यादों के बर्फीले फाहे और मैं .... सिहरती जा रही हूँ
यादों की अंगीठी सुलगा ली है .... गर्म शॉल भी डाल लिया है
उँगलियों में फंसी यादें बड़ी बेशरम हैं !



रश्मि प्रभा


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बड़ी बेशरम हैं !

बिल्कुल
बंजारों के झुंड जैसी,
चली आती हैं ;
गाते- बजाते-
यादें तेरी !

तोड़ के ,
मेरे मन के सारे;
'अलीगढ़ी' ताले..
घुस जाती हैं भीतर!
ये नहीं कि,
बैठ जाएं -
कोने में दुबक के !
बड़ी बेशरम हैं !!
छितरा जाती हैं ,
पूरे आँगन भर में;
यादें तेरी !

पा लेती हैं विस्तार ,
गाड़ के तंबू अपना -
गाते बजाते रहती हैं!
रोटियां सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ..

जला के आग मेरे सीने में,
घूमते रहती हैं-
किसी दरवेश की तरह !
गाते बजाते रहती हैं !
रोटियां सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ..

आ भी जाए जो
नगर निगम से ;
अतिक्रमण टीमें -
ठेठ गालियाँ देकर,
भेज देती हैं उलटे पांव!
बड़ी बेशरम हैं -
गाते बजाते रहती हैं !
रोटियाँ सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ..
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मोना कोहली 'बाबुशा'

मेरी रूह खानाबदोश है और मेरे ख्वाब आवारा ! मैं कोई हस्ती नहीं हूँ जिसे ' अबाउट मी ' कालम में बाँधा जा सके ! जो मैं आज हूँ , कल मैं वो नहीं ! मेरा एक ही नियम है कि मेरा कोई नियम नहीं! मैं हर जगह हूँ और कहीं भी नहीं ! मैं नहीं हूँ सचमुच 'मैं', नहीं मैं कुछ भी नहीं।

21 comments:

  1. यादों की अंगीठी सुलगा ली है .... गर्म शॉल भी डाल लिया है ..वाह ...बहुत खूब ..सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. वाह वाह यादों की खानाबदोशी का बहुत ही शानदार चित्रण किया है……………।दिल को छू गयी कविता।

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  3. कभी कभी बेशर्मी भी बेशर्मों से लड़ने में घातक हथियार बन जाती है....सुन्दर अभिव्यक्ति ..आप दोनों की....

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  4. ऐसी बेशरम ढीठ यादें ...
    बनी रहें !

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  5. *** अब इन यादों को समेट कर आलमारी के सेफ़ में रख देना है।

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  6. बीन बजाते हुए
    सपेरों की बीन जैसी
    मधुर हर बात तेरी
    दरवेशों जैसी मस्त
    याद तेरी

    ख़ूने जिगर से गूंधकर
    इश्क़ की आँच पर
    रोटी सेकना तेरा
    बहुत सुंदर है
    याद तेरी

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  7. atyant sundar bhav.....manabhavan
    http://kavyana.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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  8. कविता के भाव सुन्दर हैं !
    आभार !

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  9. खूबसूरत पंक्तियों की यादें ले जा रही हूं ....

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  10. सुना है बंजारे अक्सर ताले तोड़ने का काम करते हैं तो फिर बंजारी यादें भी अलीगढ का ताला तोड़ दें तो नया क्या है :):)
    नए नए बिम्बो से बुनी अच्छी रचना

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  11. बिल्कुल
    बंजारों के झुंड जैसी,
    चली आती हैं ;
    गाते- बजाते-
    यादें तेरी !
    बहुत ही सुंदर और भावुक कर देने वाली कविता बधाई रश्मि जी सुनहरी कलम पर सत्यनारायण जी के गीत हैं जो आपके शहर पटना के हैं |समय मिले तो अवलोकन करने का कष्ट करें |

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  12. अनूठे बिंब से सजी, सुंदर भाषा शैली में रची यह कविता एक नया एहसास कराती है।
    ..मोना जी को बधाई।

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  13. अजब बिम्बों के प्रयोग सुंदर भाव सीढ़ी सरल भाषा जो सीधे दिल में उतरे. अच्छी कविता अच्छे विचार.

    कवियित्री और प्रस्तुतकर्ता दोनों को बधाईयाँ

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  14. बहुत सुन्दर
    ठेठ उलाहनी अन्दाज बहुत अच्छा लगा

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  15. इन अल्हड यादों का ठेठ बंजारापन बहुत भाया ! लड़ती झगड़ती, साधिकार मन में पैठ बनातीं इन उग्र यादों की बानगी ने मन मोह लिया ! बहुत अनूठी रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  16. खानाबदोशी यादें...... मगर घूम फिर के एक ही जगह तो आके मिलती है, जहाँ से बनी थी वो....

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  17. आ भी जाए जो
    नगर निगम से ;
    अतिक्रमण टीमें -
    ठेठ गालियाँ देकर,
    भेज देती हैं उलटे पांव!
    बड़ी बेशरम हैं -
    गाते बजाते रहती हैं !
    रोटियाँ सेंकते रहती हैं !!
    यादें तेरी ..
    Mona jee,very life-like and full of natural rusticity.Very touching and brilliant !

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  18. बिल्कुल
    बंजारों के झुंड जैसी,
    चली आती हैं ;
    गाते- बजाते-
    यादें तेरी !

    बिलकुल पहली पंक्तियों में ही मन मोह लिया इस कविता ने ... बहुत सुन्दर कविता !

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  19. जला के आग मेरे सीने में,
    घूमते रहती हैं-
    किसी दरवेश की तरह !
    गाते बजाते रहती हैं !
    रोटियां सेंकते रहती हैं !!
    यादें तेरी ......................
    बहुत खूब लिखा है आपने...अपनी यादो को .....ऐसे ही लिखती रहे

    ((यादे ..जो भूलती नहीं है ...आ आ कर सताती है
    किताबें बंद हैं यादों की जब सारी मेरे मन में
    ये किस्से जेह्‍न से रह-रह कौन पढ़ता है.......(((अंजु)))))

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