न ये सही न वो सही
असमंजस में है ज़िन्दगी ...
रश्मि प्रभा
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कशमकश ....
मैंने अपने सुख दुःख के दो
तलों से पूछा ..
क्या मैंने अपने से बेवफाई की
एक ने कहा-हाँ
तुमने उस ठंडे पानी को
गर्म राख से झुलसाया है
तूने मेरी परवाह न कर
उसको सताया है .
उसकी झंकारों को मोड़कर
उसके रूप को बदलाया है...
तो दूसरे तल ने कहा- नहीं
उसने भी तेरा ख्याल न कर
जिल्लत की हर नजर में तुझे झोंका है
सानिध्य का हर तार तोडा है
तूने ठीक किया मेरे रूप
तूने ठीक किया
अजीब उलझन है
क्या किसने कहा ?
किसे अपनाऊं
कहीं सुख के बहाने
दुःख के अम्बार न लग जाएँ .......||
आशा बिष्ट
सुन्दर कविता
ReplyDeleteदिवाली एवम नव वर्ष की शुभकामनायें
अजीब उलझन है
ReplyDeleteक्या किसने कहा ?
किसे अपनाऊं
कहीं सुख के बहाने
दुःख के अम्बार न लग जाएँ .......||
bahot achchi lagi.......
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...बधाई!
ReplyDeleteसुन्दर कविता है... आपके ब्लॉग का संग्रह उत्तम है। मेरी शुभकामनाएं...
ReplyDeleteआज तो कविवर रविकर ने ही पढ़ाई है यह कविता।
ReplyDelete..बढ़िया लिखा है।
अंतर्द्वंद को दर्शाती एक अच्छी रचना...
ReplyDeleteवाह कहीं सुख के बहाने दुख के अंबार न लग जाएँ गहरी बात लिए बढ़िया प्रस्तुति
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