
बन्द मुट्ठी में कई अल्फाज़ होते हैं
वक़्त आने पे वे आगाज़ होते हैं ...
रश्मि प्रभा
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इतना चुप रहने की आदत कैसी,
ये तब्बसुम से अदावत कैसी.
ये तो दुनिया है कहेगी कुछ भी,
इसमें इतनी बड़ी आफत कैसी.
जो पिघल जाए इक चिंगारी में,
कैसा वो प्यार,....मुहब्बत कैसी.
मेरी पेशानी को छू कर देखो,
प्यार से पूछो, तबीयत कैसी.
कोई ऊँगली न उठ सकी देखो,
बंद मुट्ठी में ये ताकत कैसी.
फैसला घर से लिख के लाता है,
कैसा मुंसिफ है, अदालत कैसी.
आइना तक भी तुमसे पूछता है,
हुई ये आपकी हालत कैसी.
तुम मेरे साथ रह के दूर रहो,
ये कैसा वस्ल, ये कुर्बत कैसी.
उम्र जिस मोड़ पे ला आई है,
अब कहाँ चैन अब फुर्सत कैसी.
ये तब्बसुम से अदावत कैसी.
ये तो दुनिया है कहेगी कुछ भी,
इसमें इतनी बड़ी आफत कैसी.
जो पिघल जाए इक चिंगारी में,
कैसा वो प्यार,....मुहब्बत कैसी.
मेरी पेशानी को छू कर देखो,
प्यार से पूछो, तबीयत कैसी.
कोई ऊँगली न उठ सकी देखो,
बंद मुट्ठी में ये ताकत कैसी.
फैसला घर से लिख के लाता है,
कैसा मुंसिफ है, अदालत कैसी.
आइना तक भी तुमसे पूछता है,
हुई ये आपकी हालत कैसी.
तुम मेरे साथ रह के दूर रहो,
ये कैसा वस्ल, ये कुर्बत कैसी.
उम्र जिस मोड़ पे ला आई है,
अब कहाँ चैन अब फुर्सत कैसी.
अखिलेश यादव
निवास : कोटा, राजस्थान
पेशा : व्यवसाय
शिक्षा : वाणिज्य एवं पत्रकारिता में स्नातक
साहित्य में रुझान, विशेष तौर पर कविता और ग़ज़ल...टूटा फूटा कुछ लिखना और उसे ग़ज़ल मान बैठना..
Blog Link : www.akhilesh-akhil.blogspot.com
कोई ऊँगली न उठ सकी देखो,
ReplyDeleteबंद मुट्ठी में ये ताकत कैसी.
फैसला घर से लिख के लाता है,
कैसा मुंसिफ है, अदालत कैसी.
वाह ....बहुत खूब, बेहतरीन प्रस्तुति ।
वाह बेहद उम्दा गज़ल ………… हर शेर शानदार्।
ReplyDeleteफैसला घर से लिख कर लाता है ..
ReplyDeleteकैसा मुंसिफ है , अदालत कैसी !
बंद मुट्ठी की ताकत कैसी ...
सुन्दर प्रस्तुति !
जो पिघल जाए इक चिंगारी में,
ReplyDeleteकैसा वो प्यार,....मुहब्बत कैसी.
मेरी पेशानी को छू कर देखो,
प्यार से पूछो, तबीयत कैसी.
फैसला घर से लिख के लाता है,
कैसा मुंसिफ है, अदालत कैसी.
तुम मेरे साथ रह के दूर रहो,
ये कैसा वस्ल, ये कुर्बत कैसी.
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है ... हरेक शेर पढकर मुंह से बस वाह निकल आता है ...
कोई ऊँगली न उठ सकी देखो,
ReplyDeleteबंद मुट्ठी में ये ताकत कैसी.
फैसला घर से लिख के लाता है,
कैसा मुंसिफ है, अदालत कैसी.
बहुत खूब!हरेक शेर लाज़वाब..
आदरणीय रश्मि दी,
ReplyDeleteआपने मुझे इस वट वृक्ष की छाया में स्थान दिया इसके लिए अंतर्मन से आपका आभारी हूँ, और सभी पाठकों का भी बहुत बहुत आभार..!!
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (09.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
अखिलेश यादव जी की खूबसूरत ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार !
ReplyDeletekripya meri bhi kavita padhe.. www.pradip13m.blogspot.com
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ReplyDeletesunder rachna..
ReplyDeleteफैसला घर से लिख के लाता है,
ReplyDeleteकैसा मुंसिफ है, अदालत कैसी.
sabse badhiya laga ye andaaj-e bayaan aapka .
kabile tareef.....
ReplyDeleteकोई ऊँगली न उठ सकी देखो,
ReplyDeleteबंद मुट्ठी में ये ताकत कैसी.
एक एक शेर में गहरी बात छिपी हुई है -
सार्थक लेखन के लिए बधाई
aap sabhi sammanniy pathakon ka hraday se abhaar..
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