पैसा !
इक्षाओं का विस्तार है ,
भावनाओं पर ग्रहण है ,
रिश्तों को बड़ी बेरहमी से कुचल डालता है !
इक्षाओं का विस्तार है ,
भावनाओं पर ग्रहण है ,
रिश्तों को बड़ी बेरहमी से कुचल डालता है !
रश्मि प्रभा
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अर्थ!
रिश्तों के बदले अर्थों में
अब कौन किसी का होता है।
रिश्ते बेमानी हो जाते हैं,
जब अर्थ पास नहीं होता है।
रिश्ते खंडित होते देखे
जब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।
एक निर्बल निर्धन ही तो है,
जो रिश्तों को पानी देता है।
वरना पैसे वालों का तो अब
पैसा ही सब कुछ होता है।
अपनों के प्यार की आस लिए,
कितने चिरनिद्रा में सोते हैं।
क्योंकि पैसे वाले तो अब
दायित्वों को भी पैसे से ही ढोते है.
रेखा श्रीवास्तव
कानपुर,
मैं आई आई टी , कानपूर में मशीन अनुवाद प्रोजेक्ट में कार्य कर रही हूँ. इस दिशा में हिंदी के लिए किये जा रहे प्रयासों से वर्षों से जुड़ी हूँ. लेखन मेरा सबसे प्रिय और पुरानी आदत है. आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं , इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है. गलत को सही दिशा का भान कराना मेरी मजबूरी है , वह बात और है कि मानने वाला उसको माने या न माने. सच को लिखने में कलम संकोच नहीं करती.
अर्थ बिना सब सून।
ReplyDeleteरिश्ते खंडित होते देखे
ReplyDeleteजब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।
जिंदगी का सार है ये रचना .....
अपनों के प्यार की आस लिए,
ReplyDeleteकितने चिरनिद्रा में सोते हैं।
क्योंकि पैसे वाले तो अब
दायित्वों को भी पैसे से ही ढोते है.
पैसे ने आज की दुनिया को किस कदर स्वार्थी बना दिया है। रेखा जी की रचना बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।
रिश्ते खंडित होते देखे
ReplyDeleteजब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।
वाह ... अर्थ को विस्तारित करती यह अभिव्यक्ति
लाजवाब है ... आपका बहुत - बहुत आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
पैसे ने ज़िन्दगी के अर्थ ही बदल दिये हैं…………शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसच कहा रेखाजी.
ReplyDelete"रिश्ते खंडित होते देखे
जब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।"
आज के अर्थ-युग का सार लिख दिया आपने.बचपन में जब गाँव जाता था तो रिश्तों की भरमार पाता था,लेकिन आज तो वहां भी सब स्वयं में सिमटे से लगाते हैं.मन को छूती रचना.
रिश्तों को बड़ी बेरहमी से कुचल डालता है !
ReplyDeleteek nirmam sachchayee ko aap sunderta ke sath....samne laa din.
एक निर्बल निर्धन ही तो है,
ReplyDeleteजो रिश्तों को पानी देता है।
bahut achcha likhi hain aap....ek
kathor sachchayee ko lekar.
अर्थ की अर्थवत्ता!
ReplyDeleteअर्थ की ही सत्ता!!
बिना अर्थ अनर्थ है।
सब अर्थ से वाबस्त्ता॥
अर्थ ने किसी भी युग में महत्व नहीं है खोया।
संतोष का भार तो बस किताबों ने ही ढोया॥
katu satya bayan karti rachna ...!!
ReplyDeletekatu satya bayan karti rachna ...!!
ReplyDeleteअर्थ युग में रिश्ते अनर्थ हो गए है और हम अर्थहीन .
ReplyDeleteरिश्ते खंडित होते देखे
ReplyDeleteजब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।
वाह ... !
रिश्ते खंडित होते देखे
ReplyDeleteजब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।
अपनों के प्यार की आस लिए,
कितने चिरनिद्रा में सोते हैं।
क्योंकि पैसे वाले तो अब
दायित्वों को भी पैसे से ही ढोते है.
bahut sachchee kavitaa ,,,lekin
आदर्श और सिद्धांत मुझे सबसे मूल्यवान लगते हैं , इनके साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है.
jab tak aise log sansaar men hain mujhe lagta hai ki chinta ki baat naheen ,keval correction ki aavashyakta hai .
ek dam sahi baat kahi aapne!
ReplyDeletepadhna achha laga!
दूर देस में बहुत दूर
ReplyDeleteसुंदर घर था
पैसा था, पैसे से आई चीजें थीं
थे जीवन के सारे उजियारे सरंजाम
खाली घर में
कोई खुद से
खुद-बुद खुद-बुद बोल रहा था
चीख रही थी तन्हाईया ....(अंजु...(अनु )
रिश्ते खंडित होते देखे
ReplyDeleteजब अर्थ बीच में आता है।
इस पैसे की खातिर ही तो
अपना अपनों को खोता है।
katu satya...
रश्मि जी,
ReplyDelete’अर्थ’ का अर्थ स्थिति पर निर्भर करता है, कि हम खुद कहां हैं?
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति रही.
अर्थ से संचालित इस संसार में निस्वार्थ कार्य का अनर्थ होते देर नहीं लगती ...
ReplyDelete……और कहीं "अर्थ" का गलत अर्थ ले लिया जाय या गलत उपयोग किया जाय तो "अनर्थ" भी हो जाता है……"अर्थ" के अर्थ का गूढ़ चिंतन……सुंदर।
ReplyDeleteरिश्ते बेमानी हो जाते हैं,
ReplyDeleteजब अर्थ पास नहीं होता है।
bahut sahi bat kahi hai aapne ye...arth ka arth hi kaha raha hai ab...
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