सिर्फ स्वप्न हैं
अनगिनत
आशाओं का
एक अजब सा
माया जाल है
हर तरफ
भागमभाग है-
आगे बढने की
कभी खुद की इच्छा से
खुद के बल से
और कभी
किसी को जबरन
धकेल कर
किसी 'सीधे' को
मोहपाश मे बांध कर
तेज़ी से
ऊपर की मंज़िल पर
चढ़ने की
बिना कोई सबक लिए
कछुआ और खरगोश की
कहानी से।
इस मायाजाल से
मैं रहना चाहता हूँ दूर
खड़े रहना चाहता हूँ
पैरों को ज़मीन से टिकाए
क्योंकि
ऊपर की मंज़िल के
सँकरेपन का आभास है
डर है
ऊपर से पैर फिसला
तो आ न सकूँगा
ज़मीन पर।
यशवन्त माथुर
http://jomeramankahe.blogspot.com/
वाह ...बहुत बढि़या अभिव्यक्ति ...प्रस्तुति के लिये आभार, यशवन्त जी को बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है यशवंत !
ReplyDeleteपैर ज़मीन पर ही रहे
पर सर ऊँचा
और ऊँचा हो
यही कामना है ...
फ़ैल जाओ वटवृक्ष की तरह
पर जुड़े रहो ज़मीन से ...
हर तरफ
ReplyDeleteभागमभाग है-
आगे बढने की...
रहना चाहता हूँ दूर ...
इसी में सुख एवं आत्मिक शांति है !
अच्छी कविता
ReplyDeletebahut acchi kavita yashwant ji...aabhar
ReplyDeleteआदरणीय रवीन्द्र सर /रश्मि आंटी
ReplyDeleteमेरी इस कविता को वटवृक्ष का हिस्सा बनाने के लिये आपका तहे दिल से आभारी हूँ।
सादर
इसी डर पर तो विजय पानी है………………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteअति सुन्दर , बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeletebhaut hi khubsurat badhaayi....
ReplyDeleteसुन्दर भाव की रचना ..
ReplyDeleteजमीन से जुड़ी हुई
प्रभावशाली रचना को सम्मान , पवों की सुभकामना ,
ReplyDeleteबधाईयाँ जी /
प्रभावशाली रचना को सम्मान , पवों की सुभकामना ,
ReplyDeleteबधाईयाँ जी /
बहुत खुबसूरत ख़याल....
ReplyDeleteयशवंत जी को बधाई...
सादर आभार...
बढ़ना तो उन्हीं का है जो जमीन से जुड़े हैं और अपनी शाखाओं पर अनेकों को आसरा दिए हुए हैं ....बढ़िया सोच
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सार्थक रचना .. बधाई !!
ReplyDeleteअच्छी कविता!
ReplyDeleteman ka dvand sahi ukera hai ...
ReplyDeletebhaut hi khubsurat....happy diwali...
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