दिशाओं ने पुकारा था
आत्मा ने झकझोरा था
इंसानियत ने कंधे पे आंसू बहाए थे
तुम जाने किस धुन में रहे
सुबह से जाने कितनी शाम हुई
सारे दृश्य बदल गए
हतप्रभ ! अब ये कैसी सोच ?
आज क्यूँ सोच रहे ?
आज क्यूँ सोच रहे
कि....
सूरज की रोशनी
हुई मद्धम
आज हो गई
किरणे मैली सी
हुई चांदनी भी धूमिल सी
प्रलय करने लगी
समुन्द्र की लहरे
आज क्यूँ सोच रहे
कि........
मानवता मर गई
हर आँख सुनी हो गई
रूठ चुके सपने
बिन मौसम बरस
रहा आकाश
बदल रहा हर रिश्ता
क्या है अब जीने का
ये ही अंदाज़ ?
आज क्यूँ सोच रहे हो
कि........
आज है उल्टा ज़माना
नहीं आएगा वो घर
जो सुबह का था भूला
अब खो गया है
इन तडकीली ,भड़कीली
रातो की रंगीनियों में
आज क्यूँ सोच रहे हो
कि........
टूट चुकी है सब मर्यादाएं ....||
अब क्या होगा इस सोच से ?
दुनिया की इस भीड़ मे मै भी अकली सी खुद को तलाशती सी .. पर नहीं मिला कोई भी ऐसा सा जो कहें मुझे आके कोई है तू यु तन्हा ........ रिश्तो की इस भीड़ मे.. मै...मै को तलाशती सी .अंजु चौधरी......(अनु.).......
यह कविता हमे सचेत करती है कि हम अब संभल जांय वरना कल यही कह कर पछताना पड़ेगा...
ReplyDeleteटूट चुकी है सब मर्यादाएं ....||
अब क्या होगा इस सोच से ?
सार्थक प्रस्तुतिकरण!!
ReplyDeleteआज इसिलिये सोच रहे हैं ताकि हमारा कल सुरक्षित रहे।
"आज क्यूँ सोच रहे
ReplyDeleteकि...."
जब अपना किया धरा ही कुछ अजीब और अनजाना सा लगे तो ऐसा ही होता है.सारी समस्या की जड़ ही यही है करते पहले हैं सोचते बाद में है.ऐसे में सुधार की संभावनाएं क्षीण हो जाती है.बहुत सुंदर और मन को छू लेनेवाली रचना है.
धन्यवाद रश्मि जी -
ReplyDeleteवटवृक्ष पर इसे चयन करने के लिए .....
सुंदर अभिव्यक्ति ....दिखलाती है वो राह ....
कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाये .....
झिलमिलाती रौशनी में-
कहीं भटक न जाये ....
और रैना संवर जाये .....!!
अंजू जी आपको
इस लेखन के लिए ...!!
behtreen prastutikaran
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसोच तो रहेगी जारी……… मानवीय प्रवृत्ति बन जाती है बाद मे सोचने की आवेग मे आक्रोश मे या फिर जोश मे कर बैठता है वह सब कुछ जो निहायत गैर ज़रूरी है, दानवीय है कर गुज़रने के बाद यदि मानव सोचेगा नही आज कैसे आयेगा अपनी ऊल जुलूल हरकतों से बाज सचेत हों, सतर्क हो, ……सोच तो रहेगी जारी। वैसे अंजूजी की रचना बहुत पसंद आयी……अपने मन की प्रतिक्रिया लिख बैठा……।
ReplyDeletesochna to parega...kyonki yahi sochne wale dimag ke karan ham manavjati pure bhrahamnd me alag hain...:)
ReplyDeleteek sudridh rachna
badhai anju jee:)
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteaaj kyon soch rahe bahut achchha prashn hai ye itana sab gujar jane ke bad...par soch jari hai...
ReplyDeleteटूट चुकी है सब मर्यादाएं ....||
ReplyDeleteअब क्या होगा इस सोच से ?such me aaj kyu soch rahe hai..sayad isliye ki abhi bhi waqt hai samahal le khud ko...sab kuch khtm ho jane se pahle...
इस प्रश्न का जवाब तो यही हो सकता है कि हम इस शरीर को मार सकते हैं पर इसके सोच को नहीं... सोच एक निरंतर प्रक्रिया है जिसका ख़त्म होना इंसान के अस्तित्व और आत्मा का ख़त्म होना है..
ReplyDeleteइसलिए सोच तो चलती ही रहेगी.. हम यह चाहें या ना चाहें...
sundar vichar, bhavpurn abhivyakti.
ReplyDeleteसही बात है ... बाद में पछताने के कोई मे नहीं होते हैं ...
ReplyDeletewahhhh kya bat hai..bahut badhiya...
ReplyDeletespeechless post
ReplyDelete