पैसा !
इक्षाओं का विस्तार है ,
भावनाओं पर ग्रहण है ,
रिश्तों को बड़ी बेरहमी से कुचल डालता है !

रश्मि प्रभा



=======================================================
अर्थ!

रिश्तों के बदले अर्थों में
अब कौन किसी का होता है।
रिश्ते बेमानी हो जाते हैं,
जब अर्थ पास नहीं होता है।

रिश्ते खंडित होते देखे
जब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।

एक निर्बल निर्धन ही तो है,
जो रिश्तों को पानी देता है।
वरना पैसे वालों का तो अब
पैसा ही सब कुछ होता है।

अपनों के प्यार की आस लिए,
कितने चिरनिद्रा में सोते हैं।
क्योंकि पैसे वाले तो अब
दायित्वों को भी पैसे से ही ढोते है.

रेखा श्रीवास्तव
कानपुर,
मेरा फोटोमैं आई आई टी , कानपूर में मशीन अनुवाद प्रोजेक्ट में कार्य कर रही हूँ. इस दिशा में हिंदी के लिए किये जा रहे प्रयासों से वर्षों से जुड़ी हूँ. लेखन मेरा सबसे प्रिय और पुरानी आदत है. आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं , इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है. गलत को सही दिशा का भान कराना मेरी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने. सच को लिखने में कलम संकोच नहीं करती.

22 comments:

  1. रिश्ते खंडित होते देखे
    जब अर्थ बीच में आता है।
    इस पैसे की खातिर ही तो
    अपना अपनों को खोता है।

    जिंदगी का सार है ये रचना .....

    ReplyDelete
  2. अपनों के प्यार की आस लिए,
    कितने चिरनिद्रा में सोते हैं।
    क्योंकि पैसे वाले तो अब
    दायित्वों को भी पैसे से ही ढोते है.

    पैसे ने आज की दुनिया को किस कदर स्वार्थी बना दिया है। रेखा जी की रचना बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. रिश्ते खंडित होते देखे
    जब अर्थ बीच में आता है।
    इस पैसे की खातिर ही तो
    अपना अपनों को खोता है।
    वाह ... अर्थ को विस्‍तारित करती यह अभिव्‍यक्ति

    लाजवाब है ... आपका बहुत - बहुत आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

    ReplyDelete
  4. पैसे ने ज़िन्दगी के अर्थ ही बदल दिये हैं…………शानदार अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  5. सच कहा रेखाजी.
    "रिश्ते खंडित होते देखे
    जब अर्थ बीच में आता है।
    इस पैसे की खातिर ही तो
    अपना अपनों को खोता है।"
    आज के अर्थ-युग का सार लिख दिया आपने.बचपन में जब गाँव जाता था तो रिश्तों की भरमार पाता था,लेकिन आज तो वहां भी सब स्वयं में सिमटे से लगाते हैं.मन को छूती रचना.

    ReplyDelete
  6. रिश्तों को बड़ी बेरहमी से कुचल डालता है !
    ek nirmam sachchayee ko aap sunderta ke sath....samne laa din.

    ReplyDelete
  7. एक निर्बल निर्धन ही तो है,
    जो रिश्तों को पानी देता है।
    bahut achcha likhi hain aap....ek
    kathor sachchayee ko lekar.

    ReplyDelete
  8. अर्थ की अर्थवत्ता!
    अर्थ की ही सत्ता!!
    बिना अर्थ अनर्थ है।
    सब अर्थ से वाबस्त्ता॥

    अर्थ ने किसी भी युग में महत्व नहीं है खोया।
    संतोष का भार तो बस किताबों ने ही ढोया॥

    ReplyDelete
  9. अर्थ युग में रिश्ते अनर्थ हो गए है और हम अर्थहीन .

    ReplyDelete
  10. रिश्ते खंडित होते देखे
    जब अर्थ बीच में आता है।
    इस पैसे की खातिर ही तो
    अपना अपनों को खोता है।
    वाह ... !

    ReplyDelete
  11. रिश्ते खंडित होते देखे
    जब अर्थ बीच में आता है।
    इस पैसे की खातिर ही तो
    अपना अपनों को खोता है।

    अपनों के प्यार की आस लिए,
    कितने चिरनिद्रा में सोते हैं।
    क्योंकि पैसे वाले तो अब
    दायित्वों को भी पैसे से ही ढोते है.

    bahut sachchee kavitaa ,,,lekin
    आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं , इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है.
    jab tak aise log sansaar men hain mujhe lagta hai ki chinta ki baat naheen ,keval correction ki aavashyakta hai .

    ReplyDelete
  12. ek dam sahi baat kahi aapne!
    padhna achha laga!

    ReplyDelete
  13. दूर देस में बहुत दूर
    सुंदर घर था
    पैसा था, पैसे से आई चीजें थीं
    थे जीवन के सारे उजियारे सरंजाम
    खाली घर में
    कोई खुद से
    खुद-बुद खुद-बुद बोल रहा था
    चीख रही थी तन्हाईया ....(अंजु...(अनु )

    ReplyDelete
  14. रिश्ते खंडित होते देखे
    जब अर्थ बीच में आता है।
    इस पैसे की खातिर ही तो
    अपना अपनों को खोता है।
    katu satya...

    ReplyDelete
  15. रश्मि जी,
    ’अर्थ’ का अर्थ स्थिति पर निर्भर करता है, कि हम खुद कहां हैं?
    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति रही.

    ReplyDelete
  16. अर्थ से संचालित इस संसार में निस्वार्थ कार्य का अनर्थ होते देर नहीं लगती ...

    ReplyDelete
  17. ……और कहीं "अर्थ" का गलत अर्थ ले लिया जाय या गलत उपयोग किया जाय तो "अनर्थ" भी हो जाता है……"अर्थ" के अर्थ का गूढ़ चिंतन……सुंदर।

    ReplyDelete
  18. रिश्ते बेमानी हो जाते हैं,
    जब अर्थ पास नहीं होता है।

    bahut sahi bat kahi hai aapne ye...arth ka arth hi kaha raha hai ab...

    ReplyDelete
  19. म एडम्स KEVIN, Aiico बीमा plc को एक प्रतिनिधि, हामी भरोसा र एक ऋण बाहिर दिन मा व्यक्तिगत मतभेद आदर। हामी ऋण चासो दर को 2% प्रदान गर्नेछ। तपाईं यस व्यवसाय मा चासो हो भने अब आफ्नो ऋण कागजातहरू ठीक जारी हस्तांतरण ई-मेल (adams.credi@gmail.com) गरेर हामीलाई सम्पर्क। Plc.you पनि इमेल गरेर हामीलाई सम्पर्क गर्न सक्नुहुन्छ तपाईं aiico बीमा गर्न धेरै स्वागत छ भने व्यापार वा स्कूल स्थापित गर्न एक ऋण आवश्यकता हो (aiicco_insuranceplc@yahoo.com) हामी सन्तुलन स्थानान्तरण अनुरोध गर्न सक्छौं पहिलो हप्ता।

    व्यक्तिगत व्यवसायका लागि ऋण चाहिन्छ? तपाईं आफ्नो इमेल संपर्क भने उपरोक्त तुरुन्तै आफ्नो ऋण स्थानान्तरण प्रक्रिया गर्न
    ठीक।

    ReplyDelete

 
Top