मानिनी मान तजो, लो, अब तो रही तुम्हारी बात।

मैथिलीशरण गुप्त

पहुँचे बुद्ध यशोधरा द्वार



स्वागत, स्वागत, हे आर्यपुत्र !
वंदन तेरा! अभिनन्दन तेरा!!
कैसे करूँ मैं तेरी आरती?
रह गयी कहाँ पूजा की थाली?
पधारो ! पधारो ! हे भगवान् !
सबरी की कुटिया के श्रीराम.
मैंने त्याग दिया है वैभव सारा,
हुआ जब से ओझल राम हमारा.

रख ली लाज तूने अब मेरी,
यह करुणा-अनुग्रह-दया है तेरी.
यह है एक नारी का सम्मान,
ज्यों शबरी और द्रौपदी का मान.
तुम्हे पूजती दुनिया सारी,
कहाँ तुच्छ मैं गृहिणी नारी.
मैंने आज, सब खोया पाया,
तूने सर्वस्व मुझे आज लौटाया.
हे नाथ ! तुच्छ मैं नारी हूँ,
इस गौरव हेतु आभारी हूँ.


हे धरा के यश! मेरी बात सुनो,
नारी तुच्छ नहीं, बड़ी भारी है.
तप में, त्याग में, शील-संयम में,
सेवा - कर्म - साधना - भक्ति में,
यह नर जब तक रहेगा धरा पर
होगा वह नारी जाति का आभारी.
पुरुष तो है बस मानसिक ज्ञान,
यह नारी ही उसकी मनः शक्ति.
पहचान ज्ञान की इसी शक्ति से
जीवन भी उसकी इसी शक्ति से.
मात्रि रूप में सर्जक है वह.
भार्या रूप में मन की आशा.
बहन रूप में स्नेह वही है,
पुत्री रूप वह है - अभिलाषा.


जब भिक्षु रूप में आये हो,
मुझको भी तुझे कुछ देना होगा.
करती हूँ अर्पित राहुल को,
शोणित के लाल को झोली में.
इसे करो तुम अंगीकार,
हे नाथ! हमारा तुच्छ दान.
तेरी चरण धूलि को पा करके,
मैं हुयी धन्य सब पा करके.
रोकूंगी नहीं तुम्हे पथ से,
निज हाथों तिलक लगाउंगी.
तेरा पथ है - 'विश्व कल्याण'.
नहीं चाहत मेरी निज कल्याण.


मैं पंथ निहारे बैठी हूँ,
हूँ गर्विता, भाग्य पर एंठी हूँ.
तूने लौटाया मुझे मेरा मान,
एक क्षत्राणी का किया सम्मान.
अब नहीं बचा कोई उपालंभ,
देखते ही दूर सब क्रोध-दम्भ.
हुई आज फिर सद्गति मेरी,
मुक्ति की हुई अभिलाषा पूरी.


अब कह लो चाहे 'निर्वाण' इसे,
या कह लो निज मन का अर्पण.
जो भी है अब, सब है तेरा,
तुझको अब सर्वस्व समर्पण.
कृत कृत्य हुयी, कोई रंज नहीं,
निर्वाण के संग, कोई जंग नहीं.
मेरा उद्देश्य भी अब जन कल्याण,
अनुगामिनी तेरी, हे कृपानिधान !



डॉ .जे .पी .तिवारी
http://pragyan-vigyan.blogspot.com/

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