ज़िन्दगी ही क़र्ज़ है
सबको ही चुकाना है
जब तक है साँसें
चुकाते ही जाना है


रश्मि प्रभा





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देखिए जी, कब चुकेगा

देखिए जी, कब चुकेगा ?
कर्ज थोड़ा इधर भी है,
कर्ज थोड़ा उधर भी है।

चुकाना है किसे कितना
पूर्णतः अस्पष्ट है,
किंतु पूरा मिले भी,
इस बात का भी कष्ट है।
कभी लगता, मूल से
ज्यादा यहाँ तो ब्याज है,
कभी लगता ब्याज सच है,
मूल में कुछ राज है।
कभी लगता करोड़ों से
भी नहीं चुक पाएगा,
कभी लगता किसी के भी
हाथ कुछ ना आएगा।

देखिए जी, कब दिखेगा ?
हर्ज थोड़ा इधर भी है,
हर्ज थोड़ा उधर भी है।

कभी लगता खोजने के
नाम पर खुद खो गए,
कभी लगता जगाने के
नाम पर खुद सो गए।
कभी लगता मुक्त हैं हम,
कभी लगता फँस रहे।
कभी लगता स्वयं को ही
लूटकर हम हँस रहे।
कभी लगता जीत से भी
प्रीतिकर यह हार है,
कभी लगता हारकर तो
जिंदगी यह भार है।

देखिए जी, कब मिटेगा ?
मर्ज थोड़ा इधर भी है,
मर्ज थोड़ा उधर भी है।

कभी लगता-एक दूजे
के लिए सब छोड़ दें,
कभी लगता कंटकों-सी
वर्जनायें तोड़ दें।
कभी लगता अलग करते
रास्तों को मोड़ दें,
कभी लगता अलग होती
मंजिलों को जोड़ दें।
कभी लगता आत्मघाती
बन न हम, सब कुछ सहें,
कभी लगता कह चुके हैं-
बहुत कुछ, अब चुप रहें।
देखिए कैसे निभेगा ?
फर्ज थोड़ा इधर भी है
फर्ज थोड़ा उधर भी है।

देखिए जी, कब चुकेगा ?
कर्ज थोड़ा इधर भी है,
कर्ज थोड़ा उधर भी है।


कवि परिचय

डॉ. नागेश पांडेय "संजय
http://abhinavanugrah.blogspot.com/
मूलत : बाल साहित्यकार , बड़ों के लिए भी गीत एवं कविताओं का सृजन ; जन्म: ०२ जुलाई १९७४ ; खुटार ,शाहजहांपुर , उत्तर प्रदेश . माता: श्रीमती निर्मला पांडेय , पिता : श्री बाबूराम पांडेय ; शिक्षा : एम्. ए. {हिंदी, संस्कृत }, एम्. काम. एम्. एड. , पी. एच. डी. [विषय : बाल साहित्य के समीक्षा सिद्धांत }, स्लेट [ हिंदी, शिक्षा शास्त्र ] ; सम्प्रति : प्राध्यापक एवं विभागाद्यक्ष , बी. एड. राजेंद्र प्रसाद पी. जी. कालेज , मीरगंज, बरेली . १९८६ से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय , . प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में गीत एवं कविताओं के अतिरिक्त बच्चों के लिए कहानी , कविता , एकांकी , पहेलियाँ और यात्रावृत्त प्रकाशित .बाल रचनाओं के अंग्रेजी, पंजाबी , गुजराती , सिंधी , मराठी , नेपाली , कन्नड़ , उर्दू , उड़िया आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद . अनेक रचनाएँ दूरदर्शन तथा आकाशवाणी के नई दिल्ली , लखनऊ , रामपुर केन्द्रों से प्रसारित .
प्रकाशित पुस्तकें
आलोचना ग्रन्थ : बाल साहित्य के प्रतिमान ;
कविता संग्रह : तुम्हारे लिए ;
बाल कहानी संग्रह : १. नेहा ने माफ़ी मांगी २. आधुनिक बाल कहानियां ३. अमरुद खट्टे हैं ४. मोती झरे टप- टप ५. अपमान का बदला ६. भाग गए चूहे ७. दीदी का निर्णय ८. मुझे कुछ नहीं चहिये ९. यस सर नो सर ;
बाल कविता संग्रह : १. चल मेरे घोड़े २. अपलम चपलम ;
बाल एकांकी संग्रह : छोटे मास्टर जी
सम्पादित संकलन : १. न्यारे गीत हमारे २. किशोरों की श्रेष्ठ कहानियां ३. बालिकाओं की श्रेष्ठ कहानियां

19 comments:

  1. ऐसे क़र्ज़ कभी नहीं चुकाए जाते ...

    शुभकामनाये

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  2. कुछ कर्ज़ उम्र भर नही चुकते।

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  3. वाह ... बहुत खूब ...इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  4. मेरी रचना को आपने इतना अधिक महत्व दिया . किन शब्दों में आपका आभार कहूँ . सदा ऋणी रहना चाहूँगा . धन्यवाद. कविता जी , वंदना जी और सदा जी को भी हार्दिक आभार .

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  5. कभी लगता-एक दूजे
    के लिए सब छोड़ दें,
    कभी लगता कंटकों-सी
    वर्जनायें तोड़ दें।
    कभी लगता अलग करते
    रास्तों को मोड़ दें,

    बहुत गहन सोच ...यह तो ज़िंदगी भर रहने वाला क़र्ज़ है ..बढ़ेगा चुकेगा नहीं ...अच्छी प्रस्तुति

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  6. पानी की तरह कर्ज भी रंगहीन,रूपहीन और तरल लगता है.जैसा रंग डालो वैसा ही दिखता है,जिस बर्तन में डालो वही रूप ले लेता है.जैसे पानी से अलग होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है वैसे ही कर्ज से भी मुक्त होना असंभव है.आपकी रचना में ये सारी बातें संश्लिष्ट है.आपकी रचना में कर्ज का विस्तार सुंदर है.बधाई.

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  7. नागेश जी ने कविता में जीवन की अकुलाहट को बखूबी उकेरा है !
    आभार !

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  8. ज़िन्दगी ही क़र्ज़ है
    सबको ही चुकाना है
    जब तक है साँसें
    चुकाते ही जाना है
    ye char linen gazab ki hain ...uspar panday jee ki kavita...behad khoobsurat lagi.

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  9. धन्यवाद . संगीता जी , राजीव जी , ज्ञानचंद्र जी , मृदुला जी , एम्. सिंह जी : सभी की उत्प्रेरक टिप्पणियों के लिए ...........कर्जदार हूँ मैं . आभारी भी .


    http://abhinavanugrah.blogspot.com/

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  10. नगेन्द्र जी की रचना अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  11. bhut gahraai hai apki rachna me.. har sabd khud me ek suchaai hai...

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  12. कर्ज चुक भी जाए तो भी कर्ज ही रहता है। भले ही नाम के लिए हो।

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  13. देखिए जी, कब चुकेगा ?
    कर्ज थोड़ा इधर भी है,
    कर्ज थोड़ा उधर भी है।

    बहुत बढ़िया,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  14. कर्ज कब चुकेगा ...
    यह कर्ज यूँ चुकने वाला कहाँ है ...
    कविता में दार्शनिक भाव ने आकर्षित किया !

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  15. Thanks for sharing this wonderful creation with us.

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  16. इस जिन्दगी का उधार .. ना चुका है और ना चुकेगा कभी

    बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

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  17. चुकाना है किसे कितना
    पूर्णतः अस्पष्ट है,

    ye bat sahi kahi aapne....

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