उदासी कैसी ?
ख्यालों की किरचें जीने का सबब बनती हैं
जितना गहरा घाव होता है उतनी ही शिद्दत से सुबह होती है ....
गज़ल
हर लम्हा टूटती हुई मुफलिस की आस हो.
क्या सानेहा हुआ है कि इतने उदास हो.
सच-सच कहो कि ख्वाब में डर तो नहीं गए
आंखें बुझी-बुझी सी हैं कुछ बदहवास हो.
सीने में ख्वाहिशों का समंदर है मौजज़न
तुम फिर भी रेगजारे-तमन्ना की प्यास हो.
बाहर चलो के लज्ज़तें बिखरी हैं चार-सू
मौसम तो खुशगवार है तुम क्यों उदास हो.
वो दिन गए कि तुमसे मुनव्वर थे मैक़दे
अब तुम सियाह वक़्त का खाली गिलास हो.
जिस पैरहन में आबरू रक्खी थी चाक है
यानी हिसारे-वक़्त में तुम बेलिबास हो.
गौतम ग़मों की धूप से कोई गिला न कर
शायद ख़ुशी के बाब का ये इक्तेबास हो.
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सम्प्रति-सम्पादकीय प्रभारी,7 डेज वीकली, रांची
1977-78 के दौरान ग़ज़लें कहनी शुरू की. हिंदी-उर्दू की पत्र-पत्रिकाओं में कई ग़ज़लें छपीं.1984
-85 के दौरान पत्रकारिता के क्षेत्र में उतरा. कई दैनिक, साप्ताहिक और पाक्षिक पत्रों के
सम्पादकीय विभाग में रहा. इस चक्कर में शेरो-शायरी की दुनिया से कुछ कट सा गया. ग़ज़लें
होती थीं तो डायरी में पड़ी रहती थीं.1910 में ब्लॉग और फेसबुक
डायरी से ग़ज़लें बाहर निकलने लगीं. अब तक 150 से ज्यादा ग़ज़लें हो चुकीं है. लेकिन कोई
संकलन प्रकाशित नहीं.
बहुत सुंदर गजल
ReplyDeleteहर लम्हा टूटती हुई मुफलिस की आस हो.
ReplyDeleteक्या सानेहा हुआ है कि इतने उदास हो ।
बहुत खूब कहा है ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
बहुत सुंदर गजल ।
ReplyDeleteआत्मविश्वास भरती शानदार गज़ल!!
ReplyDeleteप्रस्तुति का आभार!!
bahtareen ghazal....
ReplyDeletebadhai sweekaren.
ख्यालों की किरचें जीने का सबब बनती हैं
ReplyDeleteजितना गहरा घाव होता है उतनी ही शिद्दत से सुबह होती है ....
रश्मि जी -आपकी पंक्तियाँ भी सुकून दे रही हैं ......
बहुत सुंदर शब्द .
बेहतरीन ग़ज़ल है ... !
ReplyDeletebahut sunder ghazal..
ReplyDeleteगौतम ! आपकी ज़बांदानी के हम हुए कायल
ReplyDeleteआप बुलंद हो इतने कि हमारे आस पास हो
bhut hi khubsurat gazal....
ReplyDeleteimpressive thought...
ReplyDeleteगौतम ग़मों की धूप से कोई गिला न कर
ReplyDeleteशायद ख़ुशी के बाब का ये इक्तेबास हो.
bahut khoobasoorat aur lafz iqtebas ka umda istemal
rashmi ji ap ke to ham pahale hi qayal hain
इक अजब सा सुकून मिल रहा है इसे महसूस करने में ..इतना गहरा समझता है कोई कहाँ ...
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