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सिक्के के एक पहलू पर नज़रें न लगाए रखना
दूसरे पहलू की बात भी सुनने की हिम्मत-ए- ईमानदारी बनाये रखना
घर से ही बाहर की सुनकर कोई राय मत देना
एक बार घर की दहलीज़ लांघकर देखना ....
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रश्मि प्रभा
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कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो.
पलटकर ज़माने के तेवर तो देखो.
जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
मियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
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कुँवर कुसुमेश
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ReplyDeleteज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो. ..बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ReplyDeleteज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
बहुत ही बढि़या ....आभार ।
bahut achhee ,
ReplyDeletereality ...that exits in the society
ReplyDeleteबहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ReplyDeleteग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
बहुत सुंदर, क्या कहने
bahut badhiya sundar abhivyakti...abhaar
ReplyDeleteवाह क्या बात है बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
ReplyDeleteवाह …………शानदार गज़ल्।
ReplyDeleteवो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ReplyDeleteज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो..
सही है !
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति| धन्यवाद्|
ReplyDeleteरश्मि जी,
ReplyDeleteवटवृक्ष पर मेरी ग़ज़ल को आपने स्थान दिया ,कृतज्ञ हूँ.
रश्मि जी,
ReplyDeleteनमस्ते.
कुंवर जी की रचना पढवाने का धन्यवाद.
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
करारा, सटीक.
आशीष
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लाईफ़?!?
बहुत ही मासूमियत से वो क़त्ल करते है...
ReplyDeleteबघनख छिपाए उनके हाथ तो देखो...
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
ReplyDeleteकहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.
कुंवर जी तो ब्लॉगजगत के ग़ज़लों के बादशाह है। इनके शे’रों में जो भाव और अर्थ निहित होते हैं वो काफ़ी प्रभावित करते हैं।
वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ReplyDeleteज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.
बहुत खूबसूरत गज़ल ...सच ही गांधीजी के तीनों बन्दर कहीं दब कर ही रह गए हैं ...
कुशुमेश जी की गज़ल प्रस्तुति तो हमेशा ही अधुत और लाजवाब होती है.
ReplyDeleteबहुत बधाई रश्मि जी वटवृक्ष पर भी कुशुमेश जो को लाने के लिये.
बहुत सुन्दर रचना है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है...
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