यादों के बर्फीले फाहे और मैं .... सिहरती जा रही हूँ
यादों की अंगीठी सुलगा ली है .... गर्म शॉल भी डाल लिया है
उँगलियों में फंसी यादें बड़ी बेशरम हैं !
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बड़ी बेशरम हैं !
बिल्कुल
बंजारों के झुंड जैसी,
चली आती हैं ;
गाते- बजाते-
यादें तेरी !
तोड़ के ,
मेरे मन के सारे;
'अलीगढ़ी' ताले..
घुस जाती हैं भीतर!
ये नहीं कि,
बैठ जाएं -
कोने में दुबक के !
बड़ी बेशरम हैं !!
छितरा जाती हैं ,
पूरे आँगन भर में;
यादें तेरी !
पा लेती हैं विस्तार ,
गाड़ के तंबू अपना -
गाते बजाते रहती हैं!
रोटियां सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ..
जला के आग मेरे सीने में,
घूमते रहती हैं-
किसी दरवेश की तरह !
गाते बजाते रहती हैं !
रोटियां सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ..
आ भी जाए जो
नगर निगम से ;
अतिक्रमण टीमें -
ठेठ गालियाँ देकर,
भेज देती हैं उलटे पांव!
बड़ी बेशरम हैं -
गाते बजाते रहती हैं !
रोटियाँ सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ..
मोना कोहली 'बाबुशा'
मेरी रूह खानाबदोश है और मेरे ख्वाब आवारा ! मैं कोई हस्ती नहीं हूँ जिसे ' अबाउट मी ' कालम में बाँधा जा सके ! जो मैं आज हूँ , कल मैं वो नहीं ! मेरा एक ही नियम है कि मेरा कोई नियम नहीं! मैं हर जगह हूँ और कहीं भी नहीं ! मैं नहीं हूँ सचमुच 'मैं', नहीं मैं कुछ भी नहीं।
यादों की अंगीठी सुलगा ली है .... गर्म शॉल भी डाल लिया है ..वाह ...बहुत खूब ..सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह वाह यादों की खानाबदोशी का बहुत ही शानदार चित्रण किया है……………।दिल को छू गयी कविता।
ReplyDeleteकभी कभी बेशर्मी भी बेशर्मों से लड़ने में घातक हथियार बन जाती है....सुन्दर अभिव्यक्ति ..आप दोनों की....
ReplyDeleteऐसी बेशरम ढीठ यादें ...
ReplyDeleteबनी रहें !
*** अब इन यादों को समेट कर आलमारी के सेफ़ में रख देना है।
ReplyDeleteबीन बजाते हुए
ReplyDeleteसपेरों की बीन जैसी
मधुर हर बात तेरी
दरवेशों जैसी मस्त
याद तेरी
ख़ूने जिगर से गूंधकर
इश्क़ की आँच पर
रोटी सेकना तेरा
बहुत सुंदर है
याद तेरी
atyant sundar bhav.....manabhavan
ReplyDeletehttp://kavyana.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
कविता के भाव सुन्दर हैं !
ReplyDeleteआभार !
खूबसूरत पंक्तियों की यादें ले जा रही हूं ....
ReplyDeleteसुना है बंजारे अक्सर ताले तोड़ने का काम करते हैं तो फिर बंजारी यादें भी अलीगढ का ताला तोड़ दें तो नया क्या है :):)
ReplyDeleteनए नए बिम्बो से बुनी अच्छी रचना
बिल्कुल
ReplyDeleteबंजारों के झुंड जैसी,
चली आती हैं ;
गाते- बजाते-
यादें तेरी !
बहुत ही सुंदर और भावुक कर देने वाली कविता बधाई रश्मि जी सुनहरी कलम पर सत्यनारायण जी के गीत हैं जो आपके शहर पटना के हैं |समय मिले तो अवलोकन करने का कष्ट करें |
Wonderful creation !
ReplyDeleteअनूठे बिंब से सजी, सुंदर भाषा शैली में रची यह कविता एक नया एहसास कराती है।
ReplyDelete..मोना जी को बधाई।
अजब बिम्बों के प्रयोग सुंदर भाव सीढ़ी सरल भाषा जो सीधे दिल में उतरे. अच्छी कविता अच्छे विचार.
ReplyDeleteकवियित्री और प्रस्तुतकर्ता दोनों को बधाईयाँ
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteठेठ उलाहनी अन्दाज बहुत अच्छा लगा
इन अल्हड यादों का ठेठ बंजारापन बहुत भाया ! लड़ती झगड़ती, साधिकार मन में पैठ बनातीं इन उग्र यादों की बानगी ने मन मोह लिया ! बहुत अनूठी रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeletepyari si rachna..
ReplyDeletebadi achhi lagi
खानाबदोशी यादें...... मगर घूम फिर के एक ही जगह तो आके मिलती है, जहाँ से बनी थी वो....
ReplyDeleteआ भी जाए जो
ReplyDeleteनगर निगम से ;
अतिक्रमण टीमें -
ठेठ गालियाँ देकर,
भेज देती हैं उलटे पांव!
बड़ी बेशरम हैं -
गाते बजाते रहती हैं !
रोटियाँ सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ..
Mona jee,very life-like and full of natural rusticity.Very touching and brilliant !
बिल्कुल
ReplyDeleteबंजारों के झुंड जैसी,
चली आती हैं ;
गाते- बजाते-
यादें तेरी !
बिलकुल पहली पंक्तियों में ही मन मोह लिया इस कविता ने ... बहुत सुन्दर कविता !
जला के आग मेरे सीने में,
ReplyDeleteघूमते रहती हैं-
किसी दरवेश की तरह !
गाते बजाते रहती हैं !
रोटियां सेंकते रहती हैं !!
यादें तेरी ......................
बहुत खूब लिखा है आपने...अपनी यादो को .....ऐसे ही लिखती रहे
((यादे ..जो भूलती नहीं है ...आ आ कर सताती है
किताबें बंद हैं यादों की जब सारी मेरे मन में
ये किस्से जेह्न से रह-रह कौन पढ़ता है.......(((अंजु)))))