सिक्के के एक पहलू पर नज़रें न लगाए रखना
दूसरे पहलू की बात भी सुनने की हिम्मत-ए- ईमानदारी बनाये रखना
घर से ही बाहर की सुनकर कोई राय मत देना
एक बार घर की दहलीज़ लांघकर देखना ....



रश्मि प्रभा

===============================================================
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो

कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो.
पलटकर ज़माने के तेवर तो देखो.

जिसे फ़ख्र से आदमी कह रहे हो,
मियाँ झाँककर उसके अन्दर तो देखो.

वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.

दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.

बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.

बड़ी कशमकश है 'कुँवर' फिर भी यारों,
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो.
My Photo






कुँवर कुसुमेश

18 comments:

  1. वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
    ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो. ..बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
    ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
    बहुत ही बढि़या ....आभार ।

    ReplyDelete
  3. reality ...that exits in the society

    ReplyDelete
  4. बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
    ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.

    बहुत सुंदर, क्या कहने

    ReplyDelete
  5. bahut badhiya sundar abhivyakti...abhaar

    ReplyDelete
  6. वाह क्या बात है बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....

    ReplyDelete
  7. वाह …………शानदार गज़ल्।

    ReplyDelete
  8. वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
    ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो..

    सही है !

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति| धन्यवाद्|

    ReplyDelete
  10. रश्मि जी,
    वटवृक्ष पर मेरी ग़ज़ल को आपने स्थान दिया ,कृतज्ञ हूँ.

    ReplyDelete
  11. रश्मि जी,
    नमस्ते.
    कुंवर जी की रचना पढवाने का धन्यवाद.
    वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
    ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.
    करारा, सटीक.
    आशीष
    --
    लाईफ़?!?

    ReplyDelete
  12. बहुत ही मासूमियत से वो क़त्ल करते है...
    बघनख छिपाए उनके हाथ तो देखो...

    ReplyDelete
  13. दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
    कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.

    बहुत चैन फुटपाथ पर भी मिलेगा,
    ग़रीबों की मानिंद सो कर तो देखो.

    कुंवर जी तो ब्लॉगजगत के ग़ज़लों के बादशाह है। इनके शे’रों में जो भाव और अर्थ निहित होते हैं वो काफ़ी प्रभावित करते हैं।

    ReplyDelete
  14. वो ओढ़े हुए है शराफ़त की चादर,
    ज़रा उसकी चादर हटा कर तो देखो.

    दबे रह गये हैं किताबों में शायद,
    कहाँ तीन गाँधी के बन्दर तो देखो.

    बहुत खूबसूरत गज़ल ...सच ही गांधीजी के तीनों बन्दर कहीं दब कर ही रह गए हैं ...

    ReplyDelete
  15. कुशुमेश जी की गज़ल प्रस्तुति तो हमेशा ही अधुत और लाजवाब होती है.

    बहुत बधाई रश्मि जी वटवृक्ष पर भी कुशुमेश जो को लाने के लिये.

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर रचना है...

    ReplyDelete
  17. बहुत सुन्दर रचना है...

    ReplyDelete

 
Top