शाम का धुंधलका

यादों का धुंआ
उदासी पसरी है
पर ख्याल है तुम्हारा
मेरी उदासी तुम्हें अच्छी नहीं लगती
....
यह सुकून इस शाम में कुछ कम नहीं !



रश्मि प्रभा






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काली कॉफी में उतरती साँझ


थके कदमो से...
घर के अंदर घुसते ही
बत्ती जलाने का भी मन नहीं हुआ

खिड़की के बाहर उदास शाम,
फ़ैल कर पसर गयी है
मुस्कुराने का नाटक करने की ज़रूरत नहीं आज
जी भर कर जी लूं, अपनी उदासी को
कब मिलता है ज़िन्दगी में ऐसा मौका!
अपने मन को जिया जा सके
मनमुताबिक!

मोबाइल .... उफ़्फ़!!!
उदासी को जीने के मुश्किल से मिले ये पल
....कहीं छीन ना लें!!
साइलेंट पर रख दूं
लैंडलाइन का रिसीवर भी उतार ही दूं ..
ब्लैक कॉफी के साथ ये उदासी ....
एन्जॉय करूं ... इस शाम को...!

सारे कॉम्बिनेशन सही हैं
धूसर सी साँझ ...
अँधेरा कमरा ...
ये उदास मन
..... और काली कॉफी!!

शाम के उजास को अँधेरे का दैत्य
लीलने लगा है
आकाश की लालिमा, समाती जा रही है उसके पेट में
दैत्य ने खिड़की के नीचे झपट्टा मार
थोड़ी सी बची उजास भी हड़प ली
छुप गए उजाले नाराज़ होकर

घुप्प अँधेरा फैलते ही
तारों की टिमटिमाहट
से सज गई
महफ़िल आकाश की
जग-मग करने लगें हैं, जो
क्या ये तारे
हमेशा ही इतनी ख़ुशी से चमकते रहते हैं?
या कभी उदास भी होते हैं!!
मेरी तरह!!

इन्हीं तारों में से एक तुम भी तो हो
पर ...
मुझे उदास देख
क्या कभी खुश हो सकते थे तुम?


पढने का शौक तो बचपन से ही था। कॉलेज तक का सफ़र तय करते करते लिखने का शौक भी हो गया. 'धर्मयुग',' साप्ताहिक हिन्दुस्तान', 'मनोरमा ' वगैरह में रचनाएँ छपने भी लगीं .पर जल्द ही घर गृहस्थी में उलझ गयी और लिखना,पेंटिंग करना सब 'स्वान्तः सुखाय' ही रह गया . जिम्मेवारियों से थोडी राहत मिली तो फिर से लेखन की दुनिया में लौटने की ख्वाहिश जगी.मुंबई आकाशवाणी से कहानियां और वार्ताएं प्रसारित होती हैं..यही कहूँगी "मंजिल मिले ना मिले , ये ग़म नहीं मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है"

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मुंबई , महाराष्ट्र , इंडिया

18 comments:

  1. यादों का धुंआ
    उदासी पसरी है
    पर ख्याल है तुम्हारा
    मेरी उदासी तुम्हें अच्छी नहीं लगती
    .....................
    इन्हीं तारों में से एक तुम भी तो हो
    पर ...
    मुझे उदास देख
    क्या कभी खुश हो सकते थे तुम?

    भावमय करते शब्‍द ... बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  2. भावपूर्ण पोस्ट बधाई मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
    आशा

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  3. बहुत सुन्दर और भावमयी रचना।

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  4. वास्तविकता पर बहुत सुंदर भावनात्मक रचना...

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  5. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  6. इन्हीं तारों में से एक तुम भी तो हो
    पर ...
    मुझे उदास देख
    क्या कभी खुश हो सकते थे तुम?..behad khubsurat rachna...

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  7. बहुत सुन्दर और भावमयी रचना।

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  8. भावपूर्ण रचना....बहुत सुन्दर.

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  9. ब्लैक कॉफी के साथ ये उदासी ....
    एन्जॉय करूं ... इस शाम को...!
    --- आधुनिक कविता का रूप ....दो भाषाएँ हमजोली सी....भाव और भी खूबसूरत लगते हैं...

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  10. आप सबको कविता ,पसंद आई...बहुत बहुत शुक्रिया

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  11. मोबाइल .... उफ़्फ़!!!
    उदासी को जीने के मुश्किल से मिले ये पल
    ....कहीं छीन ना लें!!
    साइलेंट पर रख दूं
    लैंडलाइन का रिसीवर भी उतार ही दूं ..
    सचमुच, ये मोबाइल इच्छा होने पर भी अकेला होने ही नहीं देता. बहुत सुन्दर कविता है, किसी उदास शाम में लिखी गयी, भावुक रचना.

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  12. हुत सुन्दर और भावमयी रचना।

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  13. bahut achhi h.....
    ye 'parikalpna samman' kya h?

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  14. ब्लैक कोफी और उदासी...किसका रंग ज्यादा गहरा?...एक पहेली ही तो है!...अंतर को छू जाने वाली रचना!

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