और मैं जीता रहा..
और मैं जीता रहा..
हर हाल में चलना है ये सोचकर चलते रहे
ज़िन्दगी तेरे संग एक ख्वाब देखते रहे ....
पाँव के छाले हौसले बनते गए दर्द मरते गए
और हम जीते गए ......
रश्मि प्रभा
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और मैं जीता रहा..
जाम दर जाम मुश्किलें चाव से पीता रहा
कश लगाये हौसलों के और मैं जीता रहा
प्याला मेरी प्यास का चाहे न भरा कभी ...
बूंद बूंद तरसा किया.. और मैं जीता रहा...
उनसा सर न झुकाया.. तो कहा, "मरूँगा मैं"...
मगर वो मरते गए...और मैं जीता रहा....
बढ़ा.. तो गिरा.. फिर संभला फिर बढ़ पड़ा ...
इस तरह मंजिले मिली.. और मैं जीता रहा
बारेमुश्किले जो कभी नामुमकिन ये सफ़र लगा
कदम कदम बढ़ता रहा .. और मैं जीता रहा....
साँसे धडकनों नब्जो को वो जिंदगी कह लेते हैं...
मैं जीने की खातिर मारा... और मैं जीता रहा...
हालात कभी.. तो.. कभी खुद को ही बदल लिया....
"आलोक " झुका कभी.. तना कभी... और मैं जीता रहा...
आलोक मेहता http://deewan-e-alok.blogspot.com/
आयु - 28 वर्ष
स्थान - नैशविला रोड, देहरादून, उत्तराखंड व्यवसाय - Chartered Accountant मैं शौकिया लिखा करता हूँ.. न मैं लेखक हूँ और न कोई शायर.. बस जो महसूस करता हूँ. मन में जो भाव आते हैं कागज़ के पन्नो पे उतार देता हूँ.. यह लिखना मुझे खुद से मिलने का मौका देता हैं.. मुझे इस भागादौड़ी की जिंदगी में बचाए रखता हैं... सहेज रखता हैं...
बहुत सुन्दर रचना है आलोक जी की,
ReplyDeleteरश्मि जी यू-ट्यूब पर आपका गीत 'इंतज़ार' भी सुना, बहुत ही बेहतरीन है
आप इस ब्लॉग पर दूसरे लेखकों के लेख को प्रकाशित करके उनको पहचान दिलाने का बेहतरीन कार्य कर रहीं हैं|
पर जैसा कि आपने इस लेख में आलोक मेहता जी की पोस्ट का लिंक दिया है, उस पर क्लिक करने पर पाठक आपके ब्लॉग से हट जाता है| आप मेरा यह वीडियो देखें मैंने इस में इस समस्या का समाधान बताया है
एक ऐसा लिंक जो आपके ब्लॉग पर पाठक को बनाये रखेगा
"जाम दर जाम मुश्किलें चाव से पीता रहा
ReplyDeleteकश लगाये हौसलों के और मैं जीता रहा"
आलोक जी यही जज्बा जिंदगी को जीने का हौसला देता है और बढ़ने को प्रेरित भी करता है.गजल के माध्यम से सुंदर सन्देश.
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteसाँसे धडकनों नब्जो को वो जिंदगी कह लेते हैं...
ReplyDeleteमैं जीने की खातिर मारा... और मैं जीता रहा...
वाह ... बहुत खूब ।
सुंदर रचना
ReplyDeleteजाम दर जाम मुश्किलें चाव से पीता रहा
ReplyDeleteकश लगाये हौसलों के और मैं जीता रहा
बहुत ही सुन्दर रचना !
बहुत खूबसूरत
ReplyDeletebehad khubsurat, zindgi se kareeb lagi yeh to...!
ReplyDeleteज़िन्दगी जीने के जज़्बे का बहुत सुन्दर चित्रण किया है।
ReplyDeletebhai bahut sunder rachna hai...
ReplyDeletebahut achchi :)
ReplyDeletesach ke behud qareeb :)
bahut sundar rachna....
ReplyDeleteAap sabhi ka behad shukriya.. jo aapne rachna k baare mein itne sundar shabd kahe..
ReplyDeleteAabhaar sweekar kare..
aalok ji aap aur aapki rachna do no hi shaja hai aur sundar hain.
ReplyDeleteसाँसे धडकनों नब्जो को वो जिंदगी कह लेते हैं...
ReplyDeleteमैं जीने की खातिर मारा... और मैं जीता रहा...sayad yahi jindgi hai...
bahut khub aalok ji.....bahut acchi prastuti
ReplyDelete'और मै जीता रहा' एक शानदार प्रस्तुति .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए .
उनसा सर न झुकाया.. तो कहा, "मरूँगा मैं"...
ReplyDeleteमगर वो मरते गए...और मैं जीता रहा....
गिरते संभालना , कभी तनना, कभी झुकना ...यह संतुलन ही तो जीवन को बचाए रखता है ...
सुन्दर रचना !
sundar rachna.......
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...''कभी झुका...कभी तना..और मैं जीता रहा''
ReplyDeleteहर हाल में चलना है ये सोचकर चलते रहे
ReplyDeleteज़िन्दगी तेरे संग एक ख्वाब देखते रहे ....
पाँव के छाले हौसले बनते गए दर्द मरते गए
उनसा सर न झुकाया.. तो कहा, "मरूँगा मैं"...
मगर वो मरते गए...और मैं जीता रहा....
bahut achche bat kahi hai...
Sabhi ka behad shukriya.. :)
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