कुछ हम कुछ तुम
रहें एक दूजे में गुम
दुनिया, दुनियावालों को कहना क्या ....
रश्मि प्रभा
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क्यों? why?"
प्यार किया तो प्यार किया, बना दिया अफसाना क्यों
तुम बदले या हम बदले अब ये सब गिनवाना क्यों ?
दोनों का ये साझा है ,बस अपना इसे बताना क्यों
तुम पहले या हम पहले इन बातों पर अड़ जाना क्यों ?
अश्क दिल में है तब तक ओंस है पानी इन्हें बनाना क्यों
मोती बन जाने दो इनको ,दुनिया को दिखलाना क्यों?
जब कह दिया तो कह दिया दिल की बात छुपाना क्यों
शब्दों से दिल को जीतो तीर उन्हें बनाना क्यों?
शमा जली तो अपनी लौ मैं जला दिया परवाना क्यों
प्रेम अपनों से भी हो सकता है चाहिए दीवाना क्यों ?
जो चला गया वो चला गया रह रह कर उसे बुलाना क्यों
नए स्नेह का पौध लगाओ घावों को सहलाना क्यों ?
मन निर्मल है तो निर्मल है लोगो को समझाना क्यों
पाप पश्चाताप से धुल जाते फिर गंगा के तट जाना क्यों ?
कल गुलाब भी मिलेंगे आज काँटों से डर जाना क्यों
राहों पर जब चल दिए तो फिर लौटकर वापस आना क्यों ?
गारे का घर भी सुन्दर है ईटों से सर टकराना क्यों
परदेसों में मन पत्थर है अपना देश भुलाना क्यों?
कोई पागल प्रेम के पीछे किसी को धन का नशा चढ़ा
जब सारे के सारे पागल है तो खोले पागलखाना क्यों ?
कनुप्रिया
कोई पागल प्रेम के पीछे किसी को धन का नशा चढ़ा
ReplyDeleteजब सारे के सारे पागल है तो खोले पागलखाना क्यों ?
सच ही कह रहे हैं. सुंदर प्रस्तुति.
बहुत सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteवाह्……………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteअच्छी लगी कनुप्रिया की यह कविता.खुद उनका नाम भी इतना खूबसूरत है.कविता कहीं हंसाती है कहीं सोचने लग जाती हूँ.क्यों?नही मालूम.
ReplyDeleteजो चला गया वो चला गया रह रह कर उसे बुलाना क्यों
ReplyDeleteनए स्नेह का पौध लगाओ घावों को सहलाना क्यों ?
.....बहुत सुंदर
जब सारे के सारे पागल है तो खोले पागलखाना क्यों ?
ReplyDeleteसार्थक प्रश्न ...
बहुत प्रभावी रचना , बधाई.
ReplyDeleteवटवृक्ष पर ये मेरी पहली रचना है.यहाँ आना तो होता था पर कभी खुद की उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई.आई पढने का शौक पूरा किया और चली गई.आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद् जो आपने मेरी रचना को सराहा.सभी का मेरे ब्लॉग पर स्वागतहै.
ReplyDeleteजो चला गया वो चला गया रह रह कर उसे बुलाना क्यों
ReplyDeleteनए स्नेह का पौध लगाओ घावों को सहलाना क्यों ?
वाह ...बहुत खूब ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
वाह! अच्छा अंदाज़ है!
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