेहतरीन प्रस्तुति।
craft par thodi mehnat karni padegi....
ReplyDeleteअपर्णा जी , बहुत सुन्दर रचना है आपकी ....
ReplyDeleteअपनी ही कविता से एक पंक्ति कहना चाहूंगी कि "उलझनों की युक्तियाँ निराशा के पार होती है "
रश्मि जी, आशा निराशा का संजोजन बहुत मन भाया...सकारात्मक द्रष्टिकोण प्रदान करती रचना बहुत सुन्दर लगी आपकी .
रश्मि प्रभा जी = "ख्वाबों को मकसद बना लो"
ReplyDeleteअपर्णा जी = "मगर मुकद्दर बनाने की खातिर बीता वक्त भूलना नहीं"
मुक़द्दर के ये दो पहलू बहुत ही सशक्त और सुंदर लगे| आप दोनो को बधाई|
लाख हम चाहे हर सपना ,हकीकत बनता नहीं ।
ReplyDeleteजो मुकद्दर में न हो ,वो हासिल होता नहीं ॥
har sapna haqiqat banta nahi, lekin kuchh to jaru badal jate hain hakikat me......:)
ek achchhi rachna......
और तुम्हारी आंखों में
ReplyDeleteसुबह की किरणें जगमगाती हैं
मेरी मानो
ख़्वाबों को मकसद बना लो
और
जिन्दगी में सिर्फ सुख मिलें, ये मुमकिन होता नहीं
अश्क के आये बिना तो ,खु्शियां भी पूरी होती नहीं ।।
दोनों ही रचनाएं अत्यंत प्रभावशाली हैं।
रचना बहुत सुन्दर लगी आपकी .
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रभावशाली द्रष्टिकोण,बधाई|
ReplyDeleteअपर्णा जी , बहुत सुन्दर और
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावशाली रचना है आपकी ....
jine ke bhtrin tips hen in farmulon se to hm zindgi bsr kr lenge koi gmgin shaam hui bhi agr to bs yun hi hnste hnste sehar kr lenge. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteदीदी, अपर्णा जी की रचना सुन्दर है और उसपर आपका टिका ... वाह क्या कहने ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से सच्चाई लिखी है ..
ReplyDeleteachha drishtikon.
ReplyDeleteआप सभी की शुक्रगुजार हूँ , कि आपने मेरी रचना की सराहना की ।
ReplyDeleteरश्मि जी आपका बहुत धन्यवाद , मुझे वटवृक्ष की छाँव में आने के योग्य समझने के लिये ।
बहुत ख़ूबसूरती से संजोये है आपने भाव इस रचना में ... बहुत खूब ..
ReplyDeleteBAHUT HI PRABHAAVI RACHNAA ... DONO EK DOOJE KI POORAK ...
ReplyDeleteकिसी ने क्या खूब कहा है...
ReplyDelete"ज़िन्दगी तस्वीर भी है और तकदीर भी.."
मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर...
अनचाहे रंगों से बने तो तकदीर.....!!..
अक्सर जो सोचते हैं, वो पूरा होता नहीं ।
ReplyDeleteऔर जो देता है खुदा, उसे हम सोच पाते ही नहीं ॥
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
khoobsoorat rachnayen !
ReplyDelete
ReplyDeleteनमस्कार,
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जय हिंद जय भारती !
अभिषेक पान्डेय
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