न ये सही न वो सही
असमंजस में है ज़िन्दगी ...



रश्मि प्रभा

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कशमकश ....

मैंने अपने सुख दुःख के दो
तलों से पूछा ..
क्या मैंने अपने से बेवफाई की
एक ने कहा-हाँ
तुमने उस ठंडे पानी को
गर्म राख से झुलसाया है
तूने मेरी परवाह न कर
उसको सताया है .
उसकी झंकारों को मोड़कर
उसके रूप को बदलाया है...

तो दूसरे तल ने कहा- नहीं

उसने भी तेरा ख्याल न कर
जिल्लत की हर नजर में तुझे झोंका है
सानिध्य का हर तार तोडा है
तूने ठीक किया मेरे रूप
तूने ठीक किया
अजीब उलझन है
क्या किसने कहा ?
किसे अपनाऊं
कहीं सुख के बहाने
दुःख के अम्बार न लग जाएँ .......||
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आशा बिष्ट

9 comments:

  1. सुन्दर कविता

    दिवाली एवम नव वर्ष की शुभकामनायें

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  2. अजीब उलझन है
    क्या किसने कहा ?
    किसे अपनाऊं
    कहीं सुख के बहाने
    दुःख के अम्बार न लग जाएँ .......||

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  3. बहुत सुन्दर रचना...बधाई!

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  4. सुन्दर कविता है... आपके ब्लॉग का संग्रह उत्तम है। मेरी शुभकामनाएं...

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  5. आज तो कविवर रविकर ने ही पढ़ाई है यह कविता।
    ..बढ़िया लिखा है।

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  6. अंतर्द्वंद को दर्शाती एक अच्छी रचना...

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  7. वाह कहीं सुख के बहाने दुख के अंबार न लग जाएँ गहरी बात लिए बढ़िया प्रस्तुति

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