द्वन्द
वर्षों का द्वन्द है
प्रश्न सुरसा की तरह मुंह फैलाये
खड़े होते हैं
ऐसे में घबराकर
हम जातक कथाओं की बात करने लगते हैं
लेकिन तब भी
सुरसा का मुंह बन्द नहीं होता...
फिर हम खुद को कृष्ण बना
अन्दर के अर्जुन से कहते हैं
'तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो ...'
और आँख लग जाती है
सुरसा मुस्कुराती है --- फिर सुबह होगी !
सुरसा हमारे अन्दर का भय
भय से उत्पन्न शक ...
जब सुरसा हमसफ़र बन जाये
तो खूबसूरत रास्ते भी
सवालों के काँटों से
हमें अवश शिथिल करते जाते हैं ...
"अच्छे" का खिताब पाने के लिए
हम सुरसा के मुंह में सोना पसंद करते हैं
बाकी दिनचर्या तो
रटंतू तोता की कहानी है ---
'शिकारी आएगा जाल बिछाएगा
दाना डालेगा
लोभ से फंसना नहीं ...'
शिकारी हम
जाल हमारा द्वन्द
दाना मगरमच्छी आंसू !
जाल में फंसना क्या
हम ही उसे ओढ़ते जाते हैं
और दिन बीतता जाता है !
रश्मि प्रभा
http://www.youtube.com/watch?v=Jo_VYg-uKlY
द्वन्द के बहाने जीवन के संघर्ष की बात करती कविता अच्छी लगी !
ReplyDeleteरचना बहुत सुन्दर है ... और बहुत सुन्दर तरीके से आपने एक सच को कहा है ... ये सच है कि हम खुद अच्छे बन्ने के लिए शक, लोभ, नाराज़गी और फिर नफरत के जाल में फंसते जाते हैं ...ये शायद हमारी गैर जिम्मेदाराना सोच है जो हमसे ऐसा करवाती है ...
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई को चरितार्थ कर दिया………………बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशिकारी हम
ReplyDeleteजाल हमारा द्वन्द
दाना मगरमच्छी आंसू !
जाल में फंसना क्या
हम ही उसे ओढ़ते जाते हैं
और दिन बीतता जाता है ...
जीवन के द्वन्द को बहुत बखूबी उभारा है आपने .... ये सच है की सभी कुछ हमारे अन्दर है और इसी से हमें ऊर्जा भी मिलती है .... भय भी आता है ... क्षोभ भी और उभरन भी ...
jeevan ke mahtvapooran tathya ko ujagar karti rachna... bahut achhi lagi ..:)
ReplyDeleteफिर हम खुद को कृष्ण बना
ReplyDeleteअन्दर के अर्जुन से कहते हैं
'तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो ...'
और आँख लग जाती है
सुरसा मुस्कुराती है --- फिर सुबह होगी !
रश्मि जी,
द्वंद को कितनी खूबसूरती से पेश किया है आपने.
जाल में फंसना क्या
ReplyDeleteहम ही उसे ओढ़ते जाते हैं
बहुत ही सुन्दर शब्द, बिल्कुल सच्चे अर्थों के साथ ।
sundar abhivyakti!
ReplyDeleteद्वंद्वात्मक चिंतन।
ReplyDeleteअच्छे" का खिताब पाने के लिए
ReplyDeleteहम सुरसा के मुंह में सोना पसंद करते हैं
बाकी दिनचर्या तो
रटंतू तोता की कहानी है ---
'शिकारी आएगा जाल बिछाएगा
दाना डालेगा
लोभ से फंसना नहीं ...'
....sach mein lobh se bachna kitna mushkil hai.... jiwan ke antrik dwandh ko bakhubi prastut kiya hai aapne..
द्वंद को खूबसूरती से पेश करती सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजाल में फंसना क्या
ReplyDeleteहम ही उसे ओढ़ते जाते हैं
जीवन का संघर्ष और ये अंतर द्वंद कभी ख़त्म नहीं होने वाला ... बेहतरीन प्रस्तुति ...
बहुत सटीक ..ज़िंदगी का फलसफा बता दिया ...
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील पंक्तियाँ हैं.... प्रासंगिक और सटीक जीवन यथार्थ को बयां करती....
ReplyDeleteजाल , नफरत , शक ..
ReplyDeleteसब हमारे ओढ़े हुए हैं ..
हमारे मन के भय ...
बहुत सही !
द्वंद्व जीवन से ही जूडा ही है, सिर्फ उसके अनुभव और अभिव्यक्ति में फर्क होता है... अच्छी या सफल रचना की खासियत यह है कि हर किसी को अपनी "फीलिंग्स" लगे | आपकी कविता में वही होता है |
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