रावण क्यूँ जले ? कभी जल भी नहीं सकेगा रावण ,
क्योंकि उसने एक दृश्य उपस्थित किया था सत्य का -
रावण ने सीता के साथ कुछ भी नहीं किया - उसने तो बस परोक्ष का सत्य सामने किया !
रश्मि प्रभा
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दशहरा
दश- हारा
मनाते रहे विजयोत्सव ,
जलाते रहे पुतले ,,
न जल सका रावण,
न जल सकी उसकी स्वर्ण लंका ,
उत्तरोत्तर प्रगति की ओर,
वन में रही ,
अब महलों में भी, नहीं
सुरक्षित सीता !
भाई भी , लक्षमण
कहाँ रहा ?
भरत , ताक में ,
कहीं लौट न आयें राम /
उर्मिला ,को भी प्रतीक्षा नहीं ,
कैकेयी ,सुमित्रा माँ हैं ,
ममता नहीं रही ,
अयोध्या ,हृदयस्थल थी द्वीप की ,
अब पटरानी है ,
सियासत की , विवाद की ,
पादुका प्रतीक थी ,
अनुग्रह की, स्नेह की ,त्याग की ,
अब खड़ाऊँ है ,
पद -दलन की ,ताडन की ...../
मेरा राम !
हताक्षर,प्रेम ,विनय ,साहस,मर्यादा ,
व विजय का ,
लेनेवाला सुधि ,स्वजनों का ,सज्जनों का ,
कहाँ है ?
समीक्षा से भ्रम है,
हम किसे जला रहे हैं -
राम को !
या
रावन को ?
त्याज्य को या
आराध्य को ?
उदय वीर सिंह .
..............उसने तो बस परोक्ष का सत्य सामने किया !
ReplyDeleteइस विचार के विस्तार की आवश्यकता है!
सचमुच हम तो राम को ही दूर कर रहे हैं... उनका वनवास ही खत्म नहीं हुआ अब तक... बहुत सुंदर भाव से भरी कई प्रश्न उठाती कविता
ReplyDeletenai soch ki kavita achchi lagi......aur rashmijee ka bayan adbhud.....
ReplyDeleteसार्थक प्रश्न उठाती सुन्दर रचना।
ReplyDeletewaah... bahut khoob...
ReplyDeletebht badhiya...aaj hm sb pratikon ko pujte hn bs ,unke arth hmne kho diye...
ReplyDeletereally....ravan...is immortal//
ReplyDeleteरावण ने सीता के साथ कुछ भी नहीं किया - उसने तो बस परोक्ष का सत्य सामने किया .... sach hai....aabhar
ReplyDeleteसच, पूरी तरह सहमत
ReplyDeleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसच है । वर्तमान परिवेश में रावण पर पुनर्विचार की ज़रुरत है ।
ReplyDeleteवर्तमान की विसंगतियों को रखांकित करती है उदय जी की रचना...
ReplyDeleteसादर आभार...
PARIVESH KE ANUSAAR UPYUKT RACHNA...
ReplyDeleteHAPPY 10HARA...
Tatlaik parivesh ka chitran karti rachna.. Badhai...
ReplyDeleteअब महलों में भी, नहीं
ReplyDeleteसुरक्षित सीता !
भाई भी , लक्षमण
कहाँ रहा ?
भरत , ताक में ,
कहीं लौट न आयें राम .
बड़ी कडवी सच्चाई उजागर हुई है इन पंक्तियों में.
आधुनिक समय ने पूरी रामायण ही उलटी लिख दी है ...
ReplyDeleteसार्थक काव्य!
मैं रावण हूँ...नाना रूपों में .....एक साथ...अनेक स्थानों पर रहता हूँ ....व्याप्त हो चुका हूँ मैं.
ReplyDeleteराम ने मुझे मारा ...मेरी देह को, मेरी आत्मा को नहीं. और आप सबने तो राम को ही मार दिया .......पर इतने से संतोष नहीं हुआ तो आज भी मारते हैं ...प्रतिदिन ..प्रतिक्षण मारते हैं ..
मेरी आत्मा अजर-अमर है......मैं कल भी था ....आज भी हूँ .....हर शरीर में छद्म रूप से रहता हूँ मैं...
राम कहाँ हैं ? राम की आत्मा का कहीं पता हो तो बताओ ? मुझे भी मिलना है उनसे ...मिल कर सावधान करना है कि मुझसे भी बड़े शत्रु पैदा हो गए हैं उनके........उनके चारो ओर ही घूमते रहते हैं.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
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